क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य? तंत्र- एक विज्ञान।तंत्रिका कोशिका।

तंत्र--रावण की नाभि में अमृत।।


तंत्र--रावण की नाभि में अमृत।।  शरीर की दो अवस्थाएं होती हैं।   शरीर की जब शरीर को जल अपने अंदर नहीं डुबोता, एक होती है निष्प्राण-- मृत शरीर तैरते रहते हैं।   दूसरी होती है निश्चेष्ट, यानी चेष्टा रहित शरीर भी जल में तैरते रहते हैं, जिसे आप तैरना मानते हैं वह क्रिया है, एक क्रिया मात्र जो तैरना नहीं है, अपितु डूबने से बचने की एक चेष्टा मात्र है।  योग में कुछ क्रियाएं हैं।   उस दिन मैंने कहा कि एक योगी ही सही तांत्रिक हो सकता है या एक तांत्रिक क्रिया योग का जाननहारा, वे क्रियाएं ऐसी हैं जहां प्राण को यत्नपूर्वक नाभि में रोका जा सके, रावण यह विद्या भली प्रकार जानता था, इसीलिए उसके नाभि में अमृत होने की बात फैलाई गई।  इस कला के चलते, ऐसा नहीं है कि वह अजेय था। यह कालांतर में प्रसिद्ध किया गया, जबकि सत्य यह है कि उस समय भी अनेकों थे जो यदा कदा मौका मिलते ही रावण को कूटते पीटते रहते थे, इसपर चर्चा फिर कभी।  उस समय एक ही चारा था कि वह अपने प्राण पूरे शरीर से सिकोड़कर नाभि में इक्कठे कर ले। ताकि मारने वाला सोचे कि रावण मर गया। और मरा समझकर अगला छोड़कर चला जाता।  तो फिर से प्राणों को नाभि से शरीर में फैलाकर आंख खोल उठकर चल देता था।   इसलिए प्रभु श्रीराम ने नाभि को ही क्षतिग्रस्त किया,ताकि वह तंत्र का सहारा लेकर धोखा न दे पाए।  एक और दृष्टि से देखिए, जिंदा शरीर को ऊर्जा की जरूरत होती है मृत को नहीं। लेकिन मृत शरीर सड़ने लगता है। जब तक आत्मा है, प्राण है तब तक ही चेतन लगता है वरना तुरन्त दुर्गंध देने लगता है। तो ऐसा क्या किया जाए कि शरीर मृत की तरह भी रहे जिससे उसको चलाने के लिए ऊर्जा यानी भोजन की जरूरत न रहे और जिंदा भी रहे ताकि सड़न न हो।   इसलिए लंबी चलने वाली साधनाओं के लिए तंत्र का विज्ञान विकसित हुआ। जिसमें नाभि में प्राण पहुंचाकर वहां रोक लेना प्रथम कदम है और आसान भी।  तो ऋषि महर्षि नाभि में प्राणों को धारण करके हजारों हज़ार साल तपस्या में लीन रहते थे।  चूंकि पूरा शरीर मृत समान है तो शरीर को भोजन पानी भी नहीं चाहिए इसलिए नाहक भागदौड़ से बच गए और पूर्णतया मृत भी नहीं है इसलिए शरीर सड़ता भी नहीं था। वह तंत्र का ही विकसित रूप था।   किन्तु हम ऋषियों जितना तंत्र कहाँ से जानेंगे, हम तो तंत्र का अ आ भी नहीं जानते। फिर भी शुरू में बताया था न कि दो अवस्था में शरीर को जल डुबोता नहीं, एक निष्प्राण में, एक निष्चेष्ट में।  तो रावण जितना तो नहीं लेकिन थोड़ा बहुत प्राण नाभि में इक्क्ठा करके तकरीबन चालीस पैंतालीस फिट गहरे जल में हाथ पैर ऊपर निकालकर यह प्रयोग करके देखा था मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले की काला पीपल तहसील के बदनावर गाँव में, जल डुबायेगा भी नहीं क्योंकि शरीर क्रिया रहित है, एकदम निष्क्रिय।  ॐ श्री परमात्मने नमः  *सूर्यदेव*  Find the truthfulness in you, get the real you, power up yourself with divine blessings, dump all your sins...via... Shrimad Bhagwad Mahapuran🕉

