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श्रीमद भागवद पुराण १९ अध्याय [स्कंध ४] क्यू राजा पृथू ने सौवाँ यज्ञ संपन्न नही किया?

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श्रीमद भागवद पुराण १५ अध्याय [स्कंध ४] (पृथु का जन्म एवं राज्याभिषेक )

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श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४] (वेणु का राज्याभिषेक )

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] ~~~~~~~~~~~~~~~~   *प्रभात दर्शन*   ~~~~~~~~ तेरा संगी कोई नहीं   सब स्वारथ बंधी लोइ,   मन परतीति न उपजै   जीव बेसास न होइ।। भावार्थ:-   कोई किसी का साथी नहीं है, सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति-भरोसा मन में उत्पन्न नहीं होता, तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता। अर्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है। जब संसार के सच को जान लेता है और इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है, तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होकर भीतर झांकता है !   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४] (वेणु का राज्याभिषेक ) दोहा- अंग सुमन जिमि वेनु को, राज्य मिला ज्यों आय। चौदहवें अध्याय में, दिया वृतांत वताय।। मेत्रैय जी द्वारा जब वेनु के शरीर से पृथु जन्म को कहा तो विदुर जी ने पूछा हे ब्रह्मन् ! राजा

श्री विष्णु के षार्षद(नंद-सुनंद) द्वारा विष्णु धाम को जाना।।१२ अध्याय[स्कंध ४]

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण बारहवां अध्याय[स्कंध ४] (ध्रुव जी का विष्णु धाम जाना) दो०-जिमि तप बल ध्रुव ने कियो विष्णु धाम को जाय। बारहवें अध्याय में कथा कही मन लाय ।। श्री शुकदेव जी बोले हैं राजा परीक्षित ! इतनी कथा सुनाय मैत्रेय जी बोले-हे विदुर ! ध्रुव जी ने जब इतने दिन राज्य किया और भगवान भजन करने की इच्छा हुई तो वह उत्कल को राज्य दे बन में बद्री नारायण धाम जाय तप करने लगे। वहाँ वह शुद्धान्तः करण से हरि के विराट स्वरूप को धारण कर ध्यान में लीन हो समाधिस्थ हो स्थूल शरीर को त्याग दिया । धुरव जी को लेने के लिये उस समय भगवान विष्णु के दो पार्षद अति सुंदर विमान लेकर आये। उन पार्षदों का नाम नंद सुनंद था । वे पार्षद चतुर्भ जी किशोर अवस्था वाले जिनके नेत्र लाल कमल के समान थे, वे हाथों में स्वर्ण गदा लिये सिर पर किरीट धारण किये बाजुओं में वाजू बंद बाँधे, रेशमी पीत वस्त्र धारण किये

क्यूं युध्द करने की जगह भगवान ने लिया वामन अवतार?

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श्रीमद भागवद पुराण पन्द्रहवां अध्याय[स्कंध ८] ( बलि द्वारा-स्वर्ग विजय ) दोहा -अब बलि की वर्णन कथा भाखी नो न्याय। यज्ञ विश्वजित एक में बलिको वभव लाय ॥१५॥  परीक्षित पूछने लगे-महाराज ! भगवान ने बलि से संसार के स्वामी होकर भी कृपण की तरह तीन पेड़ पृथ्वी क्यों मांगी और मिल जाने पर भी क्यों बांध लिया? शुकदेव जी बोले-देवासुर संग्राम में जब इन्द्र ने राजा बलि की स्त्री और प्राण दोनों हर लिये तो शुक्राचार्य ने प्रसन्न होकर बलि से विधि पूर्वक विश्वजित यज्ञ कराय और उसका अभिषेक कराया तदनन्तर अग्नि से सुवर्ण से मढ़ा एक रथ निकला जिसमें इन्द्र के घोड़ों के समान घोड़े जुते हुए थे, और सिंह के चिन्ह से अङ्कित ध्वजा थी तथा दिव्य धनुष, तरकस और कवच निकले, प्रहलाद ने एक माला दी जिस के फूल कमी कुम्हलाते न थे और शुक्राचार्य ने एक शंख दिया। इस तरह ब्राह्मणों ने युद्ध की सामग्री तैयार कर दी और फिर स्वस्तिवाचन किया। तब बलि उन ब्राह्मणों को नमस्कार कर प्रहलाद की आज्ञा लेकर भृगु के दिये हुए दिव्य रथ पर चढ़ा, माला पहनी, कवच धारणकर लिया, खग, धनुष और तरकस बांध लिया। तदनन्तर राक्षसों की सेना को साथ ले बलि ने इन्द्रपु

श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४]ध्रुव चित्र।।अधर्म की वंशावली।।

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श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४] (ध्रुव चित्र) दोहा-हरि भक्त ध्रुव ने करी जिस विधि हृदय लगाय। सो नोवें अध्याय में दीनी कथा सुनाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! फिर मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! इस प्रकार शिव पार्वती ने विवाह का प्रसंग कहकर हमने आपको सुनाया। अब हम तुम्हें ध्रुव चरित्र कहते हैं सो ध्यान पूर्वक सुनिये। अधर्म की वंशावली।। सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार, नारद जी, ऋभु, हंस, आरूणी, और यति आदि ब्रह्मा जी के पुत्रों ने नैष्टिक प्राचार्य होने के लिये गृहस्थाश्रम नहीं किया। अतः उनके द्वारा कोई वंशोत्पत्ति नहीं हुई। हे विदुर जी! बृह्मा जी का एक पुत्र अधर्म भी हुआ, उसकी मृषा नामा पत्नी से दम्भ नाम पुत्र और माया नाम कन्या उत्पन्न हुई। इन दोनों बहन भाई को पति पत्नी रूप बना कर मृत्यु ने गोद ले लिया। तब दम्भ की पत्नी माया से लोभ नाम का पुत्र और शठता नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई तब वे दोनों लोभ और शठता स्री पुरुष हुए। जिससे शठता में लोभ ने क्रोध नाम के पुत्र और हिंसा नाम की कन्या को उत्पन्न किया । तब वे दोनों भी पति पत्नी हुई। जिससे हिंसा नाम स्त्री में क्रोध ने काले नाम का स

