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श्रीमद भागवद पुराण १७ अध्याय [स्कंध४] (पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग)

सुविचार।। "दर्पण" जब चेहरे का "दाग" दिखाता है, तब हम "दर्पण" नहीं तोडते, बल्की "दाग" साफ करते हैं | उसी प्रकार,  हमारी "कमी" बताने वाले पर "क्रोध" करने के बजाय अपनी "कमी" को दूर करना ही "श्रेष्ठता"है। धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध४] (पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग) दोहा-जिमि पृथ्वी दोहन कियो, नृप पृथु ने उद्योग। सत्रहवें अध्याय में वर्णन किया योग। मैत्रेय जी बोले-हे विदुर ! जब बन्दीजन तथा सूतगण, देवता आदि सभी अपने-अपने स्थान को चले गये तो उसके उपरान्त बहुत काल तक विचार करने वाले राजा पृथु ने धर्माअनुसार पृथ्वी पर राज्य किया। पृथु ने अपने राज्य के सभी वर्ण के लोगों को प्रसन्न किया। पृथु ने सभी का उचित सत्कार किया। एक बार पृथु के राज्य में ऐसा हुआ कि संपूर्ण भूमंडल अन...

श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ४]।ध्रुव का राज्य त्याग और तप को जाना।

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श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ४] (ध्रुव का राज्य त्याग और तप को जाना) दोहा-ग्यारहवें अध्याय में ध्रुव ने जतन बनाय। राज्य दिया निज पुत्र को, वन में पहुँचे जाय ।। श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार मैत्रेय जी ने विदुर जी को ध्रुवजी द्वारा लाख तीस हजार यक्षों को विनाश करने की कथा सुनाई । तत्पश्चात वह प्रसंग भी कहा कि जिस प्रकार स्वायंभुव मनु ने युद्ध स्थल पर आकर धुरव को हरि भक्ति का उपदेश करके युद्ध को बन्द कराया था, और कुवेर जी से संधि करा कर जाने दिया था। तब कुवेर अपने स्थान को चले गये थे और ध्रुव जी अपने नगर को चले आये थे सो हे विदुर जी ! अब हम धुरव जी का वह चित्र वर्णन करते हैं कि जिसमें वह अपना राज्य अपने पुत्र को देकर उत्तराखंड में तप करने को चले गये और अटल ध्रुव पद को प्राप्त हुये। ध्रुव जी का वंंश।। हे विदुर जी ! इस युद्धआदि से प्रथम ही ध्रुव जी का विवाह प्रजापति शिशुमार की भृमनी नाम की कन्या के साथ हो गया था । जिससे धुरव जी ने अपनी भृमनी नाम वाली भार्या से दो पुत्र उत्पन्न किये। जिन में १ का नाम कल्प और दूसरे का नाम वत्सर हुआ। धुरव जी की एक दूसरी स्त्री और...

श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]।।प्रजापति दक्ष की कथा।।

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  श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४] (दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन) दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई। सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! विदुर जी से मेत्रैय ऋषि बोले कि, हे विदुर! जब शिवजी से ब्रह्मा जी ने इस प्रकार कहा तो भगवान शंकर जी ने कहा- हे ब्रह्माजी! सुनिये ! मैं उन बाल बुद्धियों के अपराध को न तो कुछ कहता हूँ और न कुछ चिन्ता करता हूँ। क्योंकि वे अज्ञानी पुरुष ईश्वर की माया से मोहित रहते हैं। अतः इसी कारण मैंने इन लोगों को उचित दण्ड दिया है। आप चाहें कि दक्ष का यही शिर फिर से हो जावे तो वह किसी प्रकार नहीं हो सकेगा । क्योंकि दक्ष का वह शिर तो यज्ञ की अग्नि में जल गया हैं। अतः ऐसा हो सकता है कि दक्ष का मुख बकरे का लगा दिया जाय । तथा भगदेवता के नेत्रों की कहते हो कि वह फिर होवें सो वह भी नहीं होगा, अतः इसके लिये यह है कि भगदेवता अपने भाग को मित्र देवता के नेत्रों से देखा करे। अब रही पूषा देवता के दाँतों की सो वह यजमान के दाँतों से पिसा हुआ अन्न भोजन किया फरें। अब उस यज्ञ में पत्थरों अथवा अस्त्र-शस्त्रों से जिन लोगों...

