श्रीमद भागवद पुराण महात्मय।। राजा परीक्षित-शुकदेव संवाद।।

परीक्षित के किन वाक्यों से प्रेरित हो कर श्रीशुकदेव जी ने श्रीमदभगवद पुराण सुनाया।।


* आठवाँ अध्याय*स्कंध २

(भगवान की लीला अवतार वर्णन')

दो० प्रश्न परोक्षत ने किये, विष्णु चरित्रहित जोय ।

या अष्टम अध्याय में, भष्यो शुक मुनि सोय ॥

* आठवाँ अध्याय (भगवान की लीला अवतार स्वण') दो० प्रश्न परोक्षत ने किये, विष्णु चरित्रहित जोय । या अष्टम अध्याय में, भष्यो शुक मुनि सोय ॥ इस वृतान्त को श्रवण कर राजा परिक्षत ने कहा हे वृह्मन् श्री शुकदेव जी ! हे महा मुनि ! भगवान के अवतारों की कथा सुन कर मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ है। आपके द्वारा वर्णित कथा में वृह्मा जी के प्रेरे हुये, नारद जी ने जिस जिसको जिस प्रकार उपदेश किया सो कहिये । हे वृम्हन् ! निर्गुण भगवान का पंच महाभूत देह धारण करना अपनी इच्छा से है? अथवा कर्म आदि के कारण देह धारण करते हैं! इसमें आप जो भी यथार्थ जानते हैं सो मेरे सम्मुख प्रकट करिये । वृह्मा जी जिस परमात्मा को नाभी से उत्पन्न हुये हैं उस विराट भगवान का अवयव और स्वरूप और उस लौकिक पुरुष का अवयव स्वरूप समान ही है तो लौकिक    पुरुष में, बिराट पुरुष को जो स्थिति कही गई है वह हमारी बुद्धि मैं नहीं आई है सो आप वह सब समझाकर कहो कि जिस प्रकार विराट पुरुष के नाभी से वृह्मा हुआ जिसने परमात्मा के स्वरूप को देखा तथा किस प्रकार प्राणियों की तथा जगत व अन्य जड़ चेतन की रचना की सो सब समझा कर कहिये। और वे माया के स्वामी श्री हरि जो विश्व के उत्पत्ति कर्ता, पालन तथा संहार कर्ता अपनी माया का त्याग करके कहाँ निद्रा मग्न रहते हैं। आपने कहा कि प्रथम विराट भगवान के अगों द्वारा ये लोक लोकपालों द्वारा रचे गये हैं और इन्हीं लोकपालों से इनके अबयवों को कल्पना हुई है यह आप पहले वर्णन कर चुके हैं। सो यह भी सब विस्तार सहित सुनाइये । महाकल्प और अवान्तर कल्प कितना है, काल कितना है, भूत,वर्तमान, भविष्य, का बाचन काल किस प्रकार अनुमान किया जाता है काल की सूक्ष्म और स्थूल प्रवृत्ति किस प्रकार जानी जाती है, और वे स्थान कितने और कैसे है जो कर्मो से उत्पन्न होते हैं। सतो गुण, रजो, तमो, गुण के परिणाम रूप देवता आदि देह की कामना करते हुये कौन प्राणी कौन कर्मों के कारण कौन कौन देह प्राप्त करते हैं। हे वृह्मन् यह भी कहिये कि पृथ्वी, पाताल, द्वीप, नदी, आकाश, समुद्र, दिशा गृह, नक्षत्र, पर्वत, नदी, उनको तथा इनके निवासी प्राणियों की उत्पत्ति किस प्रकार होती है। वृह्मान्ड का बाहर भीतर प्रमाण कितना है, महा पुरुषों के चरित्र, वर्णाश्रम, धर्म का निर्णय और ईश्वर के आश्चर्य मयी अवतारों की लीला, युग तथा युगों का प्रमाण और जिन जिन युगों में जो-जो धर्म प्रवृत्त हुये हैं सो सब सर्व रीति से कहो। मनुष्यों का धर्म, प्रजापाल तथा अधिकारीयों का धर्म तथा ऋषियों का धर्म, का वर्णन भली भाँति से करो। प्रकृति आदि तत्वों की संख्या उनके लक्षण, कार्य की हेतुता से जानने का प्रकार, ईश्वर की उपासना अष्टांगयोग, तथा असाध्यात्म योग की रीति, योगेश्वरों के एश्वर्य की गति, अणि मादि    ऐश्वर्य द्वारा आर्चिरादि मार्ग से गमन, योगीजनों के लिंगदेह का विनाश, समस्त वेद पुराण तथा शास्त्रों का सार, जीवों की उत्पत्ति, स्थिति, भंडार, वैदिक, तथा स्मार्त कर्म विधि, धर्म, अर्थ, कार्य की विधि यह सब वर्णन करिये । उपाधि रहित धर्म, ईश्वर में लीन प्राणियों की रचना, पाखंड की उत्पत्ति, आत्मा के बंधन तथा मोक्ष, निज स्वरूप में आत्मा स्थिति, माया मयी भगवान का अपनी माया से क्रीड़ा करना फिर माया को त्याग कर प्रादि वेष धारण करना यह सब आप सुनायें। पाप एवं अधर्म करनेवालों की मृत्यु के उपरांत का परिणाम और किन कर्मो से मोक्ष मिलती है तथा किन कर्मो से पाप में फंसता है। यह सब बताने की कृपा करें। सूत जी बोले राजा परीक्षत ने भगवान चरित्र कहने को अर्थ इस प्रकार प्रार्थना की तो श्री शुकदेव जी परीक्षत से अति प्रसन्न हुये। तब पूछे हुये प्रश्नों का उत्तर क्रमशः इस प्रकार कहना आरंभ किया।

