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शुकदेव जी द्वारा श्रीमद भागवत आरंभ एवं विराट रूप का वर्णन।।

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श्रीमद भागवद  पुराण द्वतीय स्कंध प्रारंभ  प्रथम अध्याय ॥ मंगलाचरण ॥ दोहा-गिरजा सुत शंकर सुवन, आदि पूज्य प्रिय देव । विद्या दायक ज्ञान देउ, शरण चरण में लेव ॥ १ ॥ आदि अनादि अनंत में, व्यापक रहत हमेश । एक रदन करिवर बदन, दीजै ज्ञान गणेश ॥२॥ नरतन दुरलभ प्राप्त होय,पाहि न याहि गमाय । नारायण वित धारिये, पाष क्षार हवै जाय ॥ ३ ॥ जग नायक को ध्यान धरि, टरै पाप को भार । भव सागर के भंवर से, होय अकेला पार ॥ ४ ॥ ।।प्रथम अध्याय ।। (शुकदेव जी द्वारा श्रीमद भागवत आरंभ एवं विराट रूप का वर्णन) दोहा-जिस प्रकार हरि रूप का, होय हृदय में ध्यान ।  वर्णन करू प्रसंग वह, देउ सरस्वती ज्ञान ।। श्री शुकदेवजी बोले-हे राजन् ! जो संसारी मनुष्य आत्म ज्ञान से निन्तात अनभिज्ञ रहते हैं, उन्हें अनेक बिषय सुनने चाहिए क्योंकि यदि वे दिन रात इन्हीं सांसारिक विषयों के झंझट में पड़े रहेंगे तो वे कुछ भी नहीं जान पायेंगे। ऐसे पुरुषों की आयु के दिवस कुछ तो निन्द्रा में व्यतीत हो जाते हैं और शेष स्रो,पुत्र तथा धन की तृष्णा में व्यतीत हो जाते हैं। ऐसे मनुष्य लोक पर लोक में पितृ पुरुषों के उदाहरण को प्रत्यक्ष देखते हैं क...