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श्रीमद भागवद पुराण इकत्तीसवां अध्याय[स्कंध ४] (प्रचेताओं का चरित्र दर्शन )

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श्रीमद भागवद पुराण इकत्तीसवां अध्याय[स्कंध ४] (प्रचेताओं का चरित्र दर्शन ) दोहा- राज्य प्रचेता गण कियौ, प्रकटे दक्ष कुमार। इकत्तिसवें अध्याय में, कही कथा सुख सार ।। श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षत् ! विदुरजी से मुनि मैत्रेय जी ने आगे का वृतांत इस प्रकार वर्णन किया । मैत्रेय जी कहते हैं कि हे विदुर ! वे प्रचेता गण वृक्ष कन्या से विवाह कर अपने पिता प्राचीन वर्हि के नगर में आये । वहाँ राजा तो तप करने चला गया था यह समाचार मालूम किया । पश्चात मंत्रियों ने प्रचेताओं को वहाँ का राजा बना दिया वे सब बड़ी नीति पूर्वक राज्य करने लगे । उन प्रचेताओं ने उस वृक्ष कन्या में दक्ष नाम का एक पुत्र उत्पन्न किया। हे विदुर ! यह वही दक्ष था जिसने अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव का अपमान किया था । प्रजापति दक्ष के जनम सो वही दक्ष पहिले वृह्माजी का पुत्र था दूसरे जन्म में काल क्रमकी गति के अनुसार क्षत्री कुल में प्रचेताओं का पुत्र हुआ। यह आरंभ से ही हर काम में दक्ष था इसलिये इसका नाम दक्ष था। इस दक्ष ने ईश्वर की प्रेरणा से जैसी प्रजा की आवश्यकता थी वैसी ही प्रजा उत्पन्न की । संपूर्ण प्रजा की रक्षा ...

श्रीमद भगवद पुराण २६अध्याय [स्कंध४] (पुर बन के मृगयाञ्चल के स्वरूप और जागरणा वस्था कथन द्वारा संसार वर्णन )

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भगवद पुराण छब्बीसवाँ अध्याय [स्कंध४] (पुर बन के मृगयाञ्चल के स्वरूप और जागरणा वस्था कथन द्वारा संसार वर्णन ) दोहा- स्वप्न अौर जागृत समय सन्मति पावहि त्याग। विविधियोनि वर्णन कियो, कथा पूर्ण अनुराग ।। श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! मैत्रेय जी द्वारा विदुर जी से वर्णित कथा में राजा प्राचीन वहि से नारद जो करते हैं, कि हे राजन! वह शुरवीर राजा पुरंजन¹ एक समय बडे रथ² में जो कि शीघ्र चलने वाला³, और पाँच घोड़ों वाला⁴, जिसके बैंडी और पहिया⁵', था एक जुआ⁶',तीन⁷, वेणु की ध्वजा⁸, ,पाँच वंधन⁹" और पाँच घोड़ो की एक वागडोर¹⁰", जिसका एक ही सारथी¹¹", तथा जिसके बैठने का स्थान¹², दो धुरे¹³ व पाँच¹⁴ प्रकार की गति साथ रूप¹⁵ "पाँच¹⁶ प्रकार की सामिग्री वाले सुवर्ण¹⁷ जटित रथ पर चढकर, सुवर्ण का कवच पहन कर, तथा अक्षय¹⁸ वाणों से भरा तरकस, ...

श्रीमद भागवद पुराण * पच्चीसवां अध्याय *[स्कंध४] (जीव का विविधि संसार वृतांत)

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अखंड संकल्प प्रचण्ड पुरुषार्थ जब संकल्प अखंड नहीं होता, तब वह विकल्प बन जाता है। धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण * पच्चीसवां अध्याय *[स्कंध४] (जीव का विविधि संसार वृतांत) जिमि विधि होवे संसार यह वृतांत। पच्चीसवें अध्याय में वर्णी कथा सुखांत।। मैत्रेय जी बोले-हे बिदुर जी ! इधर तो यह प्रचेता लोग भगवान का दर्शन करके तथा वर प्राप्त कर के भी तप करने में लगे रहे। उधर राजा प्राचीन वह राज्य तथा कर्म में आसक्त रहा । तब एक दिन उसके यहाँ नारद जी ने आकर कहा-हे राजन्! आप उन कर्मों के द्वारा किस फल के प्राप्त होने की इच्छा करते हो संसार में दुख की हानि और सुख की प्राप्ति होना हो कल्याण नहीं है। नारद जी के ये बचन सुनकर प्राचीन वर्हि ने कहा-है वृह्मन् ! मेरी बुद्धि कर्मों में विधी हुई हैं अतः इसी कारण से मैं मोक्ष रूपी आनंद से अपरिचित हूँ, सो अब आप ही मुझे ऐसा ...