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शरीर की दो अवस्थाएं होती हैं।


 शरीर की जब शरीर को जल अपने अंदर नहीं डुबोता, एक होती है निष्प्राण-- मृत शरीर तैरते रहते हैं।

 दूसरी होती है निश्चेष्ट, यानी चेष्टा रहित शरीर भी जल में तैरते रहते हैं, जिसे आप तैरना मानते हैं वह क्रिया है, एक क्रिया मात्र जो तैरना नहीं है, अपितु डूबने से बचने की एक चेष्टा मात्र है।

योग में कुछ क्रियाएं हैं।


 उस दिन मैंने कहा कि एक योगी ही सही तांत्रिक हो सकता है या एक तांत्रिक क्रिया योग का जाननहारा, वे क्रियाएं ऐसी हैं जहां प्राण को यत्नपूर्वक नाभि में रोका जा सके, रावण यह विद्या भली प्रकार जानता था, इसीलिए उसके नाभि में अमृत होने की बात फैलाई गई।

इस कला के चलते, ऐसा नहीं है कि वह अजय था। यह कालांतर में प्रसिद्ध किया गया, जबकि सत्य यह है कि उस समय भी अनेकों थे जो यदा कदा मौका मिलते ही रावण को कूटते पीटते रहते थे, इसपर चर्चा फिर कभी।

उस समय एक ही चारा था कि वह अपने प्राण पूरे शरीर से सिकोड़कर नाभि में इक्कठे कर ले। ताकि मारने वाला सोचे कि रावण मर गया। और मरा समझकर अगला छोड़कर चला जाता।  तो फिर से प्राणों को नाभि से शरीर में फैलाकर आंख खोल उठकर चल देता था। 

इसलिए प्रभु श्रीराम ने नाभि को ही क्षतिग्रस्त किया,ताकि वह तंत्र का सहारा लेकर धोखा न दे पाए।

एक और दृष्टि से देखिए, जिंदा शरीर को ऊर्जा की जरूरत होती है मृत को नहीं। लेकिन मृत शरीर सड़ने लगता है। जब तक आत्मा है, प्राण है तब तक ही चेतन लगता है वरना तुरन्त दुर्गंध देने लगता है। तो ऐसा क्या किया जाए कि शरीर मृत की तरह भी रहे जिससे उसको चलाने के लिए ऊर्जा यानी भोजन की जरूरत न रहे और जिंदा भी रहे ताकि सड़न न हो। 

इसलिए लंबी चलने वाली साधनाओं के लिए तंत्र का विज्ञान विकसित हुआ। जिसमें नाभि में प्राण पहुंचाकर वहां रोक लेना प्रथम कदम है और आसान भी।

तो ऋषि महर्षि नाभि में प्राणों को धारण करके हजारों हज़ार साल तपस्या में लीन रहते थे।  चूंकि पूरा शरीर मृत समान है तो शरीर को भोजन पानी भी नहीं चाहिए इसलिए नाहक भागदौड़ से बच गए और पूर्णतया मृत भी नहीं है इसलिए शरीर सड़ता भी नहीं था। वह तंत्र का ही विकसित रूप था।

 किन्तु हम ऋषियों जितना तंत्र कहाँ से जानेंगे, हम तो तंत्र का कुछ भी नहीं जानते। फिर भी शुरू में बताया था न कि दो अवस्था में शरीर को जल डुबोता नहीं, एक निष्प्राण में, एक निष्चेष्ट में।

तो रावण जितना तो नहीं लेकिन थोड़ा बहुत प्राण नाभि में इक्क्ठा करके तकरीबन चालीस पैंतालीस फिट गहरे जल में हाथ पैर ऊपर निकालकर यह प्रयोग करके देखा था मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले की काला पीपल तहसील के बदनावर गाँव में, जल डुबायेगा भी नहीं क्योंकि शरीर क्रिया रहित है, एकदम निष्क्रिय।

ॐ श्री परमात्मने नमः

*सूर्यदेव*




क्या रावण की नाभि में अमृत था ?