राजा परीक्षित का कलयुग को अभय देना।। कलयुग के निवास स्थान।।

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  परीक्षित का भूमि और धर्म को आश्वासन और कलियुग के वास-स्थान का निरूपण।। श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का सत्रहवां आध्यय [स्कंध १] दो० क्यो परीक्षित नृपति जस निग्रह कलियुग राज ।  सोइ सत्रहवे अध्याय में कथा वर्णी सुख लाज ।। १७।।                  Kalyug and raja parikshit conversation  सूतजी कहने लगे कि, वहाँ उस सरस्वती के तट पर राजा परीक्षित ने गौ और बैल को अनाथ की तरह पिटते हुये देखा और उसके पास खड़े हुए हाथ में लठ लिये एक शूद्र को देखा जो राजाओं का सा वेष किरीट मुकुट आदि धारण किये था। वह बैल कमलनाथ के समान श्वेत वर्ण था और डर के मारे बार-बार गोबर और मूत्र करता था और शूद्र को ताड़ना के भय से कांपता हुआ एक पाँव से चलने को घिसटता था। सम्पूर्ण धर्म कार्यों के संपादन करने वाली गौ को, शूद्र के पाँवों की ताड़ना से बड़ी व्यथित देखी। बछड़े से हीन उस गौ के मुख पर आँसुओं की धारा बह रही थी और वह घास चरने की इच्छा करती थी। यह दशा देखकर राजा ने बाण चढा कर मेघ की सी गम्भीर वाणी से ललकार कर कहा-हे अधर्मी तू कौन है जो मेरे होते हुए, अन्याय से इन ...

श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४]।रूद्र अवतार एवं स्वरूप।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।।

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  श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४] दोहा- किया दक्ष यज्ञ आय जिमी, वीर रूद्र शिव गण। सो पंचम अध्याय में, कथा कही समझाय।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।। श्री शुकदेव मुनि कहने लगे कि है परिक्षित! जब विदुर जी को यह प्रसंग मैत्रेय जी ने सुनाया तो विदुर जी ने पूछा -हे मुने ! जब सती जी दक्ष के यहाँ देह त्याग कर गई तो शंकर भगवान के गणों ने दक्ष यज्ञ विवंश करना चाहा, परन्तु भृगु द्वारा उत्पन्न किये गये ऋभु नामक देवताओं ने उन्हें भोजशाला से मार मार कर बाहर निकाल दिया था। सो हे प्रभू ! वह शिव गण वहां से भाग कर कहाँ गये? और आगे क्या हुआ? सो सब कथा मुझे कृपा कर सुनाईये। तब मेत्रैय जी बोले-हे विदुर जी ! दक्ष द्वारा निरादर से सती द्वारा देह त्याग और अपने पार्षदों का ऋभुओं द्वारा भगा देने का समाचार भगवान शंकर जी ने जब नारद जी के मुखारविंद से सुना तो उन्हें अत्यंत क्रोध उत्पन्न हुआ जिसके कारण शिव ने अपने ओठों को दाँतों से दवा कर भयानक रूप से भारी अठ्हास करते हुये गंभीर नाद किया, और भूल से लिप्त अपनी जटाओं में से एक महातेज वाली जटा को उखाड़ कर पृथ्वी पर पटक कर देमारा। रूद्र अवतार एवं स्व...

