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ऐसा मंदिर जहां सूर्य की किरणें बताती हैं हिंदू वर्ष का महीना, क्या है रहस्य?

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ऐसा मंदिर जहां सूर्य की किरणें बताती हैं हिंदू वर्ष का महीना, क्या है रहस्य?  इस मंदिर में बारह खंभे हैं, जिन पर सुबह सूर्य की किरणें पड़ती हैं, विद्याशंकर मंदिर चिकमंगलूर, कर्नाटक। इस मंदिर के 12 स्तंभों पर सूर्य चिन्ह बने हुए हैं। हर दिन जब सूर्य की किरणें प्रवेश करती हैं, तो वे वर्ष के महीने का संकेत देने वाले एक ही विशेष स्तंभ से टकराती हैं। लेकिन इसमें रहस्य यह है कि हिंदू वर्ष के अनुसार जो महीना चलता है, वही संख्या होती है। मंदिर के स्तंभ पर सूर्य की किरणें पड़ती रहती हैं और जैसे ही महीना बदलता है, अगले एक महीने तक सूर्य की किरणें बगल के स्तंभ पर पड़ती हैं। ओह, अविश्वसनीय ज्ञान जो आज भी एक रहस्य बना हुआ है। ऐसी अनोखी अद्भुत सटीक इंजीनियरिंग का प्रयोग करने वाले हमारे पूर्वजों के बारे में हमें कभी कुछ नहीं सिखाया गया। चूंकि वह बहुत विद्वान थे. बल्कि वो जो हमारे देश को लूटने आये थे. हमें ऐसी किताबें पढ़ाई गईं जो "आक्रमणकारियों की प्रशंसा करती हैं" जिन्होंने हमारे ऐसे महान वास्तुकला से भरे हजारों मंदिरों को ध्वस्त कर दिया।  Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार,

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

#हम_ये_क्यूं_नहीं_कर_सकते_? उपनिषद' में आया है- ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ यहाँ जिस पूर्ण की बात हो रही है उसमें ऋषि ईश्वर को देखता है पर मैं इस पूर्ण को 'हिंदुत्व' से निरूपित करता हूँ और मैं ऐसा इसलिये करता हूँ क्योंकि इस पूर्ण से कुछ भी जुड़ गया या इस पूर्ण से कुछ निकल गया तो भी इसका स्वरुप आज तक परिवर्तित नहीं हुआ। इस महासागर से न जाने कितने पंथ निकले, इसके अंदर से कितने मत चल पड़े, कम से कम छह दर्शन विकसित हुये पर इससे न तो इसका मूल स्वरुप बदला और न ही इससे निकलने वाले मत-पंथों और दर्शनों की मूल चिंतन में विकृति आई। 'हिंदुत्व' का मूल दर्शन क्या है? क्यों मैं इसे ही उपनिषद में प्रयुक्त "पूर्ण" के अंदर रखता हूँ? 'हिंदुत्व' का मूल दर्शन है कि 'हरेक रास्ता सत्य की ओर जाता है' और इन सारे रास्तों के समन्यवक का नाम है हिंदुत्व। इसलिये आस्था हमारे धर्म का आधार नहीं है, हमारे धर्म का आधार है 'अनुभूति', जो इसे सबसे अलग कर विशिष्ट बना देता है। जिन लोगों ने अपने आँखों पर 'सेमेटिक दृ

इन्होंने ORS घोल का आविष्कार किया, जिसने अभी तक न केवल लाखों शिशुओं को निश्चित मृत्यु से बचाया बल्कि बड़े लोगों का भी पूर्ण ख्याल रखा …. 1934 में अविभाजित भारत के तत्कालीन किशोरगंज में पैदा हुए इस विभूति ने भारत में पढ़ाई किया और फिर अनुसंधान किया ….. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति के समय जब कालरा बीमारी फैली तो उन्होंने इस घोल से लाखों बांग्लादेशी बच्चों का जीवन बचाया ….  अन्तरराष्ट्रीय अनुसंधान पत्रिका लैंसेट ने इसे बीसवीं सदी की सबसे बड़ी चिकित्सा सफलता करार दिया था … लेकिन नोबेल की तो बात ही छोड़िए, उन्हें कभी भारत का पद्म पुरस्कार भी नहीं मिला …. . वह थे महान डॉक्टर दिलीप महालनोबिस ….. कल कलकत्ता के एक हस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई …. ईश्वर इस महान विभूति को अपने चरणों में स्थान दे …. ॐ शान्ति शान्ति …

