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श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४]।रूद्र अवतार एवं स्वरूप।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।।

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  श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४] दोहा- किया दक्ष यज्ञ आय जिमी, वीर रूद्र शिव गण। सो पंचम अध्याय में, कथा कही समझाय।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।। श्री शुकदेव मुनि कहने लगे कि है परिक्षित! जब विदुर जी को यह प्रसंग मैत्रेय जी ने सुनाया तो विदुर जी ने पूछा -हे मुने ! जब सती जी दक्ष के यहाँ देह त्याग कर गई तो शंकर भगवान के गणों ने दक्ष यज्ञ विवंश करना चाहा, परन्तु भृगु द्वारा उत्पन्न किये गये ऋभु नामक देवताओं ने उन्हें भोजशाला से मार मार कर बाहर निकाल दिया था। सो हे प्रभू ! वह शिव गण वहां से भाग कर कहाँ गये? और आगे क्या हुआ? सो सब कथा मुझे कृपा कर सुनाईये। तब मेत्रैय जी बोले-हे विदुर जी ! दक्ष द्वारा निरादर से सती द्वारा देह त्याग और अपने पार्षदों का ऋभुओं द्वारा भगा देने का समाचार भगवान शंकर जी ने जब नारद जी के मुखारविंद से सुना तो उन्हें अत्यंत क्रोध उत्पन्न हुआ जिसके कारण शिव ने अपने ओठों को दाँतों से दवा कर भयानक रूप से भारी अठ्हास करते हुये गंभीर नाद किया, और भूल से लिप्त अपनी जटाओं में से एक महातेज वाली जटा को उखाड़ कर पृथ्वी पर पटक कर देमारा। रूद्र अवतार एवं स्वरूप।

सती द्वारा, देह त्याग के समय दक्ष को कहे गये वचन।श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [चतुर्थ स्कंध]

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  श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [चतुर्थ स्कंध] (सती जी का दक्ष के यज्ञ में देह त्याग करना) दो-निज पति का अपमान जब, देखा पितु के गेह। ता कारण से शिव प्रिया, त्याग दइ निज देह।। सती द्वारा, देह त्याग के समय दक्ष को कहे गये वचन श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! मैत्रेय जी ने इतनी कथा सुनाने के पश्चात कहा-हे विदुर जी ! इस प्रकार शिव जी ने अनेक प्रकार कह कर सतीजी को प्रजापति दक्ष के घर जाने से मना किया, और अपनी अर्धांगिनी के देह का दोनों ओर को विनाश बिचारते हुये, श्री महादेवजी इतना कहकर मौन हो गये परन्तु उस समय सतीजी की विचित्र दशा थी, वे कभी पिता के घर जाने की तीव्र इच्छा से आश्रम से बाहर आती थी, और कभी महादेव जी के भय के कारण अन्दर जाती थी इस प्रकार वह दुविधा में फंसी हुई कभी बाहर निकलते हैं और कभी अन्दर जाती थी। तब इस दुविधा के कारण और अपने बन्धु जनों के मिलने की आकांक्षा को भंग होते जानकर सती बहुत दुखी हुई जिससे उनका मन उदास हो गया, और नेत्रों से आँसुओं की धारा बहने लगी। जब सती की यह दशा हुई तो वह मूढ़ मति स्त्री स्वभाव के कारण शोक व क्रोध के कारण शिव को छोड़कर अकेली अपने पिता के घर क

श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय[स्कंध४] (शिव तथा दक्ष का वैर होने का कारण)

