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Showing posts from September, 2020

श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४]ध्रुव चित्र।।अधर्म की वंशावली।।

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श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४] (ध्रुव चित्र) दोहा-हरि भक्त ध्रुव ने करी जिस विधि हृदय लगाय। सो नोवें अध्याय में दीनी कथा सुनाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! फिर मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! इस प्रकार शिव पार्वती ने विवाह का प्रसंग कहकर हमने आपको सुनाया। अब हम तुम्हें ध्रुव चरित्र कहते हैं सो ध्यान पूर्वक सुनिये। अधर्म की वंशावली।। सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार, नारद जी, ऋभु, हंस, आरूणी, और यति आदि ब्रह्मा जी के पुत्रों ने नैष्टिक प्राचार्य होने के लिये गृहस्थाश्रम नहीं किया। अतः उनके द्वारा कोई वंशोत्पत्ति नहीं हुई। हे विदुर जी! बृह्मा जी का एक पुत्र अधर्म भी हुआ, उसकी मृषा नामा पत्नी से दम्भ नाम पुत्र और माया नाम कन्या उत्पन्न हुई। इन दोनों बहन भाई को पति पत्नी रूप बना कर मृत्यु ने गोद ले लिया। तब दम्भ की पत्नी माया से लोभ नाम का पुत्र और शठता नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई तब वे दोनों लोभ और शठता स्री पुरुष हुए। जिससे शठता में लोभ ने क्रोध नाम के पुत्र और हिंसा नाम की कन्या को उत्पन्न किया । तब वे दोनों भी पति पत्नी हुई। जिससे हिंसा नाम स्त्री में क्रोध ने काले नाम का स...

श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ८[स्कंध४]पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना।।

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श्रीमद भागवद पुराण*आठवां अध्याय* [स्कंध४] (पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना)  दो.-पार्वती कहै सती ने ली जिमि अवतार। सो अष्टम अध्याय में वर्णित कथा उचार ।। श्री शुकदेव मुनि बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार दक्ष के यज्ञ की कथा कह कर मेत्रैय बोले-हे विदुर ! दक्ष प्रजापति की कन्या सती जी अपने शरीर को छोड़ कर हिमालय की स्त्री मेंना के उदर से प्रगट हुई। फिर भी वह पार्वती निरंतर भजन करके महादेव पति को पुनः इस प्रकार से प्राप्त हुई कि जिस प्रकार प्रलय काल से सोई हुई मायादि शक्ति ईश्वर को प्राप्त होती है। विदुर जी बोले-हे मैत्रेय जी ! आप उन जगदंबा पार्वती जी के जन्म का वृतांत पूर्ण रूप से सुनाईये कि फिर किस प्रकार से वे महादेव जी को पति रूप में प्राप्त कर सकीं। तब श्री मैत्रेय जी ! बोले हे विदुर जी ! जिस प्रकार पार्वती जी का हिमाचल की स्त्री मैनावती से जन्म हुआ जिस प्रकार तप करके भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया, सो वह सब कथा आपको सुनाता हूँ, आप इसे चित्त लगा कर सुनो। जिस समय दक्ष के यज्ञ में सती जी ने अपनी देह का त्याग किया था, उस समय सती जी ने अपने हृदय में...