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इन्होंने ORS घोल का आविष्कार किया, जिसने अभी तक न केवल लाखों शिशुओं को निश्चित मृत्यु से बचाया बल्कि बड़े लोगों का भी पूर्ण ख्याल रखा …. 1934 में अविभाजित भारत के तत्कालीन किशोरगंज में पैदा हुए इस विभूति ने भारत में पढ़ाई किया और फिर अनुसंधान किया ….. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति के समय जब कालरा बीमारी फैली तो उन्होंने इस घोल से लाखों बांग्लादेशी बच्चों का जीवन बचाया ….  अन्तरराष्ट्रीय अनुसंधान पत्रिका लैंसेट ने इसे बीसवीं सदी की सबसे बड़ी चिकित्सा सफलता करार दिया था … लेकिन नोबेल की तो बात ही छोड़िए, उन्हें कभी भारत का पद्म पुरस्कार भी नहीं मिला ….   .   वह थे महान डॉक्टर दिलीप महालनोबिस ….. कल कलकत्ता के एक हस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई …. ईश्वर इस महान विभूति को अपने चरणों में स्थान दे …. ॐ शान्ति शान्ति … Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com. Suggestions are welcome! Find the truthfulness in you, get the real you, power up yourself with divine blessings,

वयं पुरोहिता राष्ट्रं जाग्रयामः #hinduism #sanatana #sarv_dharma_brahma

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स्वामी सूर्यदेव जी की वॉल से वयं पुरोहिता राष्ट्रं जाग्रयामः हम पुरोहित हैं,, हम #राष्ट्रदेव को जागृत रखते हैं,, कोई भी राष्ट्र जागृत रहता है उसमें रहने वाली प्रजा से,, वह सोई पड़ी है वह मूढ़ है वह स्वार्थों में घिरी है,,तो आज नहीं कल राष्ट्र भी विपत्तियों में घिर जाएगा,, वेदमन्त्र है--संशितं म इदं ब्रह्म संशितं वीर्यम बलम l संशितं क्षत्रमजरमस्तु जिष्णुर्योंषामस्मि पुरोहित:--३-१९-१ #अथर्ववेद,,--मेरा ज्ञान अत्यंत तीक्ष्ण है,, शत्रुदमन शक्ति और स्वरक्षणबल भी तीक्ष्ण है यानी offensive & defensive system,,, जिन लोगों का मुझ जैसा जयशील अगुआ है,, उन्हें मार्ग दिखाने वाला है,, उनका खुद का यानी मेरे यजमान का भी सामर्थ्य न दबने वाला यानी उग्र यानी आक्रामक यानी #शीलयुक्त प्रतिकार करने का बल उनमें भी होगा ही होगा,, पुरोहित का अर्थ होता है अगुआ,,मार्गदर्शक,, ऐसा मार्ग बताने वाला जो सिर्फ तुम्हारे हित की सोचता है हमेशा,, सदैव तुम्हारा हित चाहता है,,   #वैदिक काल में ऐसे ही #पुरोहित होते थे,, वेदमन्त्र में पुरोहित ललकार कर कह रहा है कि मेरे होते मेरे यजमानों का #पराभव,, पराजय असम्भव है,, मेरे यजमा

थाली में क्यों नहीं परोसी जाती हैं 3 रोटियां?इसके पीछे कि क्या वजह है आइए आपको बताते हैं।

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थाली में क्यों नहीं परोसी जाती हैं 3 रोटियां? पढ़ लेंगे तो अबसे नहीं करेंगे ये काम थाली में या तो हम 2 रोटी परोसते हैं या फिर 4, तीन रोटी नहीं परोसी जाती है। इसके पीछे कि क्या वजह है आइए आपको बताते हैं। अक्सर आपने घर के बड़े-बुजुर्गों को कहते सुना होगा कि प्लेट में तीन रोटी मत रखो। कभी भी प्रसाद में तीन फल, तीन मिठाई भी नहीं रखी जाती है। आखिर इसका क्या कारण है? हिंदू धर्म में कई तरह की मान्यताएं हैं, पूजा-पाठ से लेकर खाने-पीने और उठने-बैठने तक हर चीज का एक नियम एक कायदा होता है, जो हमारी संस्कृति में है और हमें अपने बुजुर्गों से सुनने को मिलता है। कई चीजें शुभ होती हैं और कई चीजें अशुभ। ऐसे ही 3 को शुभ नहीं माना जाता है। थाली में या तो हम 2 रोटी परोसते हैं या फिर 4, तीन रोटी नहीं परोसी जाती है। इसके पीछे कि क्या वजह है आइए आपको बताते हैं। मान्यता है कि थाली में 3 रोटी रखना यानी कि मृतक का भोज लगाना। आपने देखा होगा कि त्रयोदशी संस्कार में जब थाली लगाई जाती है उस दौरान या तो 1 रोटी रखते हैं या तीन। ऐसे में जीवित व्यक्ति के भोजन की थाली में 3 रोटी परोसना अशुभ होता है।   तीन रोटी थाली