by Ajit Kumar MishraApril 6, 2021

 राम कथाओं मे रावण वध को लेकर बहुत सारी कहानियां हैं। कहा जाता है कि रावण की नाभि में अमृत से भरा अमृतकुंड था। विभीषण श्रीराम को रावण की नाभि में अमृत होने का राज़ बता देता है और श्रीराम रावण का वध कर देते हैं। विभीषण को यह राज बताने के लिए आज भी कोसा जाता है। कहा जाता है ‘घर का भेदी लंका ढाहे’ लेकिन क्या ये सच है ? क्या सच में रावण की नाभि में कोई अमृत था और श्रीराम ने रावण की नाभि में बाण मारकर उसकी नाभि का अमृत सोख लिया था  जिसके बाद रावण की मृत्यु हो गई ?

रावण को मारना क्यों कठिन था?


• विभिन्न राम कथाओं के अनुसार रावण को मारना एक बहुत ही दुष्कर कार्य था। ‘वाल्मीकि रामायण’ से लेकर ‘अध्यात्म रामायण’ ,‘आनंद रामायण’ और रामचरितमानस आदि में रावण को मिले विभिन्न वरदानों की बात आती है।

• इन सभी राम कथाओं में एक बात सामान्य है कि रावण को ब्रह्मा जी से वरदान मिला था कि वो किसी भी देवता, राक्षस, गंधर्व, पिशाच, यक्ष आदि के द्वारा नहीं मारा जा सकता था।

• ‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘बालकांड’ और ‘उत्तरकांड’ में दी गई कथाओं के अनुसार रावण ने ब्रह्मा जी के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी और ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा था।

• ‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘बालकांड’ के सर्ग 15 में दी गई कथा के अनुसार जब दशरथ पुत्रकामेष्टि अनुष्ठान कर रहे थे. तब सभी देवता ब्रम्हा जी के पास जाते है और उनसे रावण के अत्याचारों की कथा सुनाते हैं।

देवता ब्रम्हा जी से कहते हैं कि “आपने रावण को जो वरदान दिया है उसकी वजह से वह तीनों लोकों के प्राणियों पर अत्याचार कर रहा है ।“ देवता ब्रम्हा जी को उस वरदान की याद दिलाते हैं तो ब्रम्हा जी कहते हैं कि –

तेन गन्धर्वयक्षाणां देवतानां च रक्षसाम् |

अवध्योऽस्मीति वागुक्ता तथेक्तं च तन्मया || 1.15.13

अर्थः- रावण ने कहा कि मैं गंधर्व, देवता, दैत्यों और यक्षों के द्वारा अवध्य हो जाऊँ । मैंने (ब्रम्हा जी) कहा कि ऐसा ही होगा

‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘उत्तरकांड’ के ‘दशम सर्ग’ में भी ब्रम्हा जी से रावण के वरदान मांगने की कथा दोबारा आती है , लेकिन यहां दिए गए श्लोक में थोड़ा अंतर भी दिखाई देता है –

सुपर्णनागयक्षाणां दैत्यदानवरक्षसाम।

अवध्योSहं प्रजाध्यक्ष कृतांजलिरथाग्रतः ।।19

अर्थः-सनातन प्रजापते! मैं गरुड़, नाग, यक्ष, दैत्य, दानव, राक्षस तथा देवताओं के लिए अवध्य हो जाऊँ।

‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘बालकांड’ के ‘सर्ग 15’ के मुताबिक रावण अपने वरदान में मनुष्यों के द्वारा अपनी मृत्यु होने का वरदान मांगना भूल गया। जबकि ‘उत्तरकांड’ में सर्ग 10 के श्लोक 20 में रावण कहता है कि उसे मनुष्य आदि तुच्छ प्राणियों से अपनी जान का भय नहीं है यही वजह थी कि भगवान विष्णु ने श्रीराम अवतार लिया ताकि वो मनुष्य रुप में रावण का वध कर सकें। इसके अलावा रावण को कई ऐसी सिद्धियां प्राप्त थीं जिसकी वजह से उसका सिर कटने के बाद भी वह पुनः जीवित हो उठता था।  

