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क्या है विष्णु भगवान का सर्वदेवमय स्वरूप।।

श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २३ [स्कंध ५] (ज्योतिष चक्र अवस्थिति का वर्णन) दो०-वर्णनध्रुव स्थान का, विधिवत कह्यौ सुनाय । रूप विष्णु कर व्योम मधि तेसईवे अध्याय॥ शुकदेव जी बोले-हे राजन् ! उन सप्त ऋषियों से तेरह लाख योजन ऊपर विष्णु पद है। जहाँ ध्रुव जी स्थिति हैं, जिनकी चाल कभी नहीं रुकती है। सब नक्षत्रों गृह आदि तारागणों को बाँध रखने वाला एक थम्भ रूप ईश्वर द्वारा बनाये हुये ध्रुव जी सर्वदा प्रकाश मान रहते हैं। यह गृह आदि नक्षत्र काल चक्र के भीतर व बाहर जुड़े हुये ध्रुव का अवलंबन किये हुए हैं, जो पवन के घुमाये हुये कल्प पर्यन्त चारों ओर घुमते रहते हैं । कुछ विज्ञानों का मत है कि यह ज्योतिष चक्र शिशुमार रूप में भगवान वासुदेव की योग धारणा से टिका हुआ है शिर नीचा किये कुन्डली मार कर बैठे इस ज्योतिष स्वरूप शिशुमार की पूछ के अग्रभाग में ध्रुव जी हैं, उनसे निकट नीचे की ओर लाँगूर पर वृह्मा जी और अग्नि, इन्द्र, धर्म, ये स्थिर हैं । पूछ की मूल में श्वाता, विधाता, स्थिर हैं। सप्त ऋषि कटि पर स्थित हैं। चक्र की दाहिनी कुक्षि पर अभिजित आदि पुनर्वसु पर्यन्त उत्तर चारी चौदह नक्षत्र हैं। दक्षिण चारी पुष्प ...