उद्धव जी द्वारा भगवान श्री कृष्ण का बल चरित्र वर्णन।।


श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २ स्कंध ३

विदुर उध्यव संवाद

दो०-उद्धव ने श्री कृष्ण को बरनी कथा सुनाय।


सो द्वतीय अध्याय में विदुर सुनो मन लाय ॥






जब इस प्रकार भगवद्भक्त उद्धव जी से विदुर जी ने श्री कृष्ण जी की वार्ता पूछी तो श्री कृष्ण विरह का स्मरण कर गद-गद कठ हो उद्धव जी कुछ उत्तर न दे पाये, पश्चात नेत्रों में आये प्रेमाश्रुओं को पौंछ कर मन्द मुसक्यान से यदुकुल के संहार का स्मरण करते हुये उद्धव जी ने विदुर जी से इस प्रकार कहा-हे विदुर जी! मैं आपसे सूर्य रूप श्री कृष्ण के अस्त होने तथा अजगर रूप काल द्वारा शोभा हीन यादवों की क्या कुशल क्षेम कहूँ। भगवान ने जो रूप अपनी योग माया का बल दिखाने के लिये नर लीला को गृहण किया था, वह रूप आपको विस्मित करने को आभूषणों का भूषण रूप था। बड़े खेद की बात है कि जिस नंद नंदन को मारने की इच्छा से दुष्टा पूतना राक्षसी ने काल कूट को अपने स्तनों पर लगा कर गोद में ले दूध पिलाया था उस दुष्टा को भी भगवान कृष्ण ने अपनी यशोदा मैया के समान जान कर उत्तम गति प्रदान की थी। यद्यपि भक्तों को अनेकों वर्ष तक तप करने पर भी जो दर्शन दुर्लभ है सो उन श्री कृष्ण भगवान में वैर भाव से मन लगाने वाले राक्षसों को भी परम भाग्यवान मानता हूँ। क्योंकि उन्होंने अपने सम्मुख भगवान को गरुड़ पर सवार चक्र सुदर्शन लिये संग्राम में दर्शन किया और परम धाम को प्राप्त किया। जिन्होंने ग्वाल बाल गोपालों सहित नंद की गाय और बछड़ों को यमुना तट चराया तथ कुन्जों में, उपवनों में विहार किया कि जिन कुन्जों में कोकिलादि पक्षियों की मनभावनी बोलो बोलने के चह चहाट से युक्त वृक्षों में नवीन लतायें लहलहा रही थी जहाँ वृज वासियो को दिखाने योग्य कुमार लाला करके जहाँ लक्ष्मी के स्थान पर श्वेत वेलों से युक्त गाय समूह को चराते हुये बंशी बजाते हुये विन्द्रावन धाम में बिहार करते थे। जहाँ पर कंस द्वारा मारने को पठाये हुये उन महावली राक्षसों की अपनी क्षणक लोला मात्र से इस भाँति नष्ट कर दिया जैसे कोई बालक खेल ही खेल में किसी मिट्टी के खिलौने को तोड़ डाले और विष युक्त जल पान से मरे ग्वाल और गायों को जीवित किया, काली नाग से दूषित रहने वाले विष जल को निर्मल करनेके लिये कालीदह में जाय कालो नाग को नाथा और उसे रमणीक दीप भेज कर यमुना जल को निर्मल किया। जिस श्री कृष्ण न गोबर्धन को अनेकों सामिग्री से नंद द्वारा पूजित कराके गायों की पूजा कराई, जिससे इन्द्र ने कोप करके में अत्यधिक जल वृष्टि करके वृज को डुबाना चाहा तब उनने वृज रक्षा हित गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर छत्र समान धारण कर वृज की रक्षा की। शरद को पूर्णिमा के दिन जिन भगवान श्री कृष्ण चन्द्र ने अपनी मधुरतान मुरली की सुना कर मन हरण आकर्षण मंत्र को बजाय कर गाय एवं गोप गोपिकाओं को बुलाकर महारास की लीलायें रची।

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम द्वितीय अध्याय समाप्तम🥀।।༺═──────────────═༻

Comments

Popular posts from this blog

Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (Hinduism)

Chanting Mantras for Sustainable Living: A Holistic Approach to Environmental Consciousness

राम मंदिर उद्घाटन: 30 साल की चुप्पी के बाद 22 जनवरी को अयोध्या में प्रतिज्ञा समाप्त करेंगी सरस्वती अग्रवाल