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श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २१ [स्कंध४] (पृथु का अनुशासन वर्णन)

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] आप मुझे इसका कारण दें  प्यार में फिर से भरोसा होना।  आप मुझे सुरक्षित महसूस कराते हैं  पता है तुम कभी नहीं छोड़ोगे।  आपका स्पर्श संतोषजनक है  और मेरी जरूरतों को पूरा करता है।  आपका प्यार मुझे कमजोर बनाता है  फिर भी मुझे ताकत देता है।  मेरे पास तुम कभी नहीं हो  आश्चर्य या रहस्य में।  आप मुझे इसका कारण बताएं  बिना दिखावा के प्यार करना।

श्रीमद भागवद पुराण २० अध्याय [स्कंध४] (विष्णु द्वारा पृथु को उपदेश मिलना)

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  धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] 🥀🙏जय श्री कृष्ण🙏🥀 🚩अध्याय 1 श्लोक 26 और 27🚩 तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ ।   आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा। श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि । भावार्थ : इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा॥26 और 27वें का पूर्वार्ध॥ श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय [स्कंध४] (विष्णु द्वारा पृथु को उपदेश मिलना)  दोहा-पृथु को ज्यों श्री विष्णु ने, किया सुलभ उपदेश। सो बीसवें अध्याय में, वर्णन कियो विशेष ।। श्री मैत्रेय जी बोले-हे बिदुर जी! जब सब लोग अपने अपने स्थान को चले गये तो इंद्र को साथ ले, श्री नारायण जी राजा पृथु के पास आये, और इस...

श्रीमद भागवद पुराण १९ अध्याय [स्कंध ४] क्यू राजा पृथू ने सौवाँ यज्ञ संपन्न नही किया?

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण *उन्नीसवां अध्याय* [स्कंध ४] क्यू राजा पृथू ने सौवाँ यज्ञ संपन्न नही किया? ( पृथु का इन्द्र को मारने को उद्यत होना तब बृह्माजी द्वारा निवाग्ण करना ) दो०-अश्व हरण कियो इन्द्र ने, पृथु की यज्ञ सों आय। सो वर्णन कीयो सकल, उन्नीसवें अध्याय ।। मैत्रेयजी बोले-हे विदुर ! यह सब कार्य करने के पश्चात पृथ् ने सौ अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय करके वृह्ावर्त राजा देश के क्षेत्र में एक साथ दीक्षा नियम धारण किया । तब इन्द्र भयभीत हो यह समझने लगा कि यदि पृथु के सौ यज्ञ पूर्ण हो गये तो मेरा इन्द्रासन ही छिन जायगा ऐसा विचार कर वह कपटी इन्द्र पृथु के तेज को न सह सकने के कारण परम दुखी हो कर यज्ञ में विन्ध करने का उपाय करने लगा । जब पृथ के निन्यानवें अश्वमेध यज्ञ पूरे हो गये और सौवाँ अश्वमेध यज्ञ करके पृथु जी महाराज यज्ञ पति भगवान का पूज...

श्रीमद भागवद पुराण १७ अध्याय [स्कंध४] (पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग)

सुविचार।। "दर्पण" जब चेहरे का "दाग" दिखाता है, तब हम "दर्पण" नहीं तोडते, बल्की "दाग" साफ करते हैं | उसी प्रकार,  हमारी "कमी" बताने वाले पर "क्रोध" करने के बजाय अपनी "कमी" को दूर करना ही "श्रेष्ठता"है। धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध४] (पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग) दोहा-जिमि पृथ्वी दोहन कियो, नृप पृथु ने उद्योग। सत्रहवें अध्याय में वर्णन किया योग। मैत्रेय जी बोले-हे विदुर ! जब बन्दीजन तथा सूतगण, देवता आदि सभी अपने-अपने स्थान को चले गये तो उसके उपरान्त बहुत काल तक विचार करने वाले राजा पृथु ने धर्माअनुसार पृथ्वी पर राज्य किया। पृथु ने अपने राज्य के सभी वर्ण के लोगों को प्रसन्न किया। पृथु ने सभी का उचित सत्कार किया। एक बार पृथु के राज्य में ऐसा हुआ कि संपूर्ण भूमंडल अन...

