श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय[स्कंध४] (शिव तथा दक्ष का वैर होने का कारण)

 श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय[स्कंध४]

(शिव तथा दक्ष का वैर होने का कारण)

दोहा-जैसे शिव से दक्ष की, भयो भयानक द्वेष।

सो द्वितीय अध्याय में वर्णन करें विशेष ।।


श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! जब मैत्रेय जी ने सती के विषय में यह कहा तो विदुर जी ने पूछा - है वृह्यान् ! यह कथा सविस्तार कहिये कि दक्ष प्रजापति और शिवजी में क्यों और किस प्रकार वैर-भाव उत्पन्न हुआ। तब मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! एक समय सभी देवता आदि और ऋषी इत्यादि एक शुभ यज्ञ कार्य में जाकर एकत्रित हुए थे । उसमें ब्रह्मा जी तथा शिवजी भी आये हुये थे। तब उस महा सभा में वृह्माजी के पुत्र प्रजापति दक्ष भी पहुँचे । जिन्हें आया देखकर सभी देव ता तथा ऋषि-मुनि उनका आदर अभिवादन करने को अपने अपने आसनों से उठखड़े हुये और उन्हें प्रणाम आदि कर सम्मानित किया। परन्तु भगवान शिव और ब्रह्मा जी अपने आसन से नहीं उठे थे। अर्थात् इन्हीं दोनों ने दक्ष प्रजापति का अन्य सबों की तरह से आदर-सत्कार नहीं किया था। तब वह प्रजा पति दक्ष जगत गुरु ब्रह्मा जी को प्रणाम करके अपने आसन पर बैठ गये। तब दक्ष ने अपने मन में विचार किया कि वृह्माजी तो मेरे पिता हैं इसी कारण उन्होंने मेरे प्रति अन्य सबकी नाँति अभिवादन नहीं किया। परन्तु शिव ने मेरा अभिवादन क्यों नहीं किया, न तो इसने मुझे देख मेरे सम्मान में खड़े होकर अभिवादन ही किया और न इसने अपनी वाणी से ही कुछ कहा है । इस प्रकार शिवजी द्वारा अपना अपमान हुआ जान कर वह दक्ष नेत्रों को लाल-लाल कर अत्यन्त क्रोधित हो इस प्रकार कटु बचन कहने लगा-हे उपस्थित देवता गणों! तथा समस्त ऋषिजनो! और अग्नि सहित हे बाह्य ऋषियों ! मैं आपके सामने महात्माओं का जो आचार हैं उसे कहता है। मैं जो कुछ भी कहता हूँ सो मैं आपसे किसी ईर्ष्या अथवा किसी वैर-भाव के कारण नहीं कहता हूँ। यह जो शिव है जिसे आपने महादेव के पद से विभूषित किया है सो लोकपालों के यश को नष्ट करने वाना और निर्लज्ज है। जिसने आप सज्जनों द्वारा चलाये हुये मार्ग को दूषित किया है, वास्तव में यह देखा जाय तो यह शिव मेरे शिष्य भाव को प्राप्त हुआ है, क्यों कि इसने मेरी पुत्री सती का पाणिगृहण अग्नि और समस्त देवताओं और ब्राह्मणों के सामने किया है। इस बन्दर के सदृश्य नेत्र वाले शिव ने मेरी मृगणी के समान नेत्र वाली कन्या सती से विवाह किया है, जिसका कर्तव्य था कि मुझे आया देखकर आप सबकी तरह मेरा आदर करना था। परन्तु इसने वैसा नहीं किया और इस सभा में मेरा अनादर किया है। इसने अपनी वाणी मात्र से भी मेरा सत्कार नहीं किया है । सो इस अभिमानी, लोक मर्यादा नष्ट करने वाले को मैं अपनी कन्या का विवाह नहीं करना चाहता था। परन्तु मैंने इसको अपनी कन्या इस प्रकार मूर्खता से देदी कि जैसे कोई शूद्र को वेद पढ़ा देता है। यह अब मैंने वृह्माजी अर्थात अपने पिता के कहने के कारण ही से किया था। सो देखो यह महादेव सदैव घोर श्मशान में निवास करने वाला, भूत प्रेत पिशाचों के साथ नग्न देह, खुले केश पागलों की तरह कभी हँसता और कभी रोता हुआ घूमा करता है। यह पागल के समान चिता-भस्म देह में लगाने वाला, तथा कपालों की माला धारण करने वाला, हडिडयों की माला पहरने वाला है। इसका नाम तो ब्रह्मा जी ने शिव (मंगल करने वाला) रख दिया है, परन्तु यह निरा शिव अर्थात अमंगल की खान है। यह त्रिपुण्ड एवं त्रिशूल तथा सर्पों की माला पहनने बाला भूतों का पति मर्घट में निवास करने वाला है। ऐसे भूतों के नाथ, भ्रष्टाचारी और दुष्ट प्रकृति वाले तामसिक बुद्धि के इस शिव को ब्रह्मा जी के कहने पर ही अपनी सती साध्वी कन्या सती का विवाह कर दिया था।

