श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २१ [स्कंध४] (पृथु का अनुशासन वर्णन)

धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

आप मुझे इसका कारण दें
 प्यार में फिर से भरोसा होना।
 आप मुझे सुरक्षित महसूस कराते हैं
 पता है तुम कभी नहीं छोड़ोगे।
 आपका स्पर्श संतोषजनक है
 और मेरी जरूरतों को पूरा करता है।
 आपका प्यार मुझे कमजोर बनाता है
 फिर भी मुझे ताकत देता है।
 मेरे पास तुम कभी नहीं हो
 आश्चर्य या रहस्य में।
 आप मुझे इसका कारण बताएं
 बिना दिखावा के प्यार करना।
श्रीमद भागवद  पुराण अध्याय २१ [स्कंध४]  (पृथु का अनुशासन वर्णन)  दोहा-जिमि पृथु हित प्रजा जन, कियी उपदेश महान। इक्कीसवें अध्याय में, दियौ संपूर्ण बखान।।   श्री मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी ! जब महाराजा पृथु अपने नगर में पधारे तो प्रजा ने राजा के निमित्त स्वागत में समस्त नगर को भाती फूल माला, तथा वस्त्रों और सुवर्ण के तोरणों से बहुत ही मन भावन सजाया। तब राजा अपनी सभा में पहुँचा तो उसमें ऐसा शोभायमान हुआ कि जैसे तारा गणों के मध्य चन्द्रमा उदय हुआ हो । तब राजा पृथु ने सब उपस्थित जनों को संबोधित कर इस प्रकार कहा -कि हे सभा सदो, मैं इस लोक का शासक हूँ, और मेरा कर्तव्य है कि प्रजा की हर प्रकार से रक्षा करो और वही कार्य करें जिससे प्रजा का हित हो। अतः मैंने जो नियम प्रजा हित में चोर आदि अपराधियों को दंडित करने को तथा अन्य सभी प्रजाहित कार्यों को करने के निमित्त निर्मित किया है वह सब यथा शक्ति पालन करूँगा। परन्तु प्रजा का भी कर्तव्य है कि वह बुरे कामों से बच कर राज्य हित का कार्य करें और परलोक में परमानन्द होने के लिये भगवान का स्मरण करे। अतः आप सब भी भगवान में मन लगा कर अपने-अपने धर्म से अपने-अपने कर्तव्य कामों का पालन करो। यदि आप द्वेष भाव को त्याग कर प्रजा हित का कार्य करोगे तो मैं आपका बड़ा उपकार मानूंगा । हे निर्मल बुद्धि वाले महानुभावों आप लोग मेरी बात का अनुमोदन करो। क्यों के शिक्षा देने वाले को, तथा कर्म करने वाले का, तथा कर्म का अनुमोदन करने वाले को परलोक में समान फल प्राप्त होता है। हे पूज्यनीय ! हे महात्माजनों ! जो मनुष्य ईश्वर को नहीं मानते हैं वे चिन्ता करने के योग्य होते हैं । अतः धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनकी प्राप्ती तो केवल आत्मा से ही होती है। परमात्मा के चरणों की भक्ति पापों को इस प्रकार नष्ट कर देती है कि, जैसे श्री गंगाजी पापों का शीघ्र नाश कर देती हैं। जो लोग भगवान की निरन्तर भक्ति एवं पूजा करते हैं, मैं उनके प्रति ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूँ कि, समृद्धि न होने पर भी सुख दुख को सहन करने से तप और विद्या के प्रकाश से राजकुल का तेज तिरिस्कार न कर सके । विद्वान जन द्वेष से रहित हो, सनातन धर्म का पालन वेद विधि से श्रद्धा पूर्वक पालन करते हैं। वे कभी दुखी नहीं रहते हैं । और ऐसे विद्वानों की चरण रज को सदैव मैं  मस्तक पर धारण करुँ ऐसी मेरी धारणा है । क्योंकि उस रज को धारण करने से संपूर्ण पाप शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार राजा पृथु की श्रद्धा भक्ति के उपदेश को सुनकर सभी उपस्थित जन राजा पृथु की अति प्रशंसा करने लगे। वे विद्वान जनतोक्ति-- देखो ! पुत्र सुकर्म के प्रभाव से पिता का पर लोक सुधर जाता है। क्योंकि अपने पापों के कारण ऋषियों के श्राप से दंडित राजा वेनु अपने पुत्र महाराजा पृथु के पुन्य प्रताप से अर्थात् सुकर्मों के प्रभाव से नरक से तर गया। इसी प्रकार हिरण्य कश्यप दैत्य होकर अपने कर्मों के प्रभाव से नरक का अधिकारी था । परन्तु भक्त प्रहलाद के शुक्र के प्रभाव से नरक से बचकर बैकुन्ठ का अधिकारी हुआ। हे आर्य पुत्र वीर वर ! आप बहुत वर्षों तक जीवों की रक्षा करते हुये प्रजा पालन करो। आपके स्वामित्व में हम सब प्रकार सुखी हैं। अतः आपको स्वामी देख हम लोग साक्षात् नारायण को ही अपना स्वामी मानते हैं। हे प्रभो ! हे नर नाथ! आपने हम लोगों को अपने ज्ञान प्रकाश से हमें अज्ञान रूप अंधकार में भटकने से पार कर दिया ।


श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २१ [स्कंध४]

(पृथु का अनुशासन वर्णन)