रावण की नाभि में अमृत कुंड का रहस्य


सबसे पहले अगर हम ‘आदि काव्य’ और श्री राम के चरित्र पर लिखे गए सबसे प्रथम महान ग्रंथ ‘वाल्मीकि रामायण’ को पढ़ते हैं तो ये कथा कहीं भी नज़र नहीं आती है। ‘वाल्मीकि रामायण’ के मुताबिक जब रावण और श्री राम के बीच युद्ध हो रहा था तो देवराज़ इंद्र ने श्री राम की सहायता हेतु अपना दिव्य रथ और अपने सारथी मातलि को भेजा था।

इसी मातलि ने श्री राम से यह कहा कि “क्या आप रावण को मारने की युक्ति भूल गये हैं जो इतनी देर कर रहे हैं?

अथ संस्मारयामास मातली राघवं तदा |

अजानन्निव किं वीर त्वमेनमनुवर्तसे || ६-१०८-१

अर्थः- मातलि ने रघुनाथ जी को कुछ याद दिलाते हुए कहा कि हे वीरवर! आप अनजान की तरह क्यों इस राक्षस का अनुसरण कर रहे हैं ?

विसृजास्मै वधाय त्वमस्त्रं पैतामहं प्रभो |

विनाशकालः कथितो यः सुरैः सोऽद्य वर्तते || ६-१०८-२

अर्थः- मातली कहते हैं कि कि “हे प्रभु श्री राम! आप ब्रह्मा जी के अस्त्र का प्रयोग करें क्योंकि अब देवताओं के अनुसार रावण के वध का समय आ चुका है”

ततः संस्मारितो रामस्तेन वाक्येन मातलेः |

जग्राह स शरं दीप्तं निःश्वसन्तमिवोरगम् || ६-१०८-३
यं तस्मैन् प्रथमं प्रादादगस्त्यो भगवानृषिः |
ब्रह्मदत्तं महाबाणममोघं युधि वीर्यवान् || ६-१०८-४

अर्थः- मातलि के याद कराने के बाद प्रभु श्री राम को उस अस्त्र का स्मरण हो गया, फिर उन्होंने फुफकारते हुए सर्प के समान उस तेजस्वी बाण को अपने हाथ में ले लिया। यह वही बाण था जिसे  ब्रम्हा ने सबसे पहले इंद्र को दिया था ।

इस बाण को इंद्र ने अगत्स्य को दिया था और जिसे अगस्त्य ऋषि ने श्री राम को युद्ध में उस वक्त दिया था जब अगत्स्य श्रीराम को आदित्य ह्दय स्त्रोत्र का गुप्त ज्ञान दे कर रावण के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार करते हैं

स रावणाय संक्रुद्धो भृशमायम्य कार्मुकम् |

चिक्षेप परमायत्तः शरं मर्मविदारणम् || ६-१०८-१६
स वज्र इव दुर्धर्षो वज्रिबाहुविसर्जितः |
कृतान्त इव चावार्यो न्यपतद्रावणोरसि || ६-१०८-१७

अर्थः- श्रीराम ने अत्यंत कुपित होकर बड़े यत्न के साथ धनुष को पूर्णरुप से खींच कर उस मर्मभेदी बाण को रावण पर चला दिया। वज्रधारी इंद्र के हाथों से छूटे हुए वज्र के समान दुर्धर्ष और काल के समान अनिवार्य वह बाण रावण की छाती पर जा लगा।

स विसृष्टो महावेगहः शरीरान्तकरः शरः |

च्छेद हृदयं तस्य रावणस्य दुरात्मनः || ६-१०८-१८

अर्थः- शरीर का अंत कर देने वाले इस महान वेगशाली श्रेष्ठ बाण ने छूटते ही दुरात्मा रावण के ह्रदय को विदीर्ण कर डाला ।

रुधिराक्तः स वेगेन शरीरान्तकरः शरः |

रावणस्य हरन् प्राणान् विवेश धरणीतलम् || ६-१०८-१९

अर्थः- शरीर का अंत करके रावण के प्राण हर लेने वाला वब बाण उसके खून से रंगकर वेगपूर्वक धरती में समा गया ।

