आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।तंत्रिका कोशिका।।

Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.

तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।


आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान,न्यायदर्शन पर आधिकारिक भाष्य करने वाले ऋषि वात्स्यायन एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ कामसूत्र के भी रचयिता हैं,,


उन्होंने एक जगह नागरकवृन्त प्रकरण में--यानी नागरिकों का रहन सहन कैसा हो उसमें लिखा है--


।।बाह्ये च वासगृहे सुश्रलक्षणंउभयोपधानं मध्ये विनतं--अध्याय-श्लोक-४-४।।


यानी जो बाहरी कमरा है घर का जहां भोजन विश्राम, रात्री शयन आदि करते हैं , क्योंकि अंदर वाले कमरे में तो सारे घर का कबाड़ पड़ा रहता है, लत्ते कपड़े, धन धान्य,अन्न दाल आदि,गहने जेवर।

  
तो बात यह थी कि उस कमरे में खटिया होनी चाहिए, एकबार पुनः ध्यान दें,खटिया होनी चाहिए तख्त या बेड नहीं। 

सिरहाने और पैरों की तरफ नरम तकिया होने चाहिए। खास बात यह कि खटिया बीच में से झुकी हुई यानी ढीली यानी लटकी हुई होनी चाहिए।

ब्रह्मचर्य के बाद जब व्यक्ति गृहस्थी में जाता है तब क्यों कहना पड़ा आचार्य को ऐसा, इसके दो कारण हैं। पहला कारण है लीवर, जब हम भोजन करते हैं तो लीवर को एक घण्टे तक बहुत मेहनत करनी पड़ती है, खाने को रस बनाने और पचाने के लिए, इसके लिए उसे पर्याप्त मात्रा में खून चाहिए,इसलिए अपने पूर्वजों के समय से ही एक बात चली आ रही है कि भोजन के बाद कुछ समय विश्राम कर लेना चाहिए, हर घर में खटिया होती थी।  

जिसमें लेटते ही पैर और सिर स्वाभाविक रूप से ऊपर उठ जाते थे और पेट का हिस्सा नीचे लटके हुए भाग में आ जाता था जिससे लिवर को पर्याप्त रक्त मिल जाता था पाचन क्रिया को सम्पन्न करने के लिए।

आजकल एक अत्यंत बेहूदा ट्रेंड चल निकला है कि भोजन के बाद थोड़ा टहलना चाहिए, टहलने में सारा खून लिवर की जगह पैरों में उतर आता है। तो फिर दो बातें बड़ी आसानी से हो जाती हैं, एक तो चल चलकर घुटने घिस जाते हैं दूसरा लिवर का भट्ठा बैठ जाता है,, कोई कोई विश्राम भी करता है तो बैड पर जिसमें पूरा शरीर लठ की तरह सीधा है,, इसमें भी लिवर को जो अतिरिक्त रक्त मिलना चाहिए था वह मिलता नहीं और कालांतर में रिजल्ट अपच, गैस, कब्ज, बवासीर, भगन्दर, खट्टी डकार, भूख न लगना आदि के रूप में सामने आता है।

दूसरा कारण था जननेन्द्रिय सम्बंधित, कोई माने न माने यह अलग बात है लेकिन एक स्वस्थ संभोग भी आपसी सम्बन्धों में अहम भूमिका निभाता है,गृहस्थी को इसकी जरूरत पड़ती ही है, जननेन्द्रिय में हड्डी तो होती नहीं,सिर्फ नस नाड़ियां होती हैं, तो फिर उसमें तनाव आएगा कैसे?? उसके लिए भी पर्याप्त रक्त की जरूरत होती है। और जैसे ही आप ढीली ढाली खटिया में सोते हैं तो रक्त स्वाभाविक रूप से लीवर और वहां, दोनों जगह पर्याप्त मिल जाता है जिससे जीवनभर दोनों चीजें स्वस्थ व ताकतवर रहती हैं।

लकड़ी के फट्टों से बना तख्त या जमीन पर सोना या बेड पर, ब्रह्मचारी और सन्यासियों के लिए सही है, सीधे सोएंगे तो वहां रक्त ज्यादा दबाव नहीं बना पाएगा जिससे उनमें काम विकार कम पनपेंगे, लेकिन लिवर की समस्या अगर किसी को है तो, फिर चाहे वो ब्रह्मचारी हो या सन्यासी उसे भी ढीली ढाली खटिया पर ही सोना चाहिए,भोजन के बाद उसी पर विश्राम करना चाहिए, अगर पाचन और प्रजनन संस्थान हमेशा ठीक चाहते हैं तो।

अपने पूर्वज या आचार्य वात्स्यायन कोई पागल तो थे नहीं, ऋषि ही थे, प्रज्ञावान ही थे। आजकल विदेशों में खटिया को इंडियन बैड के नाम से खूब महंगे दामों में बेचा जा रहा है। अनेकानेक फायदे बताए जा रहे हैं, ऋषियों की बातों पर यकीन न हो तो कम से कम अंग्रेजो की ही नकल कर लो, वे तुम्हारे पूर्वजों के बताए मार्ग पर है कुछ मामलों में।

ॐ श्री परमात्मने नमः।            *सूर्यदेव*

मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।





Find the truthfulness in you, get the real you, power up yourself with divine blessings, dump all your sins...via... Shrimad Bhagwad Mahapuran🕉

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