श्रीमद भागवद पुराण १६अध्याय [स्कंध४] (पृथु का सूत गण द्वारा सतवन)

सुविचार  जो विद्या केवल पुस्तक में और जो सम्पत्ति दूसरों की मुठी में, वह दोनो ही निरर्थक है।। विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण * सोलहवां अध्याय *[स्कंध४] (पृथु का सूत गण द्वारा सतवन) दोहा- कीयौ सूत गण ने सभी, पृथु की सुयश बखान। सोलहवें अध्याय में, सो सब कियो निदान।। मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी! यद्यपि राजा पृथु ने अपनी बढ़ाई करने से रोकने के लिये सूत मागध बन्दीजनों को मना किया। परन्तु फिर भी वे अनेक प्रकार से स्तुति करते हुये यश का बखान करने लगे। सूतगणों ने कहा-हे पृथु! आपने अपनी माया से अवतार धारण किया है। अन्यथा आप साक्षात नारायण ही हैं। सो हम में आप के अनन्त चरित्र वर्णन करने की सामर्थ्य है। क्योंकि आपका यश चरित्र बखान करने में तो ब्रह्मा आदि की बुद्धि भी भ्रम में पड़ जाती है। हे महाराज पृथु ! आप धर्म करने वाले पुरुषों में सर्व श्रेष्ठ होंगे। आप लोकों की रक्ष...

श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४] (वेणु का राज्याभिषेक )

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श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १३ स्कंध[४]। राजा पृथू का जनम।।

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श्री विष्णु के षार्षद(नंद-सुनंद) द्वारा विष्णु धाम को जाना।।१२ अध्याय[स्कंध ४]

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श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ४]।ध्रुव का राज्य त्याग और तप को जाना।

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श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ४] (ध्रुव का राज्य त्याग और तप को जाना) दोहा-ग्यारहवें अध्याय में ध्रुव ने जतन बनाय। राज्य दिया निज पुत्र को, वन में पहुँचे जाय ।। श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार मैत्रेय जी ने विदुर जी को ध्रुवजी द्वारा लाख तीस हजार यक्षों को विनाश करने की कथा सुनाई । तत्पश्चात वह प्रसंग भी कहा कि जिस प्रकार स्वायंभुव मनु ने युद्ध स्थल पर आकर धुरव को हरि भक्ति का उपदेश करके युद्ध को बन्द कराया था, और कुवेर जी से संधि करा कर जाने दिया था। तब कुवेर अपने स्थान को चले गये थे और ध्रुव जी अपने नगर को चले आये थे सो हे विदुर जी ! अब हम धुरव जी का वह चित्र वर्णन करते हैं कि जिसमें वह अपना राज्य अपने पुत्र को देकर उत्तराखंड में तप करने को चले गये और अटल ध्रुव पद को प्राप्त हुये। ध्रुव जी का वंंश।। हे विदुर जी ! इस युद्धआदि से प्रथम ही ध्रुव जी का विवाह प्रजापति शिशुमार की भृमनी नाम की कन्या के साथ हो गया था । जिससे धुरव जी ने अपनी भृमनी नाम वाली भार्या से दो पुत्र उत्पन्न किये। जिन में १ का नाम कल्प और दूसरे का नाम वत्सर हुआ। धुरव जी की एक दूसरी स्त्री और...

क्यूं युध्द करने की जगह भगवान ने लिया वामन अवतार?

