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सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।

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सबसे कमजोर बल होता है गुरुत्वाकर्षण बल और सबसे ताकतवर बल होता है नाभकीय बल | शिव इसी नाभकीय बल का प्रतीक है। जब नयूक्लेअर फाॅर्स कण्ट्रोल में होता है तो अपार ऊर्जा देता है , जब नियंत्रत से बाहर होता है तो सब कुछ नष्ट करने वाला होता है | ब्रह्मा को श्रृष्टि का  रचनाकार कहा गया है ये रचना शुरू होती है गुरुत्वाकर्षण बल से , जब कुछ गैस ग्रेविटी के कारन पास आ जाती है और फिर उनके  भार के कारन नयूक्लेअर रिएक्शन शुरू हो जाता है , जिससे फिर तारो और ग्रहों का निर्माण होता है | निर्माण होने के बाद अगर गति न हो तो फिर सब बेकार हो जाता है, गति ही स्थिरता देती है , खड़ी साइकिल तब ही सीधी रह सकती है जब वो गति कर रही हो नहीं तो गिर जाती है |  गतिमान जो है वोही बचता है , विष्णु वो गति है | Brahma = gravity , Shiv = Nuclear force , Vishu = force of motion or kinetic energy Brahma the creator, Shiv the destroyer, Vishnu the preserver आप किसी परमाणु  रिएक्टर को देखे , एक डोम का आकार , जहा रिएक्शन को कण्ट्रोल में रखने के लिए हैवी वाटर D20 बहता है ,  फिर...

श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ८[स्कंध४]पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना।।

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श्रीमद भागवद पुराण*आठवां अध्याय* [स्कंध४] (पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना)  दो.-पार्वती कहै सती ने ली जिमि अवतार। सो अष्टम अध्याय में वर्णित कथा उचार ।। श्री शुकदेव मुनि बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार दक्ष के यज्ञ की कथा कह कर मेत्रैय बोले-हे विदुर ! दक्ष प्रजापति की कन्या सती जी अपने शरीर को छोड़ कर हिमालय की स्त्री मेंना के उदर से प्रगट हुई। फिर भी वह पार्वती निरंतर भजन करके महादेव पति को पुनः इस प्रकार से प्राप्त हुई कि जिस प्रकार प्रलय काल से सोई हुई मायादि शक्ति ईश्वर को प्राप्त होती है। विदुर जी बोले-हे मैत्रेय जी ! आप उन जगदंबा पार्वती जी के जन्म का वृतांत पूर्ण रूप से सुनाईये कि फिर किस प्रकार से वे महादेव जी को पति रूप में प्राप्त कर सकीं। तब श्री मैत्रेय जी ! बोले हे विदुर जी ! जिस प्रकार पार्वती जी का हिमाचल की स्त्री मैनावती से जन्म हुआ जिस प्रकार तप करके भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया, सो वह सब कथा आपको सुनाता हूँ, आप इसे चित्त लगा कर सुनो। जिस समय दक्ष के यज्ञ में सती जी ने अपनी देह का त्याग किया था, उस समय सती जी ने अपने हृदय में...

श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]।।प्रजापति दक्ष की कथा।।

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  श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४] (दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन) दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई। सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! विदुर जी से मेत्रैय ऋषि बोले कि, हे विदुर! जब शिवजी से ब्रह्मा जी ने इस प्रकार कहा तो भगवान शंकर जी ने कहा- हे ब्रह्माजी! सुनिये ! मैं उन बाल बुद्धियों के अपराध को न तो कुछ कहता हूँ और न कुछ चिन्ता करता हूँ। क्योंकि वे अज्ञानी पुरुष ईश्वर की माया से मोहित रहते हैं। अतः इसी कारण मैंने इन लोगों को उचित दण्ड दिया है। आप चाहें कि दक्ष का यही शिर फिर से हो जावे तो वह किसी प्रकार नहीं हो सकेगा । क्योंकि दक्ष का वह शिर तो यज्ञ की अग्नि में जल गया हैं। अतः ऐसा हो सकता है कि दक्ष का मुख बकरे का लगा दिया जाय । तथा भगदेवता के नेत्रों की कहते हो कि वह फिर होवें सो वह भी नहीं होगा, अतः इसके लिये यह है कि भगदेवता अपने भाग को मित्र देवता के नेत्रों से देखा करे। अब रही पूषा देवता के दाँतों की सो वह यजमान के दाँतों से पिसा हुआ अन्न भोजन किया फरें। अब उस यज्ञ में पत्थरों अथवा अस्त्र-शस्त्रों से जिन लोगों...

