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कपिल भगवान द्वारा माता देवहूती को दिया पूर्ण ज्ञान।।

श्रीमद भागवद पुराण सत्ताईसवाँ अध्याय [स्कंध ३] (मोक्ष रीति का पुरुष और विवेक द्वारा वर्णन ) दो -कपिल देव वर्णन कियो, प्रकृति पुरु से ज्ञान। सो सवैया अध्याय में, उत्तम कियो बखान ।। श्री कपिलजी बोले-हे माता ! प्रकृति रूपी देह में स्थित हुआ परमात्मा प्रकृति रूपी देह के गुण सुख, दुखादि, से लिप्त नहीं होता है । क्यों कि वह निर्विकार, निर्गुण, तथा अकर्ता है । जैसे जल से भरे अनेक पात्रों में अलग-अलग सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता हैं। परन्तु उसे तोड़ दिया जाय तो कुछ भी नहीं रहता है। इसी प्रकार आत्मा का ज्ञान सभी प्राणी में भरा हुआ है। जिन प्राणियों को यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है उन्हें फिर किसी प्रकार का दुख सुख नहीं व्यापता है । और वह फिर संसारी माया मोह में नही फँसता है । जिस प्रकार तिलों में तेल रहता है परन्तु किसी को दिखाई नहीं देता उसी प्रकार से आत्मा भी सबके शरीर में विद्यमान होने पर भी किसी को दिखाई नहीं देता है। परन्तु जब पुरुष (आत्मा) प्रकृति (शरीर) के सत्वादि गुणों में सब ओर से आसक्त हो जाता है तब वह अपने स्वरूप को भूलकर अहंकार में आसक्त हो जाता है। उसी के परिणाम स्वरूप वह अभिमान क