 श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय[स्कंध४] (शिव तथा दक्ष का वैर होने का कारण) दोहा-जैसे शिव से दक्ष की, भयो भयानक द्वेष। सो द्वितीय अध्याय में वर्णन करें विशेष ।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! जब मैत्रेय जी ने सती के विषय में यह कहा तो विदुर जी ने पूछा - है वृह्यान् ! यह कथा सविस्तार कहिये कि दक्ष प्रजापति और शिवजी में क्यों और किस प्रकार वैर-भाव उत्पन्न हुआ। तब मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! एक समय सभी देवता आदि और ऋषी इत्यादि एक शुभ यज्ञ कार्य में जाकर एकत्रित हुए थे । उसमें ब्रह्मा जी तथा शिवजी भी आये हुये थे। तब उस महा सभा में वृह्माजी के पुत्र प्रजापति दक्ष भी पहुँचे । जिन्हें आया देखकर सभी देव ता तथा ऋषि-मुनि उनका आदर अभिवादन करने को अपने अपने आसनों से उठखड़े हुये और उन्हें प्रणाम आदि कर सम्मानित किया। परन्तु भगवान शिव और ब्रह्मा जी अपने आसन से नहीं उठे थे। अर्थात् इन्हीं दोनों ने दक्ष प्रजापति का अन्य सबों की तरह से आदर-सत्कार नहीं किया था। तब वह प्रजा पति दक्ष जगत गुरु ब्रह्मा जी को प्रणाम करके अपने आसन पर बैठ गये। तब दक्ष ने अपने मन में विचार किया कि वृह्माजी तो मेरे पि

राजा मनु का पूर्ण चरित्र व वंश वर्णन। मनु पुत्री का कदर्म ऋषि संग विवाह।।

 श्रीमद भागवद पुराण बाईसवां अध्याय [स्कंध३] देवहूति का कदमजी के साथ विवाह होना दोहा-ज्यों कदम को देवहूति ने मनु को दी सौंपाय। बाईसवे अध्याय में कथा कही दर्शाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार विदुर जी को कथा प्रसंग सुनाते हुए मेत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! जब कर्दम जी के सम्पूर्ण गुणों को प्रसंसा करते हुये आने का प्रयोजन जानने को कहा तो मनु जी बोले हे मुनि आपके दर्शन को हमारे संपूर्ण सन्देह दूर हो गये, मैं इस अपनी कन्या के प्रेम विवश अति किलष्ट चित्त और दीन हूँ, सो आप मुझ दीन की प्रार्थना कृपा करके ध्यान पूर्वक सुनिये। यह हमारी देवहूति नामक कन्या जो कि हमारे पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद की बहन है, सो अवस्था, शील, आदि गुणों से युक्त है। सो यह आपके ही समान गुण वाले पति की अभिलाषा करती है। इस कन्या ने जब से नारदमुनि के मुख से आपके गुण, रूप, शील तथा अवस्था की प्रसंसा सुनी है तब से इसने अपने मन से आपको अपना पति बनाने का निश्चय कर लिया है । सो हे प्रियवर ! मैं अपनी इस 1. कन्या को आपकोश्रद्धा पूर्वक समर्पण करता हूँ । हे विद्वान मैंने यह सुना था कि आप अपने विवाह का उद्योग कर रहे ह

श्रीमद भगवद पुराण ईक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध ३]। विष्णुसार तीर्थ।

शतरुपा और स्वयंभुव मनु द्वारा सृष्टि उत्पत्ति   कर्दम  ऋषि का देवहूति के साथ विवाह दो-ज्यों मुनि ने देवहूति का, ऋषि कर्दम के संग। व्याह किया जिमि रुप से, सो इस माहि प्रसंग। श्री शुकदेव जी ने परीक्षित राजा ने कहा-हे राजन् ! इस प्रकार सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन करते हुये मैत्रेय जी ने कहा-हे विदुर जी ! हम कह चुके हैं कि जब पृथ्वी स्थिर हो चुकी तब श्री परब्रह्म प्रभु की माया से चौबीस तत्व प्रकट हुए और जब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को त्याग दिया था जिस के दाये अंग से स्वायम्भुव मनु और बाएं अंग से शतरूपा उत्पन्न हुये। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें आज्ञा दी कि पहिले तुम श्री नारायण के तप और स्मरण करो तत्पश्चात परस्पर विवाह करके संसारी जीवों की उत्पत्ति करना । तब ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर स्वायंभुव मनु और शतरूपा दोनों ही वन को श्री नारायण जी की तपस्या करने चले गये। पश्चात, उनके बन जाने के ब्रह्मा जी ने श्री नारायण जी से सृष्टि उत्पन्न करने की सामर्थ प्राप्त करने के लिये अनेक प्रार्थना की तो नारायण जी ने उन्हें ध्यान में दर्शन देकर यह उपदेश किया था कि हे वृम्हा जी ! अब तुम्हारा शरीर शुद्ध हो गया, अब तुम