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श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४] (वेणु का राज्याभिषेक )

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] ~~~~~~~~~~~~~~~~   *प्रभात दर्शन*   ~~~~~~~~ तेरा संगी कोई नहीं   सब स्वारथ बंधी लोइ,   मन परतीति न उपजै   जीव बेसास न होइ।। भावार्थ:-   कोई किसी का साथी नहीं है, सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति-भरोसा मन में उत्पन्न नहीं होता, तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता। अर्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है। जब संसार के सच को जान लेता है और इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है, तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होकर भीतर झांकता है !   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४] (वेणु का राज्याभिषेक ) दोहा- अंग सुमन जिमि वेनु को, राज्य मिला ज्यों आय। चौदहवें अध्याय में, दिया वृतांत वताय।...

श्रीमद भागवद पुराण उन्तीसवाँ अध्याय (संसार व काल प्रभाव का वर्णन)

 श्रीमद भागवद पुराण उन्तीसवाँ अध्याय (संसार व काल प्रभाव का वर्णन) दो०-भक्ति योग के मार्ग सब कहे कपिल समझाय। उन्तीसवाँ अध्याय में, वर्णित किये उपाय ॥ श्री कपिलदेव जी बोले हे माता! इस संपूर्ण चराचर जगत में जीवधारी सर्वश्रेष्ठ हैं । और उन जीवधारियों में भी प्राणधारी सर्वश्रेष्ठ हैं। इन प्राणधारियों में भी वे प्राणधापी श्रेष्ठ हैं जिन्हें ज्ञानेन्द्रियों का ज्ञान है, और उनमें भी स्पर्श ज्ञानी श्रेष्ठ हैं और इस ज्ञानियों में रसज्ञाता ज्ञानी है तथा रसज्ञाता ज्ञानियों में भी गंध जानने वाले ज्ञानी श्रेस्ठ हैं। इस प्रकार के जानियों में भी शम्न ज्ञाता ज्ञानी अधिक श्रेष्ठ होते हैं, इन में भी स्वरूप ज्ञाता ज्ञानी श्रेष्ठ हैं, इन में भी श्रेष्ठ, जिनके दोनों ओर दाँत होते हैं, और इन में भी वे श्रेष्ठ वे होते हैं जिनके चरण होते हैं। इन चरण वालों में दो प्रकार के हैं एक चतुष्पद और दूसरे द्विपद है।इनमें द्वीपद अधिक श्रेष्ठ कहे हैं। यह द्वीपद मनुष्य हैं जो सर्व श्रेष्ठ ज्ञानी माना गया है। मानव जाती के वर्ण,भेद।। अब हे माता ! मनुष्यों में जो कुछ भेद भाव इस प्रकार है कि, इनमें चार वर्ण हैं ब्राह्मण, ...

कहाँ जाता है मनुष्य मरने के बाद? नरक लोक में जीवात्मा।।

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 श्रीमद भागवद पुराण *छब्बीसवां अध्याय * [स्कंध ५] (पाताल स्थित नरक का वर्णन ) Where does the soul goes in between reincarnations? दो०-पापी फल पावें जहां, देय दूत यम त्रास। छब्बीसवें अध्याय में, वरणों नरक निवास।। श्री शुकदेव जी के वचन सुन कर परिक्षित ने पूछा-हे मुने ! ईश्वर ने यह सब सृष्टि एकाकार ही क्यों नहीं रची अर्थात यह सब सृष्टि परमात्मा ने अनेक प्रकार की क्योंकर निर्माण की है सो कृपा कर मुझे सुनाओ । श्री शुकदेव बोले-हे परीक्षित! कर्त्ता की इच्छा से श्रद्धा में तीन प्रकार का भेद होने से कर्म की गति भी अलग-अलग न्यूनाधिक होती है । सत्व गुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को सुख, तथा रजोगुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को सुख और दुःख दोनों तथा तमोगुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को दुख ही केवल प्राप्त होता है। शास्त्रों में जिसको निषेध कहा है उसी को अधर्म कहते हैं। अतः उन्ही अधम कर्मो के करने को ही अधर्म कहते हैं। उन पापी जनों को नरक की गति मिलती हैं। सो हे राजन! हम तुम्हारे सामने उन्हीं मुख्य-मुख्य नरकों को वर्णन करते हैं । सो तुम उन्हें ध्यान देकर सुनो। नरकों का...