गंगा जी का विस्तार वर्णन।। भगवाद्पदी- श्री गंगा जी।

श्रीमद भगवद पुराण *सत्रहवां अध्याय*[स्कंध ५]

दोहा: कहयो गंग विस्तार सब, विधि पूर्वक दर्शाय।

संकर्षण का स्तबन कियो रुद्र हर्षाय।।

गंगा जी का जनम।

शुकदेव जी बोले-परीक्षित! भगवान विष्णु ने राजा बलि को छलने के लिये जब वामन अवतार धारण कर यज्ञ में जाय साढ़ेतीन पग भूमि दान में ली थी, तब अपने स्वरूप को बढ़ाय कर तीनों लोकों को मापने के समय दाहिने चरण से पृथ्वी को बचाया और बाएँ चरण को ऊपर को उठाया तो उस चरण के अंगूठे से ब्रह्मांड का ऊपर का भाग फूट गया। उस छिन्द में से श्री गंगा की धारा ब्रह्माण्ड मार्ग से स्वर्ग पर आकर उतरी। यह श्री गंगा जी का जन्म भगवान विष्णु चरण कमलों के इसलिये इसका भगवत्पदी नाम हुआ। यद्यपि यह उस समय पृथ्वी पर नहीं उतरी थी हजार चौकड़ी युग के उपरान्त स्वर्ण के मस्तक पर आन कर पहुँची।

पश्चात वह धारा देवलोक में आती है जहाँ ध्रुव जी अपने मस्तक पर धारण कर रहे हैं। पश्चात वह गंगा जी की धारा ध्रुवलोक से नीचे गिरती है जो उसे सप्त ऋषि धारण करते हैं तदनंतर यह सप्त ऋषियों के स्थान से नीचे गिर कर चंद्र मडल को आसेचन करती हुई, सुमेरु पर्वत पर बनी ब्रह्मा जी की नगरी में बहती हुई चार धारों में विभक्त होकर चार दिशाओं में बहती हुई अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती है। 

गंगा के नाम।।

इसके यह चार नाम हैं, १-सीता, २-नंदा, ३-चक्षु, ४-भद्रा।

गंगाजी का विस्तार।।

सीता नाम वाली भद्रा ब्रह्मलोक से उतर केशरावल पर्वतों आदि से नीचे उतरती हुई गंधमादन पर्वत के मस्तक पर पड़ती हुई भद्राश्व खंड में बहती हुई पूर्व दिशा के समुद्र में मिल जाती है। इसी प्रकार चक्षु नाम वाली धारा माल्यवान पर्वत के शिखर से बहती हुई, केतुमाल खण्ड में बहती हुई पश्चिम दिशा के समुद्र में जाकर मिलती है। भद्र नाम की धारा उत्तर दिशा में सुमेरु पर्वत के शिखर से गिर कर कुमुद पर्वत के शिखर पर होती हुई नीलगिरि शिखर पर आती है तत्पश्चात वहाँ से चल कर श्वेत पर्वत के शृंग पर आती है, फिर वहाँ से श्रृंगवान पर्वत पर पहुँची है। तब वहाँ से नीचे उतर कर कुर खण्ड में बहती हुई उत्तर दिशा के समुद्र में जाकर मिल जाती है इसी प्रकार अलक नंदा नाम की धारा ब्रहम लोक से दक्षिण में होती हुई अनेक पर्वत को पार करती हुई हेमकूट पर्वत से निकलती हुई भरत खण्ड की भूमि में होती हुई दक्षिण दिशा के समुद्र में मिल जाती है।

भारत खण्ड में किये गये कर्मों का महात्मय, क्यू है भारत खण्ड सबसे श्रेष्ट।

इन नौ खण्डों में केवल भरत खण्ड ही एक ऐसा खण्ड है जो किये गये कर्म फल को देने वाला है¹, शेष आठ खण्ड स्वर्गवासियों के शेष पुण्य भोगने के स्थान हैं।

इलावृत खण्ड।।

 इलावृत खण्ड में पार्वती जी के साथ महादेव जी विराजमान हैं यदि अन्य कोई पुरुष उस स्थान पर चला जाता है तो वह स्त्री भाव को प्राप्त हो जाता है । महादेव, विष्णु, तथा इनके अतिरिक्त वहाँ श्री शेष जी अर्थात् संकर्षण भगवान विराजते हैं । 

संकर्षण मंत्र- शेष नाग जी का मंत्र।।

संकर्षण मंत्र यह हैं -ओं नमो भगवते महापुरुषाय सर्व गुण संख्या नाम नन्तायाव्यक्तायनमः । उनकी मूर्ति को मन में ध्यान करके इस मंत्र द्वारा जाप करते है ।

¹अर्थात भारत वर्ष में किये गये कर्मो को हम भोगते है, इस धरती पर किये गये कर्मों का सार मिलता है, जब की अन्य खंडो में हम केवल पूर्व जनम के किये गये कर्मों का अर्जन अपने प्रारब्ध के अनुसार करते है।

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