श्रीमद भागवद पुराण चौबीसवां अध्याय [स्कंध ४] । रुद्र गत कथा ।

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श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १३ स्कंध[४]। राजा पृथू का जनम।।

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण * तेरहवां अध्याय * स्कंध[४] (राज अंग का वृतांत) दो: ध्रुव नृप के वंशज भये,अंग नाम भूपाल। तेरहवें अध्याय में,कहें उन्ही का हाल। श्री शुकदेव जी बोले-हे भारत ! इस प्रकार ध्रुव का देव लोक आदि में होते हुए ध्रुव पद को प्राप्त होने के बाद मैत्रेयजी कहने लगे-हे विदुर! अपने पिता ध्रुव से राज्य पाने के पश्चात उत्कल की धारणा बदल गई थी जिसमें वह पिता के दिये राज्य तथा चक्रवर्तीपन तथा राज्य लक्ष्मी और सिंहासन की इच्छा नहीं करता था। क्योंकि वह आत्मज्ञानी होने के कारण भगवान को अर्थात् परमात्मा को सभी आत्माओं में विद्यमान देखता था अतः राज्य के मंत्रियों आदि ने उसे पागल (उन्मत्त) जान कर राज्य सिंहासन से हटाकर उसके स्थान पर उसके छोटे भाई राम के पुत्र वत्सर को राजा बना दिया। उस वत्सर ने अपनी भार्या स्वर्वीथि में छः पुत्र उत्पन्न किये, जिनके, १-पुष्...

ध्रुव को हरि दर्शन होना तथा अपने राज्य को प्राप्त होना।।अध्याय १० [स्कंध ४]

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श्रीमद भागवद पुराण दसवां अध्याय [स्कंध ४] (ध्रुव को हरि दर्शन होना तथा अपने राज्य को प्राप्त होना) दो -हरि दर्शन से ध्रुव लियो, जैसे शुभ वरदान। सौ दसवें अध्याय में, कीनी कथा व्खान।। शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार ध्रुव कथा को सुनाते हुये मैत्रेय जी ने विदुर जी से कहा-हे विदुर ! भगवान श्री नारायण देवताओं को समझा कर स्वयं तो अंतर्ध्यान हो गये, और संपूर्ण देवता लोग हरि चर्चा करते हुये स्वर्ग लोक को चले गये। तब भगवान राम अपने लोक में विराजमान हो ध्रुव को देखने का विचार करने लगे। उन्होंने देवताओं के कष्ट को दूर करने के लिये अपने चतुर्भुज रूप से गरुड़ पर सवारी करके मधुवन में आये ध्रुव को दर्शन दिया। जब ध्रुव ने अपने हृदय में गरुड़ पर सवार हुये भगवान चतुर्भुज रूप नारायण का दर्शन किया तो वह अति प्रसन्न हुआ परन्तु अपनी समाधि को लगाये रखा। वह नेत्र बंद किये पर्वत समाधि लगाये भगवान गरुड़ध्वज के दर्शन करने लगा जब भगवान यह माना कि यह ध्रुव बालक इस प्रकार मेरे दर्शन करने पर भी अपनी समाधि न खोलेगा तो वे तुरन्त ध्रुव के हृदय से अंतर्ध्यान हो गये। जब ध्रुव ने अपने हृदय में श्री नारायण को न ...

श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]।।प्रजापति दक्ष की कथा।।

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  श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४] (दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन) दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई। सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! विदुर जी से मेत्रैय ऋषि बोले कि, हे विदुर! जब शिवजी से ब्रह्मा जी ने इस प्रकार कहा तो भगवान शंकर जी ने कहा- हे ब्रह्माजी! सुनिये ! मैं उन बाल बुद्धियों के अपराध को न तो कुछ कहता हूँ और न कुछ चिन्ता करता हूँ। क्योंकि वे अज्ञानी पुरुष ईश्वर की माया से मोहित रहते हैं। अतः इसी कारण मैंने इन लोगों को उचित दण्ड दिया है। आप चाहें कि दक्ष का यही शिर फिर से हो जावे तो वह किसी प्रकार नहीं हो सकेगा । क्योंकि दक्ष का वह शिर तो यज्ञ की अग्नि में जल गया हैं। अतः ऐसा हो सकता है कि दक्ष का मुख बकरे का लगा दिया जाय । तथा भगदेवता के नेत्रों की कहते हो कि वह फिर होवें सो वह भी नहीं होगा, अतः इसके लिये यह है कि भगदेवता अपने भाग को मित्र देवता के नेत्रों से देखा करे। अब रही पूषा देवता के दाँतों की सो वह यजमान के दाँतों से पिसा हुआ अन्न भोजन किया फरें। अब उस यज्ञ में पत्थरों अथवा अस्त्र-शस्त्रों से जिन लोगों...