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श्रीमद भागवद पुराण पन्द्रहवां अध्याय[स्कंध ८] ( बलि द्वारा-स्वर्ग विजय ) दोहा -अब बलि की वर्णन कथा भाखी नो न्याय। यज्ञ विश्वजित एक में बलिको वभव लाय ॥१५॥  परीक्षित पूछने लगे-महाराज ! भगवान ने बलि से संसार के स्वामी होकर भी कृपण की तरह तीन पेड़ पृथ्वी क्यों मांगी और मिल जाने पर भी क्यों बांध लिया? शुकदेव जी बोले-देवासुर संग्राम में जब इन्द्र ने राजा बलि की स्त्री और प्राण दोनों हर लिये तो शुक्राचार्य ने प्रसन्न होकर बलि से विधि पूर्वक विश्वजित यज्ञ कराय और उसका अभिषेक कराया तदनन्तर अग्नि से सुवर्ण से मढ़ा एक रथ निकला जिसमें इन्द्र के घोड़ों के समान घोड़े जुते हुए थे, और सिंह के चिन्ह से अङ्कित ध्वजा थी तथा दिव्य धनुष, तरकस और कवच निकले, प्रहलाद ने एक माला दी जिस के फूल कमी कुम्हलाते न थे और शुक्राचार्य ने एक शंख दिया। इस तरह ब्राह्मणों ने युद्ध की सामग्री तैयार कर दी और फिर स्वस्तिवाचन किया। तब बलि उन ब्राह्मणों को नमस्कार कर प्रहलाद की आज्ञा लेकर भृगु के दिये हुए दिव्य रथ पर चढ़ा, माला पहनी, कवच धारणकर लिया, खग, धनुष और तरकस बांध लिया। तदनन्तर राक्षसों की सेना को साथ ले बलि ने इन्द...

श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४]ध्रुव चित्र।।अधर्म की वंशावली।।

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श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४] (ध्रुव चित्र) दोहा-हरि भक्त ध्रुव ने करी जिस विधि हृदय लगाय। सो नोवें अध्याय में दीनी कथा सुनाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! फिर मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! इस प्रकार शिव पार्वती ने विवाह का प्रसंग कहकर हमने आपको सुनाया। अब हम तुम्हें ध्रुव चरित्र कहते हैं सो ध्यान पूर्वक सुनिये। अधर्म की वंशावली।। सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार, नारद जी, ऋभु, हंस, आरूणी, और यति आदि ब्रह्मा जी के पुत्रों ने नैष्टिक प्राचार्य होने के लिये गृहस्थाश्रम नहीं किया। अतः उनके द्वारा कोई वंशोत्पत्ति नहीं हुई। हे विदुर जी! बृह्मा जी का एक पुत्र अधर्म भी हुआ, उसकी मृषा नामा पत्नी से दम्भ नाम पुत्र और माया नाम कन्या उत्पन्न हुई। इन दोनों बहन भाई को पति पत्नी रूप बना कर मृत्यु ने गोद ले लिया। तब दम्भ की पत्नी माया से लोभ नाम का पुत्र और शठता नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई तब वे दोनों लोभ और शठता स्री पुरुष हुए। जिससे शठता में लोभ ने क्रोध नाम के पुत्र और हिंसा नाम की कन्या को उत्पन्न किया । तब वे दोनों भी पति पत्नी हुई। जिससे हिंसा नाम स्त्री में क्रोध ने काले नाम का स...

श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]।।प्रजापति दक्ष की कथा।।

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  श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४] (दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन) दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई। सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! विदुर जी से मेत्रैय ऋषि बोले कि, हे विदुर! जब शिवजी से ब्रह्मा जी ने इस प्रकार कहा तो भगवान शंकर जी ने कहा- हे ब्रह्माजी! सुनिये ! मैं उन बाल बुद्धियों के अपराध को न तो कुछ कहता हूँ और न कुछ चिन्ता करता हूँ। क्योंकि वे अज्ञानी पुरुष ईश्वर की माया से मोहित रहते हैं। अतः इसी कारण मैंने इन लोगों को उचित दण्ड दिया है। आप चाहें कि दक्ष का यही शिर फिर से हो जावे तो वह किसी प्रकार नहीं हो सकेगा । क्योंकि दक्ष का वह शिर तो यज्ञ की अग्नि में जल गया हैं। अतः ऐसा हो सकता है कि दक्ष का मुख बकरे का लगा दिया जाय । तथा भगदेवता के नेत्रों की कहते हो कि वह फिर होवें सो वह भी नहीं होगा, अतः इसके लिये यह है कि भगदेवता अपने भाग को मित्र देवता के नेत्रों से देखा करे। अब रही पूषा देवता के दाँतों की सो वह यजमान के दाँतों से पिसा हुआ अन्न भोजन किया फरें। अब उस यज्ञ में पत्थरों अथवा अस्त्र-शस्त्रों से जिन लोगों...