मैत्रेय जी कहने लगे-हैं विदुर जी! इस प्रकार अनेक उल्टी-सीधी अपमान जनक बाते कहने पर पर भी दक्ष को संतोष न हुआ जब शिवजी अपने शांत स्वभाव, से साधारण रूप से अपने आसन पर बैठे, नारायण का नेत्र बन्द किये ध्यान कर रहे थे। तब जब प्रजापति दक्ष ने अंजुलि में से हाथ में जल लेकर इस प्रकार से शाप दिया, कि आज से यह शिव यज्ञ का भागी नहीं होगा। इस प्रकार शाप देकर दक्ष अपने घर को जाने के लिये तयार हुआ तो उस समय उपस्थित मुख्य सभासदों ने बहुत कुछ निषेध भी किया, परंतु प्रजापति दक्ष फिर भी भूतनाथ महादेव जी को श्राप दे अपने घर को उठ कर चला गया। इस प्रकार जब दक्ष शिव को श्राप दे चला गया और तब भी शिव जी को मौन बैठे देख कर शिव गण नन्दीश्वर ने क्रोधित हो इस प्रकार श्राप दिया। हे उपस्थित सभासदों मैं उस दक्ष तथा उसके बचनों को अनुमोदन करने वालों को श्राप देता हूँ कि, इस दुष्ट ने महादेव जी को साधारण मनुष्य समझ कर श्राप दिया है। इस कारण वह ज्ञान और तत्व बिमुख होकर स्त्री की कामना करने वाला कामी हो और देहाभिमानी हो पशु के समान बकरे के सिर वाला होगा। तथा जिन ब्राह्मणों ने अभिमान के कारण अनुमोदन किया है वह विद्वान तथा ज्ञानी होने पर भी बुढ़ापे में ज्ञान रहित होवें और दरिद्री होकर अपने ज्ञान को धन की कामना से बेचने वाले हों, यह सब भूख बुझाने के लिये सब वर्णों का अन्न भक्ष करने वाले घर में मिक्षा मांगने वाले होवें ।

क्यू लगते है शिव के भक्त भस्म।। शिवभक्तो को श्राप।।

मैत्रेय जी बोले-हे बिदुरजी ! जब नन्दिकेश्वर ने दक्ष के साथ-साथ सभी ब्राह्मणों को जब इस प्रकार श्राप दे दिया, तो भृगु ऋषि को क्रोध हुआ, उनने भी क्रोध के आवेश में आकर इस प्रकार श्राप दिया कि जो कोई शिवजी का व्रत तथा अनुवर्तन करेंगे वे सब धर्म प्रति पावक वेद शास्त्र से विपरीत चलने वाले पाखंडी हो जावें। वे भ्रष्टाचारी होकर जटा धारण कर भस्म को देह में मल कर शिव दीक्षा में प्रवेश करेंगे। वे लोग मांस मदिरा भक्षण करेंगे और कानों को फाड़़ कर मुद्रा पहने जहाँ-तहाँ श्मशान में निवास करेंगे।

सो हे विदुर को ! जब भृगु जी ने भी इस प्रकार श्राप दिया तो उस समय शिव भगवान अपने मन में कुछ दुखी अवश्य हये, परन्तु उन्होंने किसी से कुछ न कहा, और अपने समस्त गणों को साथ ले नन्दी पर असवार हो कैलाश पर्वत को चले गये। इतनी कथा कहने के उपरान्त मैत्रेयजी बोले-हे विदुर! जब शिवजी चले गये तब उन सब प्रजापतियों ने अपने उस यज्ञ को जिसमें कि सम्मिलित होने को वह आये थे, उसे १००० एक हजार वर्ष तक करके पूर्ण किया, तत्पश्चात वे सब प्रजापति प्रयाग में आकर स्नान कर शुद्ध मन हो अपने-अपने निवास स्थान को चले गये।

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]

༺═──────────────═༻

༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]

༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]

༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
༺═──────────────═༻

Comments

Popular posts from this blog

Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (Hinduism)

राम मंदिर उद्घाटन: 30 साल की चुप्पी के बाद 22 जनवरी को अयोध्या में प्रतिज्ञा समाप्त करेंगी सरस्वती अग्रवाल

PM Awaas yojna registration: यहाँ से करें शीघ्र आवेदन