‘वाल्मीकि रामायण’ के इन श्लोकों को ठीक से पढ़ा जाए तो यह संकेत मिलता है कि रावण की नाभि में कोई अमृत से भरा अमृत कुंड नहीं था। दूसरे, वह बाण ब्रह्मा जी के द्वारा तो निर्मित था, लेकिन वो ब्रह्मास्त्र नहीं था । इस बाण को ब्रह्मा जी ने सबसे पहले इंद्र को दिया था। इसी बाण को इंद्र ने अगत्स्य ऋषि को दिया था । श्रीराम को ऋषि अगस्त्य ने  इसी बाण को युद्ध के पहले उस वक्त दिया था जब श्री राम युद्ध के परिणाम को लेकर आशंका में थे। अगस्त्य ने श्री राम को आदित्य ह्दय का पाठ कराकर भगवान सूर्य की अराधना कराई थी । संभवत इसके ठीक बाद ही श्री राम को अगस्त्य ऋषि ने रावण को मारने वाला ये विशेष बाण दिया था ।

तमिल कम्ब रामायण में रावण के वध की कथा


तमिल भाषा की कम्ब रामायण में भी रावण की नाभि में अमृत से भरा अमृत कुंड होने की कोई कथा नहीं है। कंब रामायण के अनुसार श्रीराम पहले रावण के उस धनुष को तोड़ डालते हैं जिसे ब्रह्मा ने उसे दिया था। इसके बाद श्रीराम विचार करते हैं कि नारायण की नाभि से निकले ब्रह्मा के अस्त्र से ही रावण का वध किया जा सकता है। इसके बाद श्रीराम ब्रह्मा के उस बाण से रावण की छाती पर प्रहार करते हैं और रावण का वध हो जाता है ।

वाल्मीकि रामायण और कम्ब रामायण दोनों में ही कहीं भी विभीषण के द्वारा रावण की नाभि में अमृत से भरा अमृत कुंड होने का रहस्य बताने की कथा नहीं आती है। वाल्मीकि रामायण में मातलि के द्वारा जरुर श्रीराम को ब्रह्मा जी के दिए बाण का स्मरण कराया जाता है जो रावण के वध के लिए प्रयुक्त होता है।  

अध्यात्म रामायण में रावण की नाभि में अमृत कुंड होने की कथा


 पहली बार अध्यात्म रामायण में रावण की नाभि में अमृत से भरे अमृत कुंड होने की कथा आती है। अध्यात्म रामायण के युद्धकांड में जब श्रीराम और रावण के बीच युद्ध हो रहा था तो उस वक्त श्रीराम के बाणों से रावण का सिर कट कर गिर जाता है। इसके बाद अचानक उसके सारे सिर फिर से उसके धड़ों पर आकर लग जाते हैं। ऐसा देख कर श्रीराम चिंता में पड़ जाते हैं कि आखिर रावण का वध फिर किस प्रकार करें?

श्रीराम के पास विभीषण आते हैं और उनसे कहते हैं कि –


त एते निष्फलं याता रावणस्य निपातने।

इति चिन्ताकुले रामे सीमप्स्थो विभीषणः।।
उवाच राघवं वाक्यं ब्रह्मदत्तवरो ह्रासौ।
विच्छिन्ना बाहवोSप्यस्य विच्छिन्नानि शिरांसि च ।।

अर्थः- राम को इस प्रकार चिंतामग्न देखकर उनके पास खड़े विभीषण ने कहा – भगवन! ब्रह्मा जी ने रावण को एक वर दिया था । उन्होंने कहा था कि तुम्हारी भुजाएं और सिर बारंबार काटने के बाद भी फिर से उत्पन्न हो जाएंगी।

अध्यात्म रामायण में विभीषण रावण की नाभि में अमृत होने का रहस्य खोलता है


इसके बाद विभीषण रावण की नाभि में अमृत होने का रहस्य उजागर करता है और कहता है –

उत्पत्स्यन्ति पुनः शीघ्रमित्याह भगवानजः ।

नाभिदेशेSमृतं तस्य कुण्डलाकारसंस्थितम् ।।
तच्छोषयानलास्त्रेण तस्य मृत्युस्ततो भवेत।
विभीषणवतः श्रुत्वा रामः शीघ्र पराक्रम।।
पावकास्त्रेण स्योज्य नाभिं विव्याध रक्षसः।
अनन्तरं च चिच्छेद शिरांसि च महाबलः।।

