المشاركات

عرض الرسائل ذات التصنيف ज्ञनेन्दृयों और कर्मेन्दृयों का श्री हरि नारायण में उपर्जन

श्री हरि नारायण का अस्तित्व।। देह का निरमाण।।

صورة
श्रीमद भागवद  पुराण * दसवां अध्याय* [स्कंध २] (श्री शुकदेवजी द्वारा भागवतारम्भ) दोहा-किये परीक्षत प्रश्न जो उत्तर शुक दिये ताय । सो दसवें अध्याय में बरयों गाथा गाय ।। ।।स्कंध २ का आखिरी अध्याय।। हरि देह निर्माण श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत! इस महापुराण श्रीद्भागवत में दश लक्षण हैं सो इस प्रकार कहे हैं-सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, अति, मन्वन्तर, ईशानु कथा, निरोध, मुक्ति, और आश्रय। अब सर्गादिकों के प्रत्येक का लक्षण कहते हैं-हे राजन् ! पृथ्वी, जल, वायु आकाश में पंच महाभूत और शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध ये पाँच पंचन्मात्रा तथा नाक, कान, जिभ्या, त्वचा, नेत्र यह पांच ज्ञानेन्द्रिय और चरण, हाथ, वाणी, लिङ्ग, गुदा ये पाँच कर्मेन्द्रिय तथा अहंकार महा तत्व इन सब गुणों के परिणाम से अर्थात विराट भगवान द्वारा (से) उत्पन्न जो मूल सृष्टि है उसे स्वर्ग कहते हैं। और जो स्थावर जंगम रूप बृह्माजी से हुई उसे विसर्ग कहते हैं। ईश्वर द्वारा रचित मर्यादाओं का पालन करना स्थान कहलाता है। अपने भक्त पर की जाने वाली अनुग्रह को पोष्णा कहते हैं। मन्वन्तर श्रेष्ठ धर्म को कहते है, अति कर्म वासना को कहते हैं, ईशानु कथा ई

श्रीमद भागवद पुराण महात्मय।। राजा परीक्षित-शुकदेव संवाद।।

صورة
परीक्षित के किन वाक्यों से प्रेरित हो कर श्रीशुकदेव जी ने श्रीमदभगवद पुराण सुनाया।। * आठवाँ अध्याय* स्कंध २ (भगवान की लीला अवतार वर्णन') दो० प्रश्न परोक्षत ने किये, विष्णु चरित्रहित जोय । या अष्टम अध्याय में, भष्यो शुक मुनि सोय ॥ Parikshit shukdev samwad इस वृतान्त को श्रवण कर राजा परिक्षत ने कहा हे वृह्मन् श्री शुकदेव जी ! हे महा मुनि ! भगवान के अवतारों की कथा सुन कर मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ है। आपके द्वारा वर्णित कथा में वृह्मा जी के प्रेरे हुये, नारद जी ने जिस जिसको जिस प्रकार उपदेश किया सो कहिये । हे वृम्हन् ! निर्गुण भगवान का पंच महाभूत देह धारण करना अपनी इच्छा से है? अथवा कर्म आदि के कारण देह धारण करते हैं! इसमें आप जो भी यथार्थ जानते हैं सो मेरे सम्मुख प्रकट करिये । वृह्मा जी जिस परमात्मा को नाभी से उत्पन्न हुये हैं उस विराट भगवान का अवयव और स्वरूप और उस लौकिक पुरुष का अवयव स्वरूप समान ही है तो लौकिक पुरुष में, बिराट पुरुष को जो स्थिति कही गई है वह हमारी बुद्धि मैं नहीं आई है सो आप वह सब समझाकर कहो कि जिस प्रकार विराट पुरुष के नाभी से वृह्मा हुआ जिसने परमात्मा के स्वरूप को द