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श्रीमद भागवद पुराण तेईसवां अध्याय [स्कंध४] (पृथु का विष्णु लोक गमन)

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] https://anchor.fm/shrimad-bhagwad-mahapuran अस्तीत्येवोपलब्धव्यस्तत्त्वभावेन चोभयोः ।   अस्तीत्येवोपलब्धस्य तत्त्वभावः प्रसीदति ॥13॥ वह ‘है’ - इस प्रकार ही उपलब्ध करने योग्य है, और तत्वभाव से भी । दोनों में से जिसे ‘है’ - इस प्रकार की उपलब्धि हो गयी है, तात्विक स्वरुप उसके अभिमुख हो जाता है । The Self should be apprehended as existing and also as It really is. Of these two (aspects), to him who knows It to exist, Its true nature is revealed. #कठोपनिषद् [ 2-III-13 ] श्रीमद भागवद पुराण तेईसवां अध्याय [स्कंध४] (पृथु का विष्णु लोक गमन) दो-ज्यों पतिनी युत नृप पृथु, लो समाधि बन जाय। सो सब ये वर्णन कियो, तेईसवें अध्याय ।। मैत्रेय जी बोले-हे विदुर! राजा पृथु ने जिस प्रयोजन के लिये जन्म धारण किया था। सो ईश्वर आज्ञा से प्रजा पालनादि सब कर्म पूर्ण रूप से पूर्ण कि

Shree ram ki kavita, kahani (chaand ko hai ram se shikayat)

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] *चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है कि दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं* *सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है* *और राम भी उस की बात से* *सहमत हो कर उसे वरदान दे* *बैठते हैं आइये देखते हैं ।*   *जब चाँद का धीरज छूट गया ।*   *वह रघुनन्दन से रूठ गया ।*   *बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है ।*   *स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है ।* *तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है ।*   *हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है ।*   *सीता के रूप को हम ही ने सँवारा है ।*   *चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है ।* *जिस वक़्त याद में सीता की ,*   *तुम चुपके - चुपके रोते थे ।*   *उस वक़्त तुम्हारे संग में बस ,