दोहा-जिमि पृथु हित प्रजा जन, कियी उपदेश महान।

इक्कीसवें अध्याय में, दियौ संपूर्ण बखान।।


श्री मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी ! जब महाराजा पृथु अपने नगर में पधारे तो प्रजा ने राजा के निमित्त स्वागत में समस्त नगर को भाती फूल माला, तथा वस्त्रों और सुवर्ण के तोरणों से बहुत ही मन भावन सजाया। तब राजा अपनी सभा में पहुँचा तो उसमें ऐसा शोभायमान हुआ कि जैसे तारा गणों के मध्य चन्द्रमा उदय हुआ हो । तब राजा पृथु ने सब उपस्थित जनों को संबोधित कर इस प्रकार कहा -कि हे सभा सदो, मैं इस लोक का शासक हूँ, और मेरा कर्तव्य है कि प्रजा की हर प्रकार से रक्षा करो और वही कार्य करें जिससे प्रजा का हित हो। अतः मैंने जो नियम प्रजा हित में चोर आदि अपराधियों को दंडित करने को तथा अन्य सभी प्रजाहित कार्यों को करने के निमित्त निर्मित किया है वह सब यथा शक्ति पालन करूँगा। परन्तु प्रजा का भी कर्तव्य है कि वह बुरे कामों से बच कर राज्य हित का कार्य करें और परलोक में परमानन्द होने के लिये भगवान का स्मरण करे। अतः आप सब भी भगवान में मन लगा कर अपने-अपने धर्म से अपने-अपने कर्तव्य कामों का पालन करो। यदि आप द्वेष भाव को त्याग कर प्रजा हित का कार्य करोगे तो मैं आपका बड़ा उपकार मानूंगा । हे निर्मल बुद्धि वाले महानुभावों आप लोग मेरी बात का अनुमोदन करो। क्यों के शिक्षा देने वाले को, तथा कर्म करने वाले का, तथा कर्म का अनुमोदन करने वाले को परलोक में समान फल प्राप्त होता है। हे पूज्यनीय ! हे महात्माजनों ! जो मनुष्य ईश्वर को नहीं मानते हैं वे चिन्ता करने के योग्य होते हैं । अतः धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनकी प्राप्ती तो केवल आत्मा से ही होती है। परमात्मा के चरणों की भक्ति पापों को इस प्रकार नष्ट कर देती है कि, जैसे श्री गंगाजी पापों का शीघ्र नाश कर देती हैं। जो लोग भगवान की निरन्तर भक्ति एवं पूजा करते हैं, मैं उनके प्रति ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूँ कि, समृद्धि न होने पर भी सुख दुख को सहन करने से तप और विद्या के प्रकाश से राजकुल का तेज तिरिस्कार न कर सके । विद्वान जन द्वेष से रहित हो, सनातन धर्म का पालन वेद विधि से श्रद्धा पूर्वक पालन करते हैं। वे कभी दुखी नहीं रहते हैं । और ऐसे विद्वानों की चरण रज को सदैव मैं मस्तक पर धारण करुँ ऐसी मेरी धारणा है । क्योंकि उस रज को धारण करने से संपूर्ण पाप शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार राजा पृथु की श्रद्धा भक्ति के उपदेश को सुनकर सभी उपस्थित जन राजा पृथु की अति प्रशंसा करने लगे।

पुत्रों द्वारा पिता का नरक से उद्धार।।

 वे विद्वान जनतोक्ति-- देखो ! पुत्र सुकर्म के प्रभाव से पिता का पर लोक सुधर जाता है। क्योंकि अपने पापों के कारण ऋषियों के श्राप से दंडित राजा वेनु अपने पुत्र महाराजा पृथु के पुन्य प्रताप से अर्थात् सुकर्मों के प्रभाव से नरक से तर गया। इसी प्रकार हिरण्य कश्यप दैत्य होकर अपने कर्मों के प्रभाव से नरक का अधिकारी था । परन्तु भक्त प्रहलाद के शुक्र के प्रभाव से नरक से बचकर बैकुन्ठ का अधिकारी हुआ। हे आर्य पुत्र वीर वर ! आप बहुत वर्षों तक जीवों की रक्षा करते हुये प्रजा पालन करो। आपके स्वामित्व में हम सब प्रकार सुखी हैं। अतः आपको स्वामी देख हम लोग साक्षात् नारायण को ही अपना स्वामी मानते हैं। हे प्रभो ! हे नर नाथ! आपने हम लोगों को अपने ज्ञान प्रकाश से हमें अज्ञान रूप अंधकार में भटकने से पार कर दिया ।

मुसीबत के तूफानों से लडने वालो को किनारों की चाहत नहीं होती है,
हौसला बुलंद हो तो कोई दीवार नहीं होती है,
जलते हुए चिराग  आँधियों से कहा करते है कि
उजाला देने वालों की कभी हार नहीं होती है
ज़िन्दगी के लिए  कभी मचल कर देखिए
चाँद भी हाथों में आयेगा कभी उछल कर देखिए
माना कि लम्बा है सफर और दूर है मंजिल
शुरुआत तो करिए कुछ दूर चल कर तो देखिए
फिर वही यादें पुरानी और आँखों में आँसु
कभी तो हंसा करिए  बहल कर  तो देखिए
वक़्त को बदलना जो हो अगर
अंधेरों को चीरना होगा
शमा के साथ ज़लिए
और
पिघल कर देखिए
नदियों की नहीं समन्दर की तलाश है मुझे ,

दिखावे की वफा की नहीं सच्चे दिल के वफा की तलाश है मुझे
लोगो के पीछे चलने से कुछ फायदा नही,
जो राह मुझे सबसे आगे ले जाये उसकी तलाश है मुझे  
Find the truthfulness in you, get the real you, power up yourself with divine blessings, dump all your sins...via... Shrimad Bhagwad Mahapuran🕉

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