श्रीमद भागवद पुराण* छटवां अध्याय [स्कंध४]।।शंकर जी से प्रजापति दक्ष को पुनः जीवित।।

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श्रीमद भागवद पुराण* छटवां अध्याय [स्कंध४] ब्रह्मा सहित सब देवताओं को शंकर जी से प्रजापति दक्ष को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करना दोहा-देवन किन्ही प्रार्थना, ज्यों शिव जी सों आय। सों छट्वे अध्याय में, कही कथा दर्शाया॥  श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित! इस प्रकार विदुर जी से मेत्रैय जी कहने लगे-कि हे विदुर जी ! वीरभद्र ने जब दक्ष को मार डाला और भगदेवता की आँखों को निकाल लिया, तथा पुषादेव के दांत उखाड़ लिये, और भृगु जी की दाड़ी मूछों को उखाड़ लिया, तब सारी यज्ञशाला हवन सामग्री को विध्वंस कर दिया, और जब वह कैलाश पर्वत पर लौट गया तो, वहाँ उपस्थित देवता और ऋषि-मुनि ऋत्विज आदि सब ब्राह्मणों एवं सांसदों सहित अत्यन्त भयमीत हो वृह्म जी के निकट आये और जिस प्रकार वहाँ जो घटना व्यतीत हुई थी वह सब ज्योंकी त्यों कह सुनाई। क्यू ब्रह्मा जी एवं नारायण जी दक्ष के यज्ञ में नही गये थे? हे विदुर जी! यदि कोई यह शंका उत्पन्न करे कि क्या ब्रह्माजी दक्ष के यज्ञ में नहीं गये थे। सो जानना चाहिये कि इस होनहार को ब्रह्मा जी और श्री नारायण जी पहले से ही जानते थे, यही कारण था कि वह पहले से ही दक्ष के यज्ञ मे...

श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४]।रूद्र अवतार एवं स्वरूप।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।।

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  श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४] दोहा- किया दक्ष यज्ञ आय जिमी, वीर रूद्र शिव गण। सो पंचम अध्याय में, कथा कही समझाय।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।। श्री शुकदेव मुनि कहने लगे कि है परिक्षित! जब विदुर जी को यह प्रसंग मैत्रेय जी ने सुनाया तो विदुर जी ने पूछा -हे मुने ! जब सती जी दक्ष के यहाँ देह त्याग कर गई तो शंकर भगवान के गणों ने दक्ष यज्ञ विवंश करना चाहा, परन्तु भृगु द्वारा उत्पन्न किये गये ऋभु नामक देवताओं ने उन्हें भोजशाला से मार मार कर बाहर निकाल दिया था। सो हे प्रभू ! वह शिव गण वहां से भाग कर कहाँ गये? और आगे क्या हुआ? सो सब कथा मुझे कृपा कर सुनाईये। तब मेत्रैय जी बोले-हे विदुर जी ! दक्ष द्वारा निरादर से सती द्वारा देह त्याग और अपने पार्षदों का ऋभुओं द्वारा भगा देने का समाचार भगवान शंकर जी ने जब नारद जी के मुखारविंद से सुना तो उन्हें अत्यंत क्रोध उत्पन्न हुआ जिसके कारण शिव ने अपने ओठों को दाँतों से दवा कर भयानक रूप से भारी अठ्हास करते हुये गंभीर नाद किया, और भूल से लिप्त अपनी जटाओं में से एक महातेज वाली जटा को उखाड़ कर पृथ्वी पर पटक कर देमारा। रूद्र अवतार एवं स्व...

सती द्वारा, देह त्याग के समय दक्ष को कहे गये वचन।श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [चतुर्थ स्कंध]

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  श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [चतुर्थ स्कंध] (सती जी का दक्ष के यज्ञ में देह त्याग करना) दो-निज पति का अपमान जब, देखा पितु के गेह। ता कारण से शिव प्रिया, त्याग दइ निज देह।। सती द्वारा, देह त्याग के समय दक्ष को कहे गये वचन श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! मैत्रेय जी ने इतनी कथा सुनाने के पश्चात कहा-हे विदुर जी ! इस प्रकार शिव जी ने अनेक प्रकार कह कर सतीजी को प्रजापति दक्ष के घर जाने से मना किया, और अपनी अर्धांगिनी के देह का दोनों ओर को विनाश बिचारते हुये, श्री महादेवजी इतना कहकर मौन हो गये परन्तु उस समय सतीजी की विचित्र दशा थी, वे कभी पिता के घर जाने की तीव्र इच्छा से आश्रम से बाहर आती थी, और कभी महादेव जी के भय के कारण अन्दर जाती थी इस प्रकार वह दुविधा में फंसी हुई कभी बाहर निकलते हैं और कभी अन्दर जाती थी। तब इस दुविधा के कारण और अपने बन्धु जनों के मिलने की आकांक्षा को भंग होते जानकर सती बहुत दुखी हुई जिससे उनका मन उदास हो गया, और नेत्रों से आँसुओं की धारा बहने लगी। जब सती की यह दशा हुई तो वह मूढ़ मति स्त्री स्वभाव के कारण शोक व क्रोध के कारण शिव को छोड़कर अकेली अपने पिता के ...

