Posts

Showing posts with the label Krishna

श्री विष्णु के षार्षद(नंद-सुनंद) द्वारा विष्णु धाम को जाना।।१२ अध्याय[स्कंध ४]

Image
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण बारहवां अध्याय[स्कंध ४] (ध्रुव जी का विष्णु धाम जाना) दो०-जिमि तप बल ध्रुव ने कियो विष्णु धाम को जाय। बारहवें अध्याय में कथा कही मन लाय ।। श्री शुकदेव जी बोले हैं राजा परीक्षित ! इतनी कथा सुनाय मैत्रेय जी बोले-हे विदुर ! ध्रुव जी ने जब इतने दिन राज्य किया और भगवान भजन करने की इच्छा हुई तो वह उत्कल को राज्य दे बन में बद्री नारायण धाम जाय तप करने लगे। वहाँ वह शुद्धान्तः करण से हरि के विराट स्वरूप को धारण कर ध्यान में लीन हो समाधिस्थ हो स्थूल शरीर को त्याग दिया । धुरव जी को लेने के लिये उस समय भगवान विष्णु के दो पार्षद अति सुंदर विमान लेकर आये। उन पार्षदों का नाम नंद सुनंद था । वे पार्षद चतुर्भ जी किशोर अवस्था वाले जिनके नेत्र लाल कमल के समान थे, वे हाथों में स्वर्ण गदा लिये सिर पर किरीट धारण किये बाजुओं में वाजू बंद बाँधे, रेशमी पीत वस्...

श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४]ध्रुव चित्र।।अधर्म की वंशावली।।

Image
श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४] (ध्रुव चित्र) दोहा-हरि भक्त ध्रुव ने करी जिस विधि हृदय लगाय। सो नोवें अध्याय में दीनी कथा सुनाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! फिर मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! इस प्रकार शिव पार्वती ने विवाह का प्रसंग कहकर हमने आपको सुनाया। अब हम तुम्हें ध्रुव चरित्र कहते हैं सो ध्यान पूर्वक सुनिये। अधर्म की वंशावली।। सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार, नारद जी, ऋभु, हंस, आरूणी, और यति आदि ब्रह्मा जी के पुत्रों ने नैष्टिक प्राचार्य होने के लिये गृहस्थाश्रम नहीं किया। अतः उनके द्वारा कोई वंशोत्पत्ति नहीं हुई। हे विदुर जी! बृह्मा जी का एक पुत्र अधर्म भी हुआ, उसकी मृषा नामा पत्नी से दम्भ नाम पुत्र और माया नाम कन्या उत्पन्न हुई। इन दोनों बहन भाई को पति पत्नी रूप बना कर मृत्यु ने गोद ले लिया। तब दम्भ की पत्नी माया से लोभ नाम का पुत्र और शठता नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई तब वे दोनों लोभ और शठता स्री पुरुष हुए। जिससे शठता में लोभ ने क्रोध नाम के पुत्र और हिंसा नाम की कन्या को उत्पन्न किया । तब वे दोनों भी पति पत्नी हुई। जिससे हिंसा नाम स्त्री में क्रोध ने काले नाम का स...

भारत के विभिन्न जगहों में भगवान का विस्तृत पूजन विधि [भाग २]

  श्रीमद भागवद पुराण उन्नीसवाँ अध्याय * स्कंध६ भारत वर्ष का श्रेष्टत्व वर्णन दो: हो भारत देश महान है, कहुँ सकल प्रस्तार। या उन्नाव अध्याय में, वर्णित कियौ विचार।। श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षित! इसी प्रकार किम्पुरुष खंड में श्री रामचंद्र जी विराजमान हैं । उनके चरणों की सेवा हनुमान जी करते हैं और अनेक प्रकार से गुणों का बखान करके पूजा किया करते हैं। इसी प्रकार भारत खंड में नर नारायण भगवान देवता स्वरूप बद्रिकाश्रम में विराजमान हैं, और नारद जी इन भगवान की उपासना करते हैं । श्री शुकदेव जी परीक्षित से कहते हैं-हे राजन ! कितने एक विद्वान इस जंबू द्वीप के आठ उपखंड भी कहते हैं। उनका मत है कि जब राजा सगर के साठ हजार पुत्र यज्ञ के घोड़े को ढूंढ़ने निकले तो उन्होंने इस पृथ्वी को चारों ओर से खोदा था, सो उसके कारण यह आठ उपद्वीप हुये जिनके नाम १-स्वर्णप्रस्थ, २-चन्द्रप्रस्थ, ३-आवर्तन, ४-रमणक, ५-मंद हरिण, ६-पांचजन्य, ७-सिंहल, ८-लंका ये हैं। Also read @ https://shrimadbhagwadmahapuran.blogspot.com/2020/08/blog-post_24.html

गंगा जी का विस्तार वर्णन।। भगवाद्पदी- श्री गंगा जी।

श्रीमद भगवद पुराण *सत्रहवां अध्याय*[स्कंध ५] दोहा: कहयो गंग विस्तार सब, विधि पूर्वक दर्शाय। संकर्षण का स्तबन कियो रुद्र हर्षाय।। गंगा जी का जनम। शुकदेव जी बोले-परीक्षित! भगवान विष्णु ने राजा बलि को छलने के लिये जब वामन अवतार धारण कर यज्ञ में जाय साढ़ेतीन पग भूमि दान में ली थी, तब अपने स्वरूप को बढ़ाय कर तीनों लोकों को मापने के समय दाहिने चरण से पृथ्वी को बचाया और बाएँ चरण को ऊपर को उठाया तो उस चरण के अंगूठे से ब्रह्मांड का ऊपर का भाग फूट गया। उस छिन्द में से श्री गंगा की धारा ब्रह्माण्ड मार्ग से स्वर्ग पर आकर उतरी। यह श्री गंगा जी का जन्म भगवान विष्णु चरण कमलों के इसलिये इसका भगवत्पदी नाम हुआ। यद्यपि यह उस समय पृथ्वी पर नहीं उतरी थी हजार चौकड़ी युग के उपरान्त स्वर्ण के मस्तक पर आन कर पहुँची। पश्चात वह धारा देवलोक में आती है जहाँ ध्रुव जी अपने मस्तक पर धारण कर रहे हैं। पश्चात वह गंगा जी की धारा ध्रुवलोक से नीचे गिरती है जो उसे सप्त ऋषि धारण करते हैं तदनंतर यह सप्त ऋषियों के स्थान से नीचे गिर कर चंद्र मडल को आसेचन करती हुई, सुमेरु पर्वत पर बनी ब्रह्मा जी की नगरी में बहती हुई च...