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श्रीमद भागवद पुराण * पच्चीसवां अध्याय *[स्कंध४] (जीव का विविधि संसार वृतांत)

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अखंड संकल्प प्रचण्ड पुरुषार्थ जब संकल्प अखंड नहीं होता, तब वह विकल्प बन जाता है। धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण * पच्चीसवां अध्याय *[स्कंध४] (जीव का विविधि संसार वृतांत) जिमि विधि होवे संसार यह वृतांत। पच्चीसवें अध्याय में वर्णी कथा सुखांत।। मैत्रेय जी बोले-हे बिदुर जी ! इधर तो यह प्रचेता लोग भगवान का दर्शन करके तथा वर प्राप्त कर के भी तप करने में लगे रहे। उधर राजा प्राचीन वह राज्य तथा कर्म में आसक्त रहा । तब एक दिन उसके यहाँ नारद जी ने आकर कहा-हे राजन्! आप उन कर्मों के द्वारा किस फल के प्राप्त होने की इच्छा करते हो संसार में दुख की हानि और सुख की प्राप्ति होना हो कल्याण नहीं है। नारद जी के ये बचन सुनकर प्राचीन वर्हि ने कहा-है वृह्मन् ! मेरी बुद्धि कर्मों में विधी हुई हैं अतः इसी कारण से मैं मोक्ष रूपी आनंद से अपरिचित हूँ, सो अब आप ही मुझे ऐसा ...

श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४]।रूद्र अवतार एवं स्वरूप।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।।

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  श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४] दोहा- किया दक्ष यज्ञ आय जिमी, वीर रूद्र शिव गण। सो पंचम अध्याय में, कथा कही समझाय।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।। श्री शुकदेव मुनि कहने लगे कि है परिक्षित! जब विदुर जी को यह प्रसंग मैत्रेय जी ने सुनाया तो विदुर जी ने पूछा -हे मुने ! जब सती जी दक्ष के यहाँ देह त्याग कर गई तो शंकर भगवान के गणों ने दक्ष यज्ञ विवंश करना चाहा, परन्तु भृगु द्वारा उत्पन्न किये गये ऋभु नामक देवताओं ने उन्हें भोजशाला से मार मार कर बाहर निकाल दिया था। सो हे प्रभू ! वह शिव गण वहां से भाग कर कहाँ गये? और आगे क्या हुआ? सो सब कथा मुझे कृपा कर सुनाईये। तब मेत्रैय जी बोले-हे विदुर जी ! दक्ष द्वारा निरादर से सती द्वारा देह त्याग और अपने पार्षदों का ऋभुओं द्वारा भगा देने का समाचार भगवान शंकर जी ने जब नारद जी के मुखारविंद से सुना तो उन्हें अत्यंत क्रोध उत्पन्न हुआ जिसके कारण शिव ने अपने ओठों को दाँतों से दवा कर भयानक रूप से भारी अठ्हास करते हुये गंभीर नाद किया, और भूल से लिप्त अपनी जटाओं में से एक महातेज वाली जटा को उखाड़ कर पृथ्वी पर पटक कर देमारा। रूद्र अवतार एवं स्व...

श्रीमद भागवद पुराण तैंतीसवा अध्याय * [स्कंध३]माता देवहूति का देह त्याग।।

 *श्रीमद भागवद पुराण तैंतीसवा अध्याय * [स्कंध३] (देवहूति को कपिल जी द्वारा ज्ञान धन लाभ होना) दो.-कपिल कियो उपदेश जो, लियो मुक्ति मग पाय।। तेतीसवें अध्याय में, वर्णन कियो सुनाये ।। श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षत से कहा हे राजा! इस प्रकार मैत्रेय जी ने विदुर जी को यह प्रसंग सुनाया जो कि कपिल देव भगवान ने अपनी माता देवहूति के लाभार्थ कहा था। तब समस्त प्रसंग एवं कथा रूपी ज्ञान को सुन कर देवहूति ने कपिल देव भगवान से कहा-हे प्रभो ! आपके ज्ञान रूप प्रकाश से मेरे मन का मोह रूपी अंधकार को दूर हो गया है, मैं आपको बारम्बार प्रणाम करती हूँ हे देव ! आपके जिस स्वरूप को वृम्हा जी ने भी केवल ध्यान में ही देखा है और जो स्वयं आपके नाभि कमल से उत्पन्न होकर संसार की रचना करते हैं वे भी आपके साक्षात दर्शन नहीं कर सकते हैं। हे प्रभो ! सत्य संकल्प और हजारों अद्भुत शक्ति वाले जिनके उदर में यह संपूर्ण सृष्टि प्रलय काल में समा जाती हैं, तब आप स्वयं अकेले रह कर एक बालक का स्वरूप धारण करके बट पत्र क्षीरसागर में विराज मान रहते हो सो प्रभु ! हे विभु ! पापियों को दंड देने के निमित्त तथा भक्तजनों के ऐश्वर्य को ...

श्रीमद भगवद पुराण ईक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध ३]। विष्णुसार तीर्थ।

शतरुपा और स्वयंभुव मनु द्वारा सृष्टि उत्पत्ति   कर्दम  ऋषि का देवहूति के साथ विवाह दो-ज्यों मुनि ने देवहूति का, ऋषि कर्दम के संग। व्याह किया जिमि रुप से, सो इस माहि प्रसंग। श्री शुकदेव जी ने परीक्षित राजा ने कहा-हे राजन् ! इस प्रकार सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन करते हुये मैत्रेय जी ने कहा-हे विदुर जी ! हम कह चुके हैं कि जब पृथ्वी स्थिर हो चुकी तब श्री परब्रह्म प्रभु की माया से चौबीस तत्व प्रकट हुए और जब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को त्याग दिया था जिस के दाये अंग से स्वायम्भुव मनु और बाएं अंग से शतरूपा उत्पन्न हुये। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें आज्ञा दी कि पहिले तुम श्री नारायण के तप और स्मरण करो तत्पश्चात परस्पर विवाह करके संसारी जीवों की उत्पत्ति करना । तब ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर स्वायंभुव मनु और शतरूपा दोनों ही वन को श्री नारायण जी की तपस्या करने चले गये। पश्चात, उनके बन जाने के ब्रह्मा जी ने श्री नारायण जी से सृष्टि उत्पन्न करने की सामर्थ प्राप्त करने के लिये अनेक प्रार्थना की तो नारायण जी ने उन्हें ध्यान में दर्शन देकर यह उपदेश किया था कि हे वृम्हा जी ! अब तुम्हारा शरीर शुद्ध हो गय...