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श्रीमद भागवद पुराण इकतीसवां अध्याय[स्कंध३]मनुष्य को गर्भ में पूर्व जनम का ज्ञान एवं ज्ञान प्राप्ति

 श्रीमद भागवद पुराण इकतीसवां अध्याय[स्कंध३]  मनुष्य योनि में तामसी गति का वर्णन दोहा-गर्भ काल मे दुख मिले, सो सब कहयो जाये। सो वर्णन कीयो सकल, इकत्तीस में अध्याय।। श्री कपिल देव जी भगवान बोले-हे माता! प्राणी अपने पूर्व कर्मों के फलों के अनुसार मनुष्य योनि को जब प्राप्त होता है सो हम कहते हैं। प्रथम पुरुष के वीर्य के आश्रय होकर ही जीव स्री के उदर में प्रवेश करता है। श्री नारायण जी की कृपा से स्त्री को जिस दिन गर्भ रहना होता है, उस दिन मेथुन के समय पुरुष का वीर्य और स्त्री का रज मिश्रण होकर खौलने लगता है। तब वह एक रात्रि में पुरुष का और स्त्री का, वीर्य रज का मिश्रण रक्त के मेल से गदले जल के समान बन जाता है।  पश्चात पाँच दिन में वह गदला सा जन एक बुद-बुदे (बबूले) के रूप में परणित हो जाता है। तब दस दिन में उस बुद-बुदे का आकार वेर के समान बनकर एक गाँठ के समान बन जाता है। फिर वह गांठ कुछ बढ़कर लम्बे से आकार में अण्डे के समान माँस पिन्ड के आकार वाला बन जाता है। फिर पहले महीने में उस माँस पिन्ड में शिर बन जाता है, दूसरे महीने में हाथ पाँव आदि बन जाते हैं। तीसरे महीने में नख, रोम, अस्थि, चर्म