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श्री शंकराचार्यजी।श्री भक्तमाल गाथा सीरियल।श्रीनाभादास जी महाराज।भक्तों के चरित्र।#श्रीनाभादासजी।स्वामी करुण दास जी

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श्रीशंकराचार्यजी   अधर्मप्रधान कलियुगमें वैदिक धर्मके रक्षक श्रीशंकराचार्यजीका अवतार हुआ। आप विधर्मियोंको शास्त्रार्थमें परास्त करनेवाले वाक्-वीर थे। वैदिक मर्यादाका उल्लंघन करनेवाले उद्दण्ड, ईश्वरको न माननेवाले बौद्ध, शास्त्रविरुद्ध तर्क करनेवाले जैनी और पाखण्डी आदि जो लोग भगवान्से विमुख थे, उन्हें आपने दण्ड दिया। भय दिखाकर शास्त्रार्थमें हराकर उन्हें बलात् खींचकर सनातन धर्मके मार्गपर ले आये। आप सदाचारकी सीमा अर्थात् बड़े सदाचारी थे। सारा संसार आपकी कीर्तिका वर्णन करता है। आप भगवान् शंकरके अंशावतार थे। पृथ्वीपर प्रकट होकर आपने वेदशास्त्रकी सम्पूर्ण मर्यादाओंका इस प्रकार समर्थन और स्थापन किया कि उसमें किसी प्रकारकी त्रुटि नहीं रही। वह अचल हो गयी ॥ ४२ ॥  यहाँ श्रीशंकराचार्यजीका महिमामय चरित संक्षेपमें वर्णित है-  श्रीमदाद्यशंकराचार्यजी  शंकरावतार भगवान् श्रीशंकराचार्यके जन्मसमयके सम्बन्धमें बड़ा मतभेद है। कुछ लोगोंके मतानुसार ईसासे पूर्वकी छठी शताब्दीसे लेकर नवम शताब्दीपर्यन्त किसी समय इनका आविर्भाव हुआ था, जबकि कुछ लोग आचार्यपादका जन्मसमय ईसासे लगभग चार सौ वर्ष पूर्व मानते ह

श्रीकील्हदेवजी महाराजका जीवन-चरित श्री भक्तमाल गाथा टीवी सीरियल भक्तों के चरित्र #श्रीनाभादासजीचरित्र

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जिस प्रकार गंगाजीके पुत्र श्रीभीष्मपितामहजीको मृत्युने नष्ट नहीं किया, उसी प्रकार स्वामी श्रीकील्हदेवजी भी साधारण जीवोंकी तरह मृत्युके वशमें नहीं हुए, बल्कि उन्होंने अपनी इच्छासे प्राणोंका त्याग किया। कारण कि आपकी चित्तवृत्ति दिन-रात श्रीरामचन्द्रजीके चरणारविन्दोंका ध्यान करनेमें लगी रहती थी। आप मायाके षड्विकारोंपर विजय प्राप्त करनेवाले महान् शूरवीर थे। सदा भगवद्भजनके आनन्दमें मग्न रहते थे। सभी प्राणी आपको देखते ही नतमस्तक हो जाते थे और आप सभी प्राणियोंमें अपने इष्टदेवको देखकर उन्हें सिर झुकाते थे। सांख्यशास्त्र तथा योगका आपको सुदृढ़ ज्ञान था और योगकी क्रियाओंका आपको इतना सुन्दर अनुभव था कि जैसे हाथमें रखे आँवलेका होता है। ब्रह्मरन्ध्रके मार्गसे प्राणोंको निकालकर आपने शरीरका त्याग किया और अपने योगाभ्यासके बलसे भगवद्रूप पार्षदत्व प्राप्त किया। इस प्रकार श्रीसुमेरुदेवजीके सुपुत्र श्रीकील्हदेवजीने अपने पवित्र यशको पृथ्वीपर फैलाया, आप विश्वविख्यात सन्त हुए ॥ ४० ॥  श्रीकील्हदेवजी महाराजका जीवन-चरित संक्षेपमें इस प्रकार है-   श्रीकील्हदेवजी महाराज श्रीपयहारी श्रीकृष्णदासजी महाराजके

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योग मुद्राएँ और उनके लाभ|  योग केवल शरीर को मोड़ने या कठिन आसन करने से अधिक है। योग में कई अन्य प्राचीन प्रथाएं भी शामिल हैं। आज हम उनमें से एक पर चर्चा करेंगे: मुद्रा, एक प्राचीन तकनीक जिसे हम प्राणायाम और ध्यान के दौरान उपयोग करते हैं। मुद्रा एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "इशारा" या "दृष्टिकोण"। मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक, और कलात्मक इशारे या दृष्टिकोण सभी मुद्राओं के उदाहरण हैं। प्राचीन योगियों ने मुद्राओं को ऊर्जा के प्रवाह को व्यक्ति की प्राणिक शक्ति से ब्रह्मांडीय या कॉस्मिक शक्ति से जोड़ने के लिए निर्धारित किया था। मुद्राएँ एक सूक्ष्म शारीरिक गतिविधियों का समूह हैं जो किसी के मूड, दृष्टिकोण, या परिप्रेक्ष्य को बदल सकती हैं। ये एकाग्रता और सजगता बढ़ाने में मदद करती हैं। एक मुद्रा एक साधारण हाथ की स्थिति हो सकती है या यह पूरे शरीर को आसन, प्राणायाम, बंधा, और दृश्यीकरण विधियों के संयोजन में शामिल कर सकती है। मुद्राएँ उच्च अनुष्ठान हैं जो प्राण, चक्र, और कुंडलिनी को जागृत करने में मदद करती हैं। यह कोशास के भीतर प्राणिक संतुलन को पुनः स्थापित