श्रीमद भगवद पुराण ईक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध ३]। विष्णुसार तीर्थ।

शतरुपा और स्वयंभुव मनु द्वारा सृष्टि उत्पत्ति   कर्दम  ऋषि का देवहूति के साथ विवाह दो-ज्यों मुनि ने देवहूति का, ऋषि कर्दम के संग। व्याह किया जिमि रुप से, सो इस माहि प्रसंग। श्री शुकदेव जी ने परीक्षित राजा ने कहा-हे राजन् ! इस प्रकार सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन करते हुये मैत्रेय जी ने कहा-हे विदुर जी ! हम कह चुके हैं कि जब पृथ्वी स्थिर हो चुकी तब श्री परब्रह्म प्रभु की माया से चौबीस तत्व प्रकट हुए और जब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को त्याग दिया था जिस के दाये अंग से स्वायम्भुव मनु और बाएं अंग से शतरूपा उत्पन्न हुये। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें आज्ञा दी कि पहिले तुम श्री नारायण के तप और स्मरण करो तत्पश्चात परस्पर विवाह करके संसारी जीवों की उत्पत्ति करना । तब ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर स्वायंभुव मनु और शतरूपा दोनों ही वन को श्री नारायण जी की तपस्या करने चले गये। पश्चात, उनके बन जाने के ब्रह्मा जी ने श्री नारायण जी से सृष्टि उत्पन्न करने की सामर्थ प्राप्त करने के लिये अनेक प्रार्थना की तो नारायण जी ने उन्हें ध्यान में दर्शन देकर यह उपदेश किया था कि हे वृम्हा जी ! अब तुम्हारा शरीर शुद्ध हो गय...

जय विजय के तीन जनम एवं मोक्ष प्राप्ति।

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  Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping. तंत्र--एक कदम और आगे।  नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक। श्रीमद भगवद पुराण प्रथम अध्याय-सातवां स्कन्ध प्रारम्भ दो०-कुल पन्द्रह अध्याय हैं, या सप्तम स्कंध ।  वर्णन श्री शुकदेवजी उत्तम सकल निबन्ध ।। हिरण्यकश्यप के वंश की, हाल कहूँ समय ।  या पहले अध्याय में, दीयो बन्श बताय।॥ परीक्षित ने पूछा-हे शुकदेव जी ! जो ईश्वर सब प्राणियों में समान दृष्टि रखते हैं, फिर उनने विषम बुद्धि वाले मनुष्य की तरह इन्द्र के भले के लिये राक्षसों एवं दैत्यों को क्यों कर मारा सो मुझ से कहिये।  श्री शुकदेव जो बोले-हे परीक्षित ! भगवान अजन्मा सब प्रपंच महाभूतों से रहित है। परंतु समय के अनुसार (रजोगुण, सतोगुण, तमोगुण, यह घटते बढ़ते रहते हैं ।   सत्वगुण के समय में देवता और ऋषियों की वृद्धि होती है । रजोगुण के समय में असुरों की वृद्धि होती है। तमोगुण के समय में यक्ष राक्षसों की वृद्धि होती है।  अतः जैसी परिस्थिति होती है उसी के अनुरूप भगवान हो जाता है। यही प्रश्न एक बार पहिले राजा युधिष्ठिर ने ना...

शुकदेव जी का राजा परीक्षित को आत्मज्ञान देना।।

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श्रीमद भागवद पुराण महात्मय का उन्नीसवॉं आध्यय [स्कंध १] (परीक्षित का श्राप का समाचार सुन सब त्याग, गंगातट पर जाना और शुकादि मुनियों का आना) दो० सुरसरि तट अभिमन्यु सुत सुनो कथा जिमि जाय। सोइ चरित पुनीत यह उन्नीसवें अध्याय ॥ शुकदेव जी का राजा परीक्षित को आत्मज्ञान देना।।श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का उन्नीसवॉं आध्यय [स्कंध १] तदन्तर सूत जी कहने लगे कि-राजा परीक्षित को घर पहुंचकर, चेत हुआ कि हाय हाय ! मैंने कैसा नीच कर्म किया। वह ऋषि तो निष्पाप और गूढ़तेज है । हाय ! यह मैंने किया ही क्या ? उसके गले में सांप लपेटा । इस नीच कर्म से मुझको प्रतीत होता है कि कोई बड़ी विपत्ति मुझ पर आने वाली है सो मैं चाहता हूं, कि वह विपत्ति मुझ पर शीघ्र आजाय तो अच्छा है जिससे मुझको योग्य शिक्षा मिल जाय, और मैं फिर कोई ऐसा अपराध न करू । राजा इस तरह शोक सागर में निमग्न था, उधर शमीक ऋषि ने अपना गौरमुख नाम शिष्य राजा के पास भेजा कि मेरे पुत्र ने तुमको शाप दिया है, कि आजके सातवें दिन तुमको तक्षक डसेगा उसे, उसीसे तुम्हारी मृत्यु होगी। राजा इस वाक्य को सुनकर तक्षक की विषाग्नि को बहुत उत्तम समझने लगा, क्योंकि यह अग्नि...