श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय[स्कंध४] (शिव तथा दक्ष का वैर होने का कारण)

 श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय[स्कंध४] (शिव तथा दक्ष का वैर होने का कारण) दोहा-जैसे शिव से दक्ष की, भयो भयानक द्वेष। सो द्वितीय अध्याय में वर्णन करें विशेष ।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! जब मैत्रेय जी ने सती के विषय में यह कहा तो विदुर जी ने पूछा - है वृह्यान् ! यह कथा सविस्तार कहिये कि दक्ष प्रजापति और शिवजी में क्यों और किस प्रकार वैर-भाव उत्पन्न हुआ। तब मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! एक समय सभी देवता आदि और ऋषी इत्यादि एक शुभ यज्ञ कार्य में जाकर एकत्रित हुए थे । उसमें ब्रह्मा जी तथा शिवजी भी आये हुये थे। तब उस महा सभा में वृह्माजी के पुत्र प्रजापति दक्ष भी पहुँचे । जिन्हें आया देखकर सभी देव ता तथा ऋषि-मुनि उनका आदर अभिवादन करने को अपने अपने आसनों से उठखड़े हुये और उन्हें प्रणाम आदि कर सम्मानित किया। परन्तु भगवान शिव और ब्रह्मा जी अपने आसन से नहीं उठे थे। अर्थात् इन्हीं दोनों ने दक्ष प्रजापति का अन्य सबों की तरह से आदर-सत्कार नहीं किया था। तब वह प्रजा पति दक्ष जगत गुरु ब्रह्मा जी को प्रणाम करके अपने आसन पर बैठ गये। तब दक्ष ने अपने मन में विचार किया कि वृह्माजी तो मेर...

श्रीमद भागवद पुराण * छठवां अध्याय * [स्कंध२] (पुरुष की विभूति वर्णन)

 श्रीमद भागवद पुराण * छठवां अध्याय * [स्कंध२] (पुरुष की विभूति वर्णन) दोहा-जिमि विराट हरि रूप का, अगम रूप कहलाय। सो छठवें अध्याय में दीये भेद बताय।। ब्रह्माजी बोले-हे पुत्र! भगवान के मुख से बाणी और अग्नि की उत्पत्ति है। विराट भगवान के सातों धातु के गायत्रीादि छन्दों का उत्पत्ति स्थान है। देवताओं का अन्न, हव्य और पितरों का अन्न, कव्य क्यों हैं और इनका उत्पत्ति स्थान मनुष्यों का अन्न भगवान की जिभ्या है यही सम्पूर्ण रसों का कारण है। समस्त पवन और प्राण का स्थान ईश्वर की नासिका है, तथा अश्वनी कुमार, औषधि वह मोह प्रमोद भी यही उत्पत्ति का स्थान भगवान का नासिक ही है। नेत्र रूप और तेज के उत्पत्ति स्थान हैं वर्ग और सूर्य का स्थान परमेश्वर के नेत्र गोलक हैं। भगवान के कान तीर्थ और दिशा का स्थान है, कर्ण। गोलक को आकाश और शब्द का उत्पत्ति स्थान जानना चाहिए । विराट भगवान का शरीर वस्तु के सारांशो का उत्पत्ति स्थान है । रोम वृक्ष है जिनसे यज्ञ सिद्ध होता है। केश- मेघ, दाड़ी 'बिजली, हाथ, पांव, नख क्रमशः- पत्थर व लोहे के विराट भगवान के उत्पत्ति स्थान हैं। भगवान को भुजा लोकपालों का उत्पत्तिस्...

गंगा जी का विस्तार वर्णन।। भगवाद्पदी- श्री गंगा जी।

श्रीमद भगवद पुराण *सत्रहवां अध्याय*[स्कंध ५] दोहा: कहयो गंग विस्तार सब, विधि पूर्वक दर्शाय। संकर्षण का स्तबन कियो रुद्र हर्षाय।। गंगा जी का जनम। शुकदेव जी बोले-परीक्षित! भगवान विष्णु ने राजा बलि को छलने के लिये जब वामन अवतार धारण कर यज्ञ में जाय साढ़ेतीन पग भूमि दान में ली थी, तब अपने स्वरूप को बढ़ाय कर तीनों लोकों को मापने के समय दाहिने चरण से पृथ्वी को बचाया और बाएँ चरण को ऊपर को उठाया तो उस चरण के अंगूठे से ब्रह्मांड का ऊपर का भाग फूट गया। उस छिन्द में से श्री गंगा की धारा ब्रह्माण्ड मार्ग से स्वर्ग पर आकर उतरी। यह श्री गंगा जी का जन्म भगवान विष्णु चरण कमलों के इसलिये इसका भगवत्पदी नाम हुआ। यद्यपि यह उस समय पृथ्वी पर नहीं उतरी थी हजार चौकड़ी युग के उपरान्त स्वर्ण के मस्तक पर आन कर पहुँची। पश्चात वह धारा देवलोक में आती है जहाँ ध्रुव जी अपने मस्तक पर धारण कर रहे हैं। पश्चात वह गंगा जी की धारा ध्रुवलोक से नीचे गिरती है जो उसे सप्त ऋषि धारण करते हैं तदनंतर यह सप्त ऋषियों के स्थान से नीचे गिर कर चंद्र मडल को आसेचन करती हुई, सुमेरु पर्वत पर बनी ब्रह्मा जी की नगरी में बहती हुई च...