तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।तंत्रिका कोशिका।।

तंत्र क्या है!

तंत्र कहते ही तांत्रिक मन में आता है, एक अर्ध पागल सा बड़बड़ाता हुआ व्यक्ति।


तंत्र का मतलब होता है व्यवस्था, तंत्रिका तंत्र,गणतंत्र, लोकतंत्र, स्नायु तंत्र, तो यहां जो बात हो रही है वह है शरीर विज्ञान की।


 साथ में आत्मा भी, क्योंकि ज्ञान का बोध करने वाली तो वही है न बन्धु।


एक मित्र है  वे आज पूछ रहे थे कि जग्गी वासुदेव कहते हैं शरीर मरने के 3-4 घण्टे बाद तक भी शरीर में व्यान प्राण रहता है, मरने के 12-13 घण्टे बाद भी उदान प्राण रहता है, अगर सही से तांत्रिक क्रियाएं की जाएं तो व्यक्ति को जीवित किया जा सकता है,,आपकी क्या राय है??

 कोई क्या कहते हैं और किस आधार पर ये वे खुद जानें, मैं सिर्फ ऋषियों पर भरोसा करता हूँ या ऋषिकृत शास्त्रों पर। अपने पूर्वज ऋषियों ने कुछ अलग ही बताया है, महर्षि योगसूत्रों में कह रहे हैं--

नाभिचक्रे कायव्यूहज्ञानम--नाभिचक्र में ध्यान लगाने से योगी शरीर संरचना को भली भांति जान लेता है,,  
नाभि में जो चक्र है उसका नाम है मणिपुर चक्र, कपालभाति जो क्रिया है वह उसी को तो सबसे ज्यादा जल्दी एक्टिवेट करती है जिसे आजकल बाज़ार में कुंडलिनी जागरण के नाम से बेचा जा रहा है, खैर अपना विषय अलग है।

मैंने सैकड़ों स्कूल कालेजों में बच्चों से पूछा है,, तथाकथित तांत्रिकों से भी, ये बताइए महाराज शरीर में कितनी चीजें हैं जो धड़कती हैं, बताने वाले सबसे पहले हृदय बताते हैं, फिर नाड़ी बताते हैं। हाथ की जिसे नस भी कह दे रहे हैं, लेकिन नाड़ी तो रक्त और हृदय के आधार पर धड़कती है उसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, फिर और क्या है जो धड़कता है??

इस बात पर तांत्रिक महोदय गांजे की चिलम खींचकर मुझे घूरने के अलावा कुछ नहीं करते हैं। 

दूसरी चीज जो शरीर में धड़कती है वो नाभि है। हरियाणा में उसे धरन भी कहते हैं।
गाँव देहात में किसी को पेट में दर्द हो मरोड़ उठ रहे हो तो बड़े बूढ़े कहते हैं धरन दिखा लो, वही डिगी हुई है, नाभि पहला पार्ट है जो मां के गर्भ में आने के बाद हमारे शरीर में बनता है। धड़कन भी उसी में पहले शुरू होती है। लोग उदान प्राण की बात कह रहे हैं जबकि नाभि में जहां से जीवन शुरू होता है वहां अपान प्राण होता है।

अब चूंकि जहां से जीवन शुरू हुआ है वहीं जाकर खत्म होगा तभी एक जीवनचक्र पूरा होगा। इसलिए कई बार लोग मर जाते हैं तो श्मशान ले जाते समय या कोई उनपर हाथ पटक पटक कर रोए उस समय या अर्थी को चिता पर रखते समय जीवित हो जाते हैं। कारण मात्र इतना ही है कि प्राण जो सिकुड़कर नाभि में इकट्ठा हो गया था वह किसी झटके से फिर से चालू हो जाता है। पूरे शरीर में जीवन ऐसे फैल जाता है जैसे तारों में बिजली, व्यक्ति जी उठता है। 
इसलिए तांत्रिक यानी शरीर विज्ञान को जानने वाला, अगर इसमें सिद्धहस्त है।तो मरे हुए व्यक्ति की हाथ की नाड़ी को नहीं देखेगा, न हृदय को देखेगा, न सांस चल रही है या नहीं, इसको भी नहीं देखेगा, यह बच्चों के काम हैं।  
वह देखेगा नाभि को छूकर, अगर वह धड़क रही है, यानी उसमें अभी प्राण हैं तो व्यक्ति को वहां झटका देकर जिंदा किया जा सकता है, इसके सफल होने के प्रतिशत ज्यादा हैं।
 यही तंत्र है। शरीर विज्ञान का परम ज्ञाता होना, साथ में आत्मा का भी, भूत प्रेत या झाड़ फूंक वालों को तांत्रिक कहना घोर अज्ञानता है।इसलिए योगी ही असली तांत्रिक हो सकता है। क्योंकि वह शरीर विज्ञान को भली भांति जानता है, या यूं कहें जो तांत्रिक है वह अवश्यमेव योगी होगा ही, वरना जानेगा कैसे।

मैं तो बस इतना ही जानता हूँ, बाकि किसी जानकार से पता करोगे तो और अच्छे से समझा पाएगा।

ॐ श्री परमात्मने नमः।             *सूर्यदेव*


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