क्यूं युध्द करने की जगह भगवान ने लिया वामन अवतार?
श्रीमद भागवद पुराण पन्द्रहवां अध्याय[स्कंध ८]
( बलि द्वारा-स्वर्ग विजय )
दोहा -अब बलि की वर्णन कथा भाखी नो न्याय।
यज्ञ विश्वजित एक में बलिको वभव लाय ॥१५॥
परीक्षित पूछने लगे-महाराज ! भगवान ने बलि से संसार के स्वामी होकर भी कृपण की तरह तीन पेड़ पृथ्वी क्यों मांगी और मिल जाने पर भी क्यों बांध लिया? शुकदेव जी बोले-देवासुर संग्राम में जब इन्द्र ने राजा बलि की स्त्री और प्राण दोनों हर लिये तो शुक्राचार्य ने प्रसन्न होकर बलि से विधि पूर्वक विश्वजित यज्ञ कराय और उसका अभिषेक कराया तदनन्तर अग्नि से सुवर्ण से मढ़ा एक रथ निकला जिसमें इन्द्र के घोड़ों के समान घोड़े जुते हुए थे, और सिंह के चिन्ह से अङ्कित ध्वजा थी तथा दिव्य धनुष, तरकस और कवच निकले, प्रहलाद ने एक माला दी जिस के फूल कमी कुम्हलाते न थे और शुक्राचार्य ने एक शंख दिया। इस तरह ब्राह्मणों ने युद्ध की सामग्री तैयार कर दी और फिर स्वस्तिवाचन किया। तब बलि उन ब्राह्मणों को नमस्कार कर प्रहलाद की आज्ञा लेकर भृगु के दिये हुए दिव्य रथ पर चढ़ा, माला पहनी, कवच धारणकर लिया, खग, धनुष और तरकस बांध लिया। तदनन्तर राक्षसों की सेना को साथ ले बलि ने इन्द्रपुरी पर चढ़ाई की। देवीपुरी को चारों ओर से घेरकर बलि शुक्राचार्य के दिये हुए शंख को जोर से बजाकर इन्द्र के महल में रहने वाली स्त्रियों को भय उत्पन्न करने लगा। तब इन्द्र सब देवताओं साथ ले गुरु बृहस्पति के पास जा यह बोला- हे भगवन! हमारे पुराने बैरी बलि ने बड़ा उद्योग किया है। इस तरह से तो ये मुख से सब जगत को पान कर जांयगे और जिव्हा से दशों दिशाओं को चाट जायंगे। बृहस्पति जी बोले-"
हे इन्द्र ! मैं तेरे इस बैरी की उन्नति के कारण को जानता हूँ । भृगु ने अपने शिष्य का ये तेज बढ़ाया है। भगवान के सिवाय अन्य योद्धा कोई भी आज इसके सामने खड़ा न हो सकेगा। तुम स्वर्ग को छोड़ कर गुप्त स्थानों में जा छिपो और काल की प्रतीक्षा कर ब्राह्मणों ही के बल से इसका यह बल, और पराक्रम बढ़ा है जब यह ब्राह्मणों का अपमान करेगा तब बान्धवों सहित नष्ट हो जाएगा। '
गुरु की इन बातों को सुनकर सब देवगण स्वर्ग को छोड़कर भाग गये। देवताओं के भाग जाने पर बलि ने इंद्रपुरी में अपना राज्य कर लिया और त्रिलोकी पर शासन करने लगे। भृगुओं ने विश्व विजय अपने शिष्य से सौ अश्वमेध यज्ञ कराया। तब यज्ञों के प्रभाव से भुवन विख्यात बलि अपनी कीर्ति को दिशाओं में विस्तार करता ऐसा शोभित हुआ जैसे चन्द्रमा प्रकाश करता है।
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
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श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
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• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
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• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
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• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
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• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
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