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ब्रह्मा की उत्पत्ति। श्री हरि विष्णु द्वारा दर्शन देना।।

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श्रीमद भगवद पुराण अध्याय ८ [स्कंध ३] विष्णु का ब्रम्हा जी को दर्शन होना दो०-नाभि कमल से प्रगट है, बृम्हा तपे अध्याय । सो अष्टम अध्याय में कथा कही दर्शाय ॥ मैत्रेय जी मुस्करा कर विदुर जी से बोले-हे विदुर जी !आपने लोक हित आकांक्षा से जो प्रश्न किया है वह बहुत हितकर है सो अब मैं मानव दुख नष्ट करने के हित आपके समक्ष भागवत पुराण को कहता हूँ जिसे शेष जी ने सन्त कुमारादिक के सन्मुख कहा था। फिर सन्त कुमार ने ब्रत धारण कर्ता सांख्यायन मुनि से कहा और उन से हमार गुरू पाराशर मुनि तथा वृहस्पति जी ने सुना, तब इसे पुलत्स्य ऋषि के कहने से पाराशर जी ने दयालु भाव से इस भागवत पुराण को मुझे सुनाया, सो हे वत्स इस भागवत पुराण को तुम्हारे सामने वर्णन करता हूँ ।। कैसे हुई ब्रह्मा की उत्पत्ति एवं ब्रह्मा के आसन, कमल का अद्भुत स्वरूप जिस समय जगत महाप्रलय के जल में विलीन हो गया उस समय चैतन्य शक्ति ही रही थी जो निद्रा दर्शाती हुई नेत्र बंद किये शेष शैया पर नारायण रूप भगवान आदि पुरुष ही थे। जो हजारों वर्ष तक जल में शेष शैया पर शयन करते रहे। जब हजारों वर्ष पश्चात नारायण ने अपनी प्रेरणा करी हुई काल रूप शक्ति से कर्...

मैत्रैय जी द्वारा विद्वान् विदुर जी को आत्मज्ञान देना।

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 श्री मद भागवद पुराण अध्याय ७ [स्कंध ३] (विदरजी द्वारा ज्ञानतत्व पूछना) दोहा-कहे वचन हितमय विदुर, मैत्रेय ऋषि सम्मान । सो सप्तम अध्याय में, वर्णी कथा व्खान। श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत ! मैत्रेयजी के प्रति विद्वान विदुरजी ने कहा-हे मुने ! चैतन्य स्वरूप को क्रियाओं का और निर्गुण के गुणों की लीला से किस प्रकार सम्बन्ध हो सकता है सो आप कहो। क्यों कि खेल में उपाय करना और खेल करने की इच्छा करना ये दोनों प्रतिक्रियायें किसी अन्य के होने पर ही होती हैं। परन्तु सदैव अन्य से निवृत और तृप्त हैं उस ईश्वर को खेल करने की इच्छा कैसे हुई सो कहो । क्यों कि ईश्वर ने अपनी त्रिगुणमयी माया से संसार का निर्माण किया और वे उसी से पालन करते हैं, और फिर उसी से संहार करते हैं जो देश, काल, अवस्था तथा अपने व पराये से नष्ट ज्ञान नहीं होता सो वह ईश्वर माया के साथ किस प्रकार से संयुक्त हो सकता है। जो जीव सर्व व्यापकत्व भाग से सम्पूर्ण देहों में स्थित है, उस जीव को कर्मो से दुर्भागीपन या क्लेश का होना किस प्रकार संभव हो सकता है। यह हमारे मन में अज्ञान संकट के कारण खेद है कृपा कर महान मोह रूप दुख को दूर कर...