श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ८[स्कंध४]पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना।।

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श्रीमद भागवद पुराण*आठवां अध्याय* [स्कंध४] (पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना)  दो.-पार्वती कहै सती ने ली जिमि अवतार। सो अष्टम अध्याय में वर्णित कथा उचार ।। श्री शुकदेव मुनि बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार दक्ष के यज्ञ की कथा कह कर मेत्रैय बोले-हे विदुर ! दक्ष प्रजापति की कन्या सती जी अपने शरीर को छोड़ कर हिमालय की स्त्री मेंना के उदर से प्रगट हुई। फिर भी वह पार्वती निरंतर भजन करके महादेव पति को पुनः इस प्रकार से प्राप्त हुई कि जिस प्रकार प्रलय काल से सोई हुई मायादि शक्ति ईश्वर को प्राप्त होती है। विदुर जी बोले-हे मैत्रेय जी ! आप उन जगदंबा पार्वती जी के जन्म का वृतांत पूर्ण रूप से सुनाईये कि फिर किस प्रकार से वे महादेव जी को पति रूप में प्राप्त कर सकीं। तब श्री मैत्रेय जी ! बोले हे विदुर जी ! जिस प्रकार पार्वती जी का हिमाचल की स्त्री मैनावती से जन्म हुआ जिस प्रकार तप करके भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया, सो वह सब कथा आपको सुनाता हूँ, आप इसे चित्त लगा कर सुनो। जिस समय दक्ष के यज्ञ में सती जी ने अपनी देह का त्याग किया था, उस समय सती जी ने अपने हृदय में महा

श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]।।प्रजापति दक्ष की कथा।।

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  श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४] (दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन) दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई। सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! विदुर जी से मेत्रैय ऋषि बोले कि, हे विदुर! जब शिवजी से ब्रह्मा जी ने इस प्रकार कहा तो भगवान शंकर जी ने कहा- हे ब्रह्माजी! सुनिये ! मैं उन बाल बुद्धियों के अपराध को न तो कुछ कहता हूँ और न कुछ चिन्ता करता हूँ। क्योंकि वे अज्ञानी पुरुष ईश्वर की माया से मोहित रहते हैं। अतः इसी कारण मैंने इन लोगों को उचित दण्ड दिया है। आप चाहें कि दक्ष का यही शिर फिर से हो जावे तो वह किसी प्रकार नहीं हो सकेगा । क्योंकि दक्ष का वह शिर तो यज्ञ की अग्नि में जल गया हैं। अतः ऐसा हो सकता है कि दक्ष का मुख बकरे का लगा दिया जाय । तथा भगदेवता के नेत्रों की कहते हो कि वह फिर होवें सो वह भी नहीं होगा, अतः इसके लिये यह है कि भगदेवता अपने भाग को मित्र देवता के नेत्रों से देखा करे। अब रही पूषा देवता के दाँतों की सो वह यजमान के दाँतों से पिसा हुआ अन्न भोजन किया फरें। अब उस यज्ञ में पत्थरों अथवा अस्त्र-शस्त्रों से जिन लोगों के

श्रीमद भागवद पुराण* छटवां अध्याय [स्कंध४]।।शंकर जी से प्रजापति दक्ष को पुनः जीवित।।

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श्रीमद भागवद पुराण* छटवां अध्याय [स्कंध४] ब्रह्मा सहित सब देवताओं को शंकर जी से प्रजापति दक्ष को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करना दोहा-देवन किन्ही प्रार्थना, ज्यों शिव जी सों आय। सों छट्वे अध्याय में, कही कथा दर्शाया॥  श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित! इस प्रकार विदुर जी से मेत्रैय जी कहने लगे-कि हे विदुर जी ! वीरभद्र ने जब दक्ष को मार डाला और भगदेवता की आँखों को निकाल लिया, तथा पुषादेव के दांत उखाड़ लिये, और भृगु जी की दाड़ी मूछों को उखाड़ लिया, तब सारी यज्ञशाला हवन सामग्री को विध्वंस कर दिया, और जब वह कैलाश पर्वत पर लौट गया तो, वहाँ उपस्थित देवता और ऋषि-मुनि ऋत्विज आदि सब ब्राह्मणों एवं सांसदों सहित अत्यन्त भयमीत हो वृह्म जी के निकट आये और जिस प्रकार वहाँ जो घटना व्यतीत हुई थी वह सब ज्योंकी त्यों कह सुनाई। क्यू ब्रह्मा जी एवं नारायण जी दक्ष के यज्ञ में नही गये थे? हे विदुर जी! यदि कोई यह शंका उत्पन्न करे कि क्या ब्रह्माजी दक्ष के यज्ञ में नहीं गये थे। सो जानना चाहिये कि इस होनहार को ब्रह्मा जी और श्री नारायण जी पहले से ही जानते थे, यही कारण था कि वह पहले से ही दक्ष के यज्ञ में नह