श्रीमद भागवद पुराण १६अध्याय [स्कंध४] (पृथु का सूत गण द्वारा सतवन)

सुविचार 
जो विद्या केवल पुस्तक में और जो सम्पत्ति दूसरों की मुठी में,
वह दोनो ही निरर्थक है।।

श्रीमद भागवद पुराण * सोलहवां अध्याय *[स्कंध४]

(पृथु का सूत गण द्वारा सतवन)

दोहा- कीयौ सूत गण ने सभी, पृथु की सुयश बखान।

सोलहवें अध्याय में, सो सब कियो निदान।।


मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी! यद्यपि राजा पृथु ने अपनी बढ़ाई करने से रोकने के लिये सूत मागध बन्दीजनों को मना किया। परन्तु फिर भी वे अनेक प्रकार से स्तुति करते हुये यश का बखान करने लगे। सूतगणों ने कहा-हे पृथु! आपने अपनी माया से अवतार धारण किया है। अन्यथा आप साक्षात नारायण ही हैं। सो हम में आप के अनन्त चरित्र वर्णन करने की सामर्थ्य है।

क्योंकि आपका यश चरित्र बखान करने में तो ब्रह्मा आदि की
बुद्धि भी भ्रम में पड़ जाती है।
हे महाराज पृथु ! आप धर्म करने वाले पुरुषों में सर्व श्रेष्ठ होंगे। आप लोकों की रक्षा करने में हर प्रकार से समर्थ होंगे, तथा अपराधी को दण्ड दे प्रजा की रक्षा करने वाले होंगे। आप सुकाल में प्रजा से कर रूप धन लेकर अकाल समय में अर्थात दुर्भिक्ष समय में उस धन से प्रजा की सहायता किया करेंगे। आपको पृथ्वी पर कोई परास्त नहीं कर सकेगा। आपके समान बलवान कोई अन्य नहीं होगा ।

हे स्वामी ! आप संसार में ऐसे उत्तम काम करेंगे जो कि संसार में अन्य किसी राजा ने नहीं किये हैं । हे राजन! आप अपने भुजबलों से समस्त पृथ्वी को जीतकर अखण्ड राज्य करेंगे। आप पृथ्वी को गाय के समान दुहन करेंगे और उसे अपनी पुत्री के समान और प्रजा को पुत्र के सदस्य मानेंगे। आप साधु-सन्तों तथा हरि भक्तों को नारायण के समान मानने वाले श्रेष्ठ पुरुष होगे। जो इन्द्र किसी शत्रुता कारण आपके राज्य से वर्षा न करेंगे, तो आपकी इच्छा मात्र से हो वर्षा हो जाया करेगी। जब आप अश्वमेध यज्ञ करेंगे तो निन्यानवे यज्ञ सम्पूर्ण होंगे और यज्ञ के प्रारम्भ में इन्द्र भयभीत होकर आपके यज्ञ के श्याम वरण घोड़े को चुराकर ले जाएगा। तब आपका पुत्र इन्द्र से घोड़े को छीन कर लावेगा । तब इन्द्र अपनी हार स्वीकार कर छल करने के लिये अनेक रूप धारण करके आएगा। आपके यज्ञ में भगवान स्वयं प्रगट होकर दर्शन देंगे। आप पराई स्त्री को माता समझेंगे और भगवान के स्मरण में लौ लीन रहा करेंगे। इस प्रकार सूत गणों ने तथा बंदी जनों ने राजा पृथु के भविष्य का संक्षेप में वृतांत कहा तो उन्हें धन रत्न आदि दक्षिणा स्वरूप दान में दिये। तब वे लोग पृथु का यश बखान करते हुए अपने-अपने घरों को चले गये। तदुपरान्त सभी ऋषि-मुनि एवं देवता लोग भी राजा पृथु को अनेक प्रकार से आशीर्वाद देते हुये अपने-अपने निवास स्थानों को चले गये। 


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