अर्थः- इसके नाभि देश में कुण्डलाकार से अमृत रखा हुआ है। उसे आप अग्नेयास्त्र से सुखा डालिये, तभी इसकी (रावण) मृत्यु हो जाएगी। विभीषण के इस वचन को सुनकर शीघ्र पराक्रमी राम ने अपने धनुष पर अग्नेयास्त्र चढ़ा कर उस राक्षस रावण की नाभि में मारा और फिर महाबली रघुनाथ जी ने क्रोधित होकर उसके सिर और भुजाएं काट डालीं।

रावण की मृत्यु उसके नाभि के अमृत कुंड के सूखने से नहीं होती है


• हालांकि अध्यात्म रामायण में भी रावण की मृत्यु की मृत्यु तत्काल नाभि में अमृत के सूख जाने से नही होती। जब इंद्र के द्वारा भेजे गए रथ के सारथि मातलि के द्वारा श्रीराम को ब्रह्मास्त्र चलाने का आग्रह किया जाता है तब श्रीराम ब्रह्मास्त्र निकाल लेते हैं।

• मातलि श्रीराम से कहता है इस ब्रह्मास्त्र से रावण का सिर न काटें क्योंकि वह सिर काटने से नही मर सकता। मातलि श्रीराम से अनुरोध करता है कि वो अपने ब्रह्मास्त्र से रावण के ह्रदय पर वार करें तभी रावण का वध होगा।

• ‘वाल्मीकि रामायण’ और ‘कम्ब रामायण’ में कहीं भी सीधे तौर पर श्रीराम के द्वारा ब्रह्मास्त्र से ही रावण का वध करने की कथा नहीं आती है । इन दोनों ग्रंथों में यह कहा जाता है कि वह ब्रह्मा जी का एक विशेष बाण था जिससे रावण का वध श्रीराम ने किया। लेकिन अध्यात्म रामायण में इस अस्त्र को सीधे- सीधे ब्रह्मास्त्र कह दिया जाता है।

• इसके अलावा जहां ‘वाल्मीकि रामायण’ और ‘कंब रामायण’ में रावण के वध का रहस्य विभीषण के द्वारा बताये जाने से संबंधित कोई कथा नहीं है , वहीं अध्यात्म रामायण में रावण की नाभि में अमृत से भरे  अमृत कुंड होने का रहस्य  श्रीराम को  विभीषण के द्वारा ही बताया जाता है।

‘रामचरितमानस’ में रावण वध की कथा


तुलसीदास जी ने ‘रामचरितमानस’ में रावण की नाभि में अमृत होने की कथा कही है।यह आंशिक रुप से अध्यात्म रामायण से ही ली गई प्रतीत होती है।इसके अलावा विभीषण के द्वारा ही रावण की नाभि में अमृत कुंड होने का रहस्य बताया जाता है । यह कथा भी अध्यात्म रामायण से ही ली गई है। यह कथा वही है जो हम हमेशा सुनते आए हैं। विभीषण श्री राम को यह बताते हैं कि रावण की नाभि में अमृत कुंड है और इसीलिए उसका वध करना असंभव है –

नाभिकुंड पियूष बस याकें । नाथ जियत रावनु बल ताकें ।।

सुनत बिभिषण बचन कृपाला । हरषि गहे कर बान कराला ।।

इसके बाद ‘रामचरितमानस’ की कथा के अनुसार प्रभु श्री राम 31 बाणों को एक साथ छोड़ते हैं । इसमें एक बाण रावण की नाभि का अमृत सोख लेता है और बाकि के बाणों से रावण का शरीर कट कर गिर जाता है । इसी के साथ रावण का वध हो जाता है। लेकिन ‘अध्यात्म रामायण’ में जहां रावण नाभि में अमृत कुंड सूखने के बाद भी युद्ध करता है और आखिर में ब्रह्मास्त्र के द्वारा रावण का वध होता है , वही रामचरितमानस में इन्ही 31 बाणों में एक बाण ( जो कि ब्रह्मास्त्र नहीं है) से रावण की नाभि का अमृत सूख जाता है और इसके साथ ही  रावण का वध भी हो जाता है ।



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