श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]।।प्रजापति दक्ष की कथा।।

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  श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४] (दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन) दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई। सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! विदुर जी से मेत्रैय ऋषि बोले कि, हे विदुर! जब शिवजी से ब्रह्मा जी ने इस प्रकार कहा तो भगवान शंकर जी ने कहा- हे ब्रह्माजी! सुनिये ! मैं उन बाल बुद्धियों के अपराध को न तो कुछ कहता हूँ और न कुछ चिन्ता करता हूँ। क्योंकि वे अज्ञानी पुरुष ईश्वर की माया से मोहित रहते हैं। अतः इसी कारण मैंने इन लोगों को उचित दण्ड दिया है। आप चाहें कि दक्ष का यही शिर फिर से हो जावे तो वह किसी प्रकार नहीं हो सकेगा । क्योंकि दक्ष का वह शिर तो यज्ञ की अग्नि में जल गया हैं। अतः ऐसा हो सकता है कि दक्ष का मुख बकरे का लगा दिया जाय । तथा भगदेवता के नेत्रों की कहते हो कि वह फिर होवें सो वह भी नहीं होगा, अतः इसके लिये यह है कि भगदेवता अपने भाग को मित्र देवता के नेत्रों से देखा करे। अब रही पूषा देवता के दाँतों की सो वह यजमान के दाँतों से पिसा हुआ अन्न भोजन किया फरें। अब उस यज्ञ में पत्थरों अथवा अस्त्र-शस्त्रों से जिन लोगों...

राजा परीक्षित का कलयुग को अभय देना।। कलयुग के निवास स्थान।।

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  परीक्षित का भूमि और धर्म को आश्वासन और कलियुग के वास-स्थान का निरूपण।। श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का सत्रहवां आध्यय [स्कंध १] दो० क्यो परीक्षित नृपति जस निग्रह कलियुग राज ।  सोइ सत्रहवे अध्याय में कथा वर्णी सुख लाज ।। १७।।                  Kalyug and raja parikshit conversation  सूतजी कहने लगे कि, वहाँ उस सरस्वती के तट पर राजा परीक्षित ने गौ और बैल को अनाथ की तरह पिटते हुये देखा और उसके पास खड़े हुए हाथ में लठ लिये एक शूद्र को देखा जो राजाओं का सा वेष किरीट मुकुट आदि धारण किये था। वह बैल कमलनाथ के समान श्वेत वर्ण था और डर के मारे बार-बार गोबर और मूत्र करता था और शूद्र को ताड़ना के भय से कांपता हुआ एक पाँव से चलने को घिसटता था। सम्पूर्ण धर्म कार्यों के संपादन करने वाली गौ को, शूद्र के पाँवों की ताड़ना से बड़ी व्यथित देखी। बछड़े से हीन उस गौ के मुख पर आँसुओं की धारा बह रही थी और वह घास चरने की इच्छा करती थी। यह दशा देखकर राजा ने बाण चढा कर मेघ की सी गम्भीर वाणी से ललकार कर कहा-हे अधर्मी तू कौन है जो मेरे होते हुए, अन्याय से इन ...

तृतीय स्कंध श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय।। यादव कुल का नाश।।

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  तृतीय स्कंध श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय * श्री कृष्ण द्वारा कंस वध तथा माता पिता का उद्धार।।  कृष्ण लीला करते हुए श्रीकृष्ण द्वारा किये गये मुख्य चरित्र।। कृष्ण भगवान का कुल।।यादव कुल को श्राप किसने दिया और क्यू? दो०-जा विधि सो श्री कृष्ण ने, दीयो कंस पछार । सो तृतीय अध्याय में, शुक मुनि कही उचार ॥ उद्धव जी बोले-हे विदुर जी! श्री कृष्ण भगवान अपने बड़े भाई वल्देव जी सहित मथुरा पुरी में आये, वहाँ अपने पिता वसुदेव जी और माता देवको जी को बंदि से मुक्त कराने के लिये ऊँचे रंग भूमि में जाय ऊँचे मंच पर से दैत्य राज कंस को केश पकड़ कर पृथ्वी पर पटका और प्राणान्त हो जाने पर भी उसके मृतक शरीर को बहुत घसीटा। माता पिता को बंदि से मुक्त किया और उग्रसेन महाराज को सिंहासन पर बिठाया। तदनंतर सांदीपन गुरू के यहाँ साँगो पांग विद्या अध्ययन करके गुरू दक्षिणा में पंच जन नामक दैत्य को उदर फाड़ कर मारा और गुरू पुत्र को यमलोक से लाय गुरू को भेंट दिया। फिर भगवान कृष्ण ने भीष्म नृप की कन्या रुक्मिणी का हरण कर शिशुपाल आदि राजाओं का मान मर्दन किया। बिना नथे सात बैलों को एक साथ नाथ कर नग्न जित नरेश की...

