तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।तंत्रिका कोशिका।

तंत्र--एक कदम और आगे



माओ (कहानी का पात्र) 


माओ ने अपने जीवन संस्मरण में एक घटना लिखी, हालांकि वह दूसरे परिपेक्ष्य में इसे वर्णन करता है।

जब वह छोटा था तब उसकी मां बीमार पड़ी, बड़ा बगीचा था। खूब फूल खिले थे, माओ ने कहा कि तुम चिंता न करो बगीचे को मैं संभाल लूंगा। मां को ठीक होने में महीना भर लग गया। माओ पूरा दिन बाहर बगीचे में रहता था। जब थोड़ी ताकत हुई और छड़ी के सहारे बाहर निकली तो बगीचे की हालत देखकर रो पड़ी।


हर फूल सूख चुका था, हर पत्ता पीला पड़ चुका था, हर कली मुरझा चुकी थी।
 मानो बगीचा न होकर कोई कब्रिस्तान हो। मरघट सा उजाड़, माओ ने कहा 
----कि मैं क्या करूँ?मैंने हर फूल को प्रेम किया,, हर पत्ते को सहलाया, फूल और पत्तों को पानी दिया प्रतिदिन, फिर भी ये कुम्हला गए, पता नहीं क्यों सूख गए! इतनी मेहनत के बावजूद!  

मां हंस पड़ी। बोली कोई बात नहीं, तुझे पता नहीं था न, इसलिए ऐसा हुआ। तू पत्तों को सींचता रहा, जबकि इन फूल और पत्तों के प्राण होते हैं, जड़ो में।।
उनको सींचना पड़ता है, उनको तर करना पड़ता है, तब जाकर फूल खिलते हैं, तब जाकर कोंपलें निकलती हैं।


माओ ने पूछा कि जड़ें कहाँ हैं वे तो कहीं दिखाई नहीं दे रही?
मां ने कहा
---- जड़ो की यही तो खासियत है, वे होती तो हैं लेकिन हमारा ध्यान ही नहीं जाता उस और। क्योंकि वे दिखाई नहीं देती। 

 आप विद्वान हैं तो सबको दिखेगा। दुनिया ख्याति मानेगी।
 आप नाभि से जुड़े हुए स्वस्थ मनुष्य हैं तो कौन पूछेगा, जड़ों को कौन देखना चाहता है, फूलों की प्रशंसा है, लेकिन एक सजग माली जड़ो को देखता है, उन्हें संभालता है, उसे पता है फूल पत्ते तना कलियां, ये तो उपोत्पाद  (by-product) हैं।


मनुष्य भी एक वृक्ष है। हाथ पैर इंद्रियां उसके पत्ते टहनियां हैं, बुद्धि उस मनुष्य रूपी वृक्ष का शिखर है,  वह (बुद्धि) उस वृक्ष का फूल है व नाभि है जड़। 

इसीलिए मनुष्य गर्भ में गर्भनाल से नाभि के द्वारा जुड़ा होता है खोपड़ी के द्वारा नहीं। क्योंकि फूल को पोषण की जरूरत नहीं, जड़ों को जरूरत है।
 जब जड़ें स्वस्थ होंगी, उनमें पर्याप्त खाद होगा, दीमक न लगी होगी तो फूल तक अतिरिक्त ऊर्जा पहुंचेगी ही,पेड़ फूलों फलों से लद जाएगा।


आजकल हम दो तीन साल के बच्चों के पीछे पड़े हैं। उनकी बुद्धि को विकसित करने। हम फूल को सींच रहे हैं, और फूल प्रतिदिन कुम्हला रहे हैं, उनका बचपन बुझ गया है, क्योंकि जड़ो की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं।  

नाभि के बारे में तो कोई सोचता ही नही, गंगा नहाने जाता हूँ या अन्य किसी नदी के तट पर वहां लोगों को नहाते देखता हूँ। मन वितृष्णा से भर जाता है। पेट निकले हुए लोगो की भीड़, नाभि जो रीढ़ के सबसे नजदीक होनी चाहिए वह फूलकर दो फिट दूर कहीं पड़ी है।


रावण ने अशोकवाटिका में मां सीता को बहुत से सम्बोधन किए हैं जिनमें एक है-

----हे करतलउदरी----यानी हथेली जैसे पेट वाली।

हथेली देखी है न! दोनों तरफ से मोटी, बीच में से अंदर।
यानी ऊपर छाती पुष्ट निकली हुई, नीचे सुडौल जंघाएँ, पेट एकदम अंदर।

 करतलउदरी,      लेकिन आजकल की भीड़ ऊपर से पतले, पेट विशाल फूला हुआ, फिर नीचे से पैर पतले पतले, यानी आदर्श शरीर के ठीक उलट।


ऊपर से पेट में कुछ भी डालना, गया तो नाभि पर ही न।
 क्यों अपनी जड़ों के दुश्मन हो गए हो?, क्यों उनमें खुद ही घुन लगाने को बेचैन हो? पत्ते पीले पड़ जाएंगे, फूल मुरझा जाएंगे।
ये रुग्ण मनुष्यता, शरीर और मन के स्तर पर हारे हुए लोगों की भीड़, यह अपनी जड़ो को न संभालने का परिणाम है, यह नाभि पर किए गए तुम्हारे अत्यचार हैं, चेत सको तो चेतो।


यह शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा है।  इस चक्र जितना जागृत शरीर में कुछ भी नहीं।  हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक इसी से जुड़े हैं।  लोग तंत्र के बारे में पूछते रहते हैं।


 यह है शुद्ध तंत्र।


तंत्र मनुष्य के जीवन को खूबसूरत निरोग और उच्च चेतना सम्पन्न करने की एक बहुत वैज्ञानिक विद्या है।



नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।



*सूर्यदेव*




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