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सनकादिक मुनियों द्वारा भागवद ज्ञान एवं आरम्भ।।

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श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय मंगला चरण ( भक्ति का कष्ठ दूर होना) भागवद यज्ञ का स्थान,ऋषियों मुनियों का आगमन, नारदजी बोले-हे ऋषियों! आप कृपा करके उस स्थान को बताइये जहाँ यज्ञ किया जाय। यह सुनकर सनत्कुमार बोले-कि हे नारद जी ! हरिद्वार के पास जो आनंद नाम का गङ्गाजी का तट है, उस स्थान में आपको ज्ञानयज्ञ करना उचित है और भक्ति से भी कहदो कि वह भी अपने ज्ञान, वैराग्य नामक दोनों पुत्रों को संग लेकर वहाँ आजावे। सूतजी बोले कि, ऐसा कहकर नारदजी को साथ ले वे सनत्कुमार कथा-रूप अमृत को पान करने के अर्थ गंगाजी के तट पर आये । गंगाजी के तट पर आते ही त्रिलौकी में कोलाहल मच गया। भगवदभक्त श्रीमद्भागवत रूपी कथा अत को पान करने को दौड़ते हुए वहाँ आये। भृगु, वसिष्ठ, च्यवन और गौतम, मेधातिथि, देवराज परशुराम तथा विश्वामित्र, शाकल, मार्कण्डेय, दत्तात्रेय, पिप्पलाद, याज्ञवल्क्य और जैगीष्कय, शायाल, पाराशर, छाया शुक, जांजलि और जन्ह आदि ये सब मुख्य- मुख्य ऋषि लोग अपने-अपने पुत्र, पौत्र व स्त्रियों सहित वहाँ आये । वेदान्त, वेद मन्त्र, तन्त्र ये भी मुर्ति धारण कर वहां आये।

सनकादिक मुनियों द्वारा भगवद कथा का महात्मय

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श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [मंगला चरण] (सनत्कुमार नारद संवाद) दोहा- गीता जान विराग सुन नारद चेत न आय।। ता मुनि ने कहि भागवत चेत हेत समाय ।।१।। श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का द्वितीय आध्यय [मंगला चरण] वेद - वेदांत से भी ज्ञान भक्ति को चेत ना आया, तब सनत्कुमार जी द्वारा बतलाया ग्या श्रीमद भगवद जी का भेद।। नारदजी बोले-हे बाले। तुम वृथा खेद करती हो, श्री कृष्ण भगवान के चरण कमल का स्मरण करो, तुम्हारा दुःख जाता रहेगा। जिन श्रीकृष्णचन्द्रजी ने कौरवों के महा संकट से द्रोपदी की रक्षा की और शंखचूड़ आदि दुष्टों से गोपियों को बचाया, वह श्रीकृष्ण कहीं चले नहीं गये। हे भक्ति । तुम तो भगवान को प्राणों से भी अधिक प्यारी हो, तुम्हारे बुलाये हुये भगवान तो नीचजनों के घरों में भी जाते हैं । सतयुग आदि तीनों युगों में तो ज्ञान और वैराग्य मुक्ति के साधन थे। इन्हीं (२) दोनों से महात्माओं का उद्धार होता था, परन्तु कलियुग में केवल भक्ति हो ब्रह्मासायुज्य को देने वाली है। एक समय अवसर पाय तुमने हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की थी कि मुझको क्या आज्ञा है? तब कृष्ण भगवान ने तुमको आज्ञा दी थी कि हमारे भक्तों को

क्यूँ सूत जी देवताओं को भागवद कथा रुपी अमृत से वंचित किया?

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मंगला चरण कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभं, नासाग्रेवरमौक्तिकं करतले वेणुकरेकंकणम् । सर्वा गे हरिचन्दनं सुललितं कंठेच मुक्तावली, गोपस्त्री परिवेष्टितो बिजयते गोपाल चूडामणिः । फुल्लेन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं बह्तावतंसंप्रियं, श्रीवत्सांक मुदारकौस्तुभं पीताम्बरं सुन्दरम् । गोपीनांनयनोत्पलाचित तनु गोगो पसंघावृतं, गोविन्द कलवेणुवादनपरं दिव्यांग भूषं भजे ॥ श्रीमद्भागवत माहात्म्य का पहिला अध्याय दो: भाखयो पद्मपुराण जस नारद भक्ति मिलाप । पट अध्यायन सो कह्यो, श्रीदेवऋषि नारद आप एक समय नैमिष क्षेत्र में सुख पूर्वक बैठे बुद्धिमान श्री सूत जी को प्रणामकर के भगवदकथा रुपी अमृत रस भक्ति का श्री नारद मुनि से मिलाप।। ज्ञान वेराज्ञ को चेत।। यह वचन कहा- अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करने के अर्थ करोड़ों सूर्य के समान कान्ति वाले सूत जी हमरे कानों को रसायन रुपी सार का वर्णन अप किजीये। भक्ति और वेराज्ञ की प्राप्ति किस रोति से होती है और ज्ञान किस प्रकार बुद्धि को प्राप्त होता है और विष्णु भक्त किस प्रकार मोह माया को त्याग करते है। इस घोर कलयुग के आने से सन्सारी जीव असुर भाव को प्राप्त हो ग्ये हैं।आ