राजा परीक्षित का वंश वर्णन।।

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श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का सोलहवॉं आध्यय [स्कंध १] (परीक्षित की दिग्विजय कथा) दोहा: विपिन परीक्षित जस लखे धर्म भूमि कलिकाल।। सो सोलहे अध्याय में वर्णों कथा विसाल ॥ ४॥ सूतजी कहने लगे-हे शौनक ! इसके पश्चात महाभक्त परीक्षित राज्य पाकर द्विजवरों की शिक्षा के अनुसार पृथ्वी का कार्य करने लगा, गद्दी पर बैठने के पीछे राजा परीक्षित ने उत्तर की बेटी इरावती से विवाह किया और इनके जन्मजय आदि चार पुत्र उत्पन्न हुए। फिर गङ्गा तट पर कृपाचार्य को गुरु बनाकर तीन बड़े अश्वमेध यज्ञ किये जिनमें ब्राह्मणों को गहरी दक्षिणा दी गयी थीं और मूर्ति में देवता आकर अपने भाग ले गये। एक समय राजा परीक्षित दिग्विजय के लिये बाहर निकला था।  राजा परीक्षित का कलयुग से सामना।। थोड़ी दूर जाकर क्या देखता है कि एक शूद्र राजा का वेश धारण किये हुए एक गौ और बैल को पांव की ऐड़ी से मारता चला आता है, इस चरित्र को देखकर राजा ने उसे पकड़ लिया। यह सुनकर शौनक पूछने लगे कि, राजा का वेश धारण किये हुए यह शूद्र कौन था जो गो और बैल को पाँवों से मारता था। हे महाभाग ! यदि यह बात श्री कृष्ण कथा के आश्रित हो तो हमसे कहना नहीं तो और व्यर्थ ...

विदुर, धृतराष्ट्र, गान्धारी का हिमालय गमन से मोक्ष प्राप्ति की कथा।।

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श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का तेरहवॉं आध्यय [स्कंध १] सूतजी कहने लगे-विदुर जी तीर्थ यात्रा में विचरते हुए मैत्रैय जी से मिल के श्री कृष्ण चन्द्र की गति को जान के हस्तिनापुर में आये । विदुर जी ने मंत्री जी के आगे जितने प्रश्न किये उनमें से केवल दो चार प्रश्न के ही उत्तर मिलने से उनका सन्देह मिट गया। एक गोविन्द भगवान में भक्ति पाकर तिन प्रश्नों के उपराम को प्राप्त हो गये यानी उनसे पीछे अन्य कुछ पूछना बाकी न रहा फिर हस्तिनापुर में उस बन्धु विदुर को आये हुये देखकर अर्जुन आदि सब छोटे भाईयों सहित धर्म पुत्र युधिष्ठिर धृतराष्ट्र, युयुत्सु, संजय, कृपाचार्य, कुन्ती, गान्धारी द्रोपदी, सुभद्रा उत्तरा, कृपी, यह सब और अन्य भी पाण्डु जाति के लोगों की भार्या और अनेक पुत्र सहित स्त्रियां, यह सब जैसे मृतक ने प्राण पाये हों तेसे विदुरजी के सन्मुख गये यह सब यथा योग्य विधि से विदुर जी से मिले। उस समय इनके नेत्रों से प्रेम आंसू गिरने लगे,फिर राजा युधिष्ठिर ने उनको आसन देकर पूजन किया। पीछे यह भोजन कर चुके तथा विश्राम करके बैठे तथा युधिष्ठिर ने कहा कि, जैसे पक्षी अत्यंत स्नेह से अपने बच्चों को आप भी याद करत...