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श्रीमद भागवद पुराण उन्तीसवाँ अध्याय (संसार व काल प्रभाव का वर्णन)

 श्रीमद भागवद पुराण उन्तीसवाँ अध्याय (संसार व काल प्रभाव का वर्णन) दो०-भक्ति योग के मार्ग सब कहे कपिल समझाय। उन्तीसवाँ अध्याय में, वर्णित किये उपाय ॥ श्री कपिलदेव जी बोले हे माता! इस संपूर्ण चराचर जगत में जीवधारी सर्वश्रेष्ठ हैं । और उन जीवधारियों में भी प्राणधारी सर्वश्रेष्ठ हैं। इन प्राणधारियों में भी वे प्राणधापी श्रेष्ठ हैं जिन्हें ज्ञानेन्द्रियों का ज्ञान है, और उनमें भी स्पर्श ज्ञानी श्रेष्ठ हैं और इस ज्ञानियों में रसज्ञाता ज्ञानी है तथा रसज्ञाता ज्ञानियों में भी गंध जानने वाले ज्ञानी श्रेस्ठ हैं। इस प्रकार के जानियों में भी शम्न ज्ञाता ज्ञानी अधिक श्रेष्ठ होते हैं, इन में भी स्वरूप ज्ञाता ज्ञानी श्रेष्ठ हैं, इन में भी श्रेष्ठ, जिनके दोनों ओर दाँत होते हैं, और इन में भी वे श्रेष्ठ वे होते हैं जिनके चरण होते हैं। इन चरण वालों में दो प्रकार के हैं एक चतुष्पद और दूसरे द्विपद है।इनमें द्वीपद अधिक श्रेष्ठ कहे हैं। यह द्वीपद मनुष्य हैं जो सर्व श्रेष्ठ ज्ञानी माना गया है। मानव जाती के वर्ण,भेद।। अब हे माता ! मनुष्यों में जो कुछ भेद भाव इस प्रकार है कि, इनमें चार वर्ण हैं ब्राह्मण, क्षत