Parikshit shukdev samwad




इस वृतान्त को श्रवण कर राजा परिक्षत ने कहा हे वृह्मन् श्री
शुकदेव जी ! हे महा मुनि ! भगवान के अवतारों की कथा सुन कर
मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ है। आपके द्वारा वर्णित कथा में वृह्मा
जी के प्रेरे हुये, नारद जी ने जिस जिसको जिस प्रकार उपदेश
किया सो कहिये । हे वृम्हन् ! निर्गुण भगवान का पंच महाभूत
देह धारण करना अपनी इच्छा से है? अथवा कर्म आदि के कारण
देह धारण करते हैं! इसमें आप जो भी यथार्थ जानते हैं सो मेरे
सम्मुख प्रकट करिये । वृह्मा जी जिस परमात्मा को नाभी से
उत्पन्न हुये हैं उस विराट भगवान का अवयव और स्वरूप और
उस लौकिक पुरुष का अवयव स्वरूप समान ही है तो लौकिक
पुरुष में, बिराट पुरुष को जो स्थिति कही गई है वह हमारी बुद्धि
मैं नहीं आई है सो आप वह सब समझाकर कहो कि जिस प्रकार
विराट पुरुष के नाभी से वृह्मा हुआ जिसने परमात्मा के स्वरूप
को देखा तथा किस प्रकार प्राणियों की तथा जगत व अन्य जड़
चेतन की रचना की सो सब समझा कर कहिये। और वे माया के
स्वामी श्री हरि जो विश्व के उत्पत्ति कर्ता, पालन तथा संहार
कर्ता अपनी माया का त्याग करके कहाँ निद्रा मग्न रहते हैं।
आपने कहा कि प्रथम विराट भगवान के अगों द्वारा ये लोक
लोकपालों द्वारा रचे गये हैं और इन्हीं लोकपालों से इनके अबयवों को कल्पना हुई है यह आप पहले वर्णन कर चुके हैं। सो
यह भी सब विस्तार सहित सुनाइये । महाकल्प और अवान्तर
कल्प कितना है, काल कितना है, भूत,वर्तमान, भविष्य, का बाचन
काल किस प्रकार अनुमान किया जाता है काल की सूक्ष्म और
स्थूल प्रवृत्ति किस प्रकार जानी जाती है, और वे स्थान कितने
और कैसे है जो कर्मो से उत्पन्न होते हैं। सतो गुण, रजो, तमो,
गुण के परिणाम रूप देवता आदि देह की कामना करते हुये कौन
प्राणी कौन कर्मों के कारण कौन कौन देह प्राप्त करते हैं। हे वृह्मन्
यह भी कहिये कि पृथ्वी, पाताल, द्वीप, नदी, आकाश, समुद्र, दिशा
गृह, नक्षत्र, पर्वत, नदी, उनको तथा इनके निवासी प्राणियों की
उत्पत्ति किस प्रकार होती है। वृह्मान्ड का बाहर भीतर प्रमाण
कितना है, महा पुरुषों के चरित्र, वर्णाश्रम, धर्म का निर्णय और
ईश्वर के आश्चर्य मयी अवतारों की लीला, युग तथा युगों का
प्रमाण और जिन जिन युगों में जो-जो धर्म प्रवृत्त हुये हैं सो सब
सर्व रीति से कहो। मनुष्यों का धर्म, प्रजापाल तथा अधिकारीयों
का धर्म तथा ऋषियों का धर्म, का वर्णन भली भाँति से करो।
प्रकृति आदि तत्वों की संख्या उनके लक्षण, कार्य की हेतुता से
जानने का प्रकार, ईश्वर की उपासना अष्टांगयोग, तथा असाध्यात्म योग की रीति, योगेश्वरों के एश्वर्य की गति, अणि मादि
ऐश्वर्य द्वारा आर्चिरादि मार्ग से गमन, योगीजनों के लिंगदेह का
विनाश, समस्त वेद पुराण तथा शास्त्रों का सार, जीवों की उत्पत्ति, स्थिति, भंडार, वैदिक, तथा स्मार्त कर्म विधि, धर्म, अर्थ,
कार्य की विधि यह सब वर्णन करिये । उपाधि रहित धर्म, ईश्वर
में लीन प्राणियों की रचना, पाखंड की उत्पत्ति, आत्मा के बंधन
तथा मोक्ष, निज स्वरूप में आत्मा स्थिति, माया मयी भगवान
का अपनी माया से क्रीड़ा करना फिर माया को त्याग कर प्रादि
वेष धारण करना यह सब आप सुनायें। पाप एवं अधर्म करनेवालों की मृत्यु के उपरांत का परिणाम और किन कर्मो से मोक्ष
मिलती है तथा किन कर्मो से पाप में फंसता है। यह सब बताने की कृपा करें। सूत जी बोले राजा परीक्षत ने भगवान चरित्र
कहने को अर्थ इस प्रकार प्रार्थना की तो श्री शुकदेव जी परीक्षत
से अति प्रसन्न हुये। तब पूछे हुये प्रश्नों का उत्तर क्रमशः इस
प्रकार कहना आरंभ किया।






।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अष्टम अध्याय समाप्तम🥀।।



༺═──────────────═༻

Comments

Popular posts from this blog

Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (Hinduism)

रेवंद चीनी: आयुर्वेद में इसके महत्वपूर्ण लाभ और उपयोग

Kalki 2898 AD Box Office Day 10: Prabhas-Deepika Padukone's Film Stays Strong, Inches Closer To Rs 500 Crores