श्रीमद भागवद पुराण* छटवां अध्याय [स्कंध४]।।शंकर जी से प्रजापति दक्ष को पुनः जीवित।।

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श्रीमद भागवद पुराण* छटवां अध्याय [स्कंध४] ब्रह्मा सहित सब देवताओं को शंकर जी से प्रजापति दक्ष को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करना दोहा-देवन किन्ही प्रार्थना, ज्यों शिव जी सों आय। सों छट्वे अध्याय में, कही कथा दर्शाया॥  श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित! इस प्रकार विदुर जी से मेत्रैय जी कहने लगे-कि हे विदुर जी ! वीरभद्र ने जब दक्ष को मार डाला और भगदेवता की आँखों को निकाल लिया, तथा पुषादेव के दांत उखाड़ लिये, और भृगु जी की दाड़ी मूछों को उखाड़ लिया, तब सारी यज्ञशाला हवन सामग्री को विध्वंस कर दिया, और जब वह कैलाश पर्वत पर लौट गया तो, वहाँ उपस्थित देवता और ऋषि-मुनि ऋत्विज आदि सब ब्राह्मणों एवं सांसदों सहित अत्यन्त भयमीत हो वृह्म जी के निकट आये और जिस प्रकार वहाँ जो घटना व्यतीत हुई थी वह सब ज्योंकी त्यों कह सुनाई। क्यू ब्रह्मा जी एवं नारायण जी दक्ष के यज्ञ में नही गये थे? हे विदुर जी! यदि कोई यह शंका उत्पन्न करे कि क्या ब्रह्माजी दक्ष के यज्ञ में नहीं गये थे। सो जानना चाहिये कि इस होनहार को ब्रह्मा जी और श्री नारायण जी पहले से ही जानते थे, यही कारण था कि वह पहले से ही दक्ष के यज्ञ मे...

श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४]।रूद्र अवतार एवं स्वरूप।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।।

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  श्रीमद भागवद पुराण *पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध ४] दोहा- किया दक्ष यज्ञ आय जिमी, वीर रूद्र शिव गण। सो पंचम अध्याय में, कथा कही समझाय।। दक्ष यज्ञ विध्वंस।। दक्ष वध।। श्री शुकदेव मुनि कहने लगे कि है परिक्षित! जब विदुर जी को यह प्रसंग मैत्रेय जी ने सुनाया तो विदुर जी ने पूछा -हे मुने ! जब सती जी दक्ष के यहाँ देह त्याग कर गई तो शंकर भगवान के गणों ने दक्ष यज्ञ विवंश करना चाहा, परन्तु भृगु द्वारा उत्पन्न किये गये ऋभु नामक देवताओं ने उन्हें भोजशाला से मार मार कर बाहर निकाल दिया था। सो हे प्रभू ! वह शिव गण वहां से भाग कर कहाँ गये? और आगे क्या हुआ? सो सब कथा मुझे कृपा कर सुनाईये। तब मेत्रैय जी बोले-हे विदुर जी ! दक्ष द्वारा निरादर से सती द्वारा देह त्याग और अपने पार्षदों का ऋभुओं द्वारा भगा देने का समाचार भगवान शंकर जी ने जब नारद जी के मुखारविंद से सुना तो उन्हें अत्यंत क्रोध उत्पन्न हुआ जिसके कारण शिव ने अपने ओठों को दाँतों से दवा कर भयानक रूप से भारी अठ्हास करते हुये गंभीर नाद किया, और भूल से लिप्त अपनी जटाओं में से एक महातेज वाली जटा को उखाड़ कर पृथ्वी पर पटक कर देमारा। रूद्र अवतार एवं स्व...