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श्रीमद भागवद पुराण तीसवां अध्याय [स्कंध ३] (मनुष्य की तामसी गति का वर्णन)

 श्रीमद भागवद पुराण तीसवां अध्याय [स्कंध ३]  मनुष्य की तामसी गति का वर्णन।। दो-पाप कर्म में जो मनुष्य, पावत यमपुर धाम। सो तीसवें अध्याय में, कीनी कथा प्रकाश।। श्री कपिलदेव जी बोले-हे माता! इस जगत में कामी पुरुष शरीर और स्त्री के मोह जाल में फंस कर नरक को गति को प्राप्त होता है। क्योंकि वह इस काल के प्रवल पराक्रम को नहीं जानता है । वह मन में दुख उठाकर भी सुख के लिये जिन-जिन कामों को करता है उन कर्मों को वह काल रूप प्रभू क्षण में नष्ट कर देता है। तब मनुष्य अनेक प्रकार से सोच में पड़ जाता है । कारण कि वह अपने आपको मोह जाल में फंसा कर ज्ञान को गवाकर अज्ञानी बन कर ससार में धन, खेत, कुटुम्ब अादि को स्थिर मान लेता है, और जिस जिस योनि में जाता है उसी में उसे वे अपने मान कर स्थिर मान बैठता है। यही कारण है कि मोह के वशीभूत हो वह इस क्षणिक झूठे वैभव को स्थिर और अपना मान कर अपने आप को बहुत बड़ा मान बैठता है । पश्चात ऐसा समझने पर ही वह अपने बंधुओं तथा कुटम्वीजनों के हित को आकांक्षा के कारण ही अनेक प्रकार के हिंसा आदि पाप कर्म करने लगता है । स्त्रियों के द्वारा उत्पन्न माया अर्थात् बालकों के प्रेम

कहाँ जाता है मनुष्य मरने के बाद? नरक लोक में जीवात्मा।।

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 श्रीमद भागवद पुराण *छब्बीसवां अध्याय * [स्कंध ५] (पाताल स्थित नरक का वर्णन ) Where does the soul goes in between reincarnations? दो०-पापी फल पावें जहां, देय दूत यम त्रास। छब्बीसवें अध्याय में, वरणों नरक निवास।। श्री शुकदेव जी के वचन सुन कर परिक्षित ने पूछा-हे मुने ! ईश्वर ने यह सब सृष्टि एकाकार ही क्यों नहीं रची अर्थात यह सब सृष्टि परमात्मा ने अनेक प्रकार की क्योंकर निर्माण की है सो कृपा कर मुझे सुनाओ । श्री शुकदेव बोले-हे परीक्षित! कर्त्ता की इच्छा से श्रद्धा में तीन प्रकार का भेद होने से कर्म की गति भी अलग-अलग न्यूनाधिक होती है । सत्व गुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को सुख, तथा रजोगुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को सुख और दुःख दोनों तथा तमोगुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को दुख ही केवल प्राप्त होता है। शास्त्रों में जिसको निषेध कहा है उसी को अधर्म कहते हैं। अतः उन्ही अधम कर्मो के करने को ही अधर्म कहते हैं। उन पापी जनों को नरक की गति मिलती हैं। सो हे राजन! हम तुम्हारे सामने उन्हीं मुख्य-मुख्य नरकों को वर्णन करते हैं । सो तुम उन्हें ध्यान देकर सुनो। नरकों का सम्