किस कारण हुआ भक्त प्रह्लाद का असुर कुल में जनम?
श्रीमद भागवद पुराण चौदहवाँ अध्याय [स्कंध ३]
(दिति के गर्भ की उत्पत्ति का वर्णन)
दो०-जैसे अदित के गर्भ से भयौ हिरणाक्ष्यजु आय ।
सो चौदह अध्याय विस कही कथा दर्शाय ।।
प्रह्लाद की कथा।।
श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परिक्षत ! अब आप वह कथासुनिये कि जिम प्रकार विदुर जी ने मुनि रूत्तम से हिरणाक्ष राक्षस
की उत्पत्ति की कथा सुनी थी। तथा किस प्रकार भगवान ने बाराह अवतार धारण कर पृथ्वी का उद्धार करने के लिये जल में प्रवेश किया
और हिरणाक्ष्य का बध कर पृथ्वी का उद्धार किया। तब विदुर जी से
मैत्रेय जी बोले- हे विदुर जी! एक बार संध्या समय पर दक्ष प्रजापति की कन्या दिति ने मरीच के पुत्र कश्यप ऋषि से संतान के निमित्त भोग के अर्थ याचना की। उस समय ऋषि यज्ञशाला में स्थित थे तब दिति ने कहा हे स्वामिन् कामदेव मुझे अति दुख देता है आपको अन्य सभी पत्नियों के संतान है और मेरी कोई संतान नहीं है इस कारण मैं बड़े आश्चर्य में हूँ। जब हमारे पिता दक्ष ने हमसे पति गृहण के विषय
में पूछा था तब हम तेरह बहिनों ने अपको स्वीकार किया था।
हे विद्वान ! तब हमारे पिता ने आपको समर्पण किया था
सो हम सब आपके शील स्वभाव के अनुसार ही चलती हैं सो
हे प्रभु ! आप अब मेरी कामना पूर्ण करो। तब कश्यप ऋषि
ने कहा-हे भक्ति ! तुम्हारा यह प्रिय मनोरथ मैं हित से करूंगा
इस समय सन्ध्याकाल है कुछ घड़ी का धैर्य रखो जिससे संसारी
मनुष्य हमारी निन्दा न करें इस समय शिव भगवान नन्दी पर
सवार हो समस्त अपने भूत प्रेतादिक गणों सहित विचरण करते
हैं सो उनकी तो लज्जा करनी ही चाहिये। कश्यपजी द्वारा इतना समझाने पर भी दिति न मानी और काँमान्ध हो उनका वस्र पकड़
हठ करने लगी, तब कश्यपजी ने भगवान की इच्छा प्रवल जान
कर एकान्त में दिती के साथ रमण किया। पश्चात भोग विलास
करके कश्यपजो स्नान प्राणायाम करने लगे। तथा भगवान ब्रम्ह
स्वरूप का ध्यान करते हुये मौन धारण कर जप करने लगे।
तब दिति उस निन्दित कर्म से लज्जित हो अपने पति के निकट
नीचा शिर किये और इस प्रकार पूछा हे स्वामिन ! मैंने भगवान शिव की लज्जा नहीं की वे सब भूतों के स्वामी हैं कहीं वे
हमारे गर्भ आदि का विध्वंश न करदें। यह मुझसे शिवजी का बड़ा
भारी अपमान एवं अपराध हुआ है। सो कृपा कर मुझे तथा मेरे गर्भ स्थिति जीव की रक्षा के लिये मेरे शंशय का निवारण कीजिये। तब अपनी पत्नी द्वारा विनय युक्त स्वर में शंका प्रकट करने पर संध्यावन्दन के नियम से निवृत हो कश्यप जी ने कहा हे प्रिये ! तुम्हारा चित्त शुद्धन था और हमारी आज्ञा को न मान कर तथा देवताओं का अनादर कर के साँयकाल में भोग करने के कारण तुम्हारे उदर से अमंगल रूप दो पुत्र उत्पन्न होंगे। जो अत्यन्त अधर्मी होंगे वे संपूर्ण जगत को जीत कर देवताओं को दुख देगे। वे दोनों इतने अत्याचारी तथा पापी होंगे कि दीन और निरअपराधी जीवों को मारने और साधु संतों को सतायेंगे, पराई स्त्रियों का हरण करेंगे। तब देवताओं की पुकार सुन भगवान विष्णु अवतार धारण कर उन दोनों को
मार कर पृथ्वी का भार हरण करेंगे। तिस पर दिति ने कश्यप
जी से विनय स्वर से कहा हे नाथ! भगवान विष्णु द्वारा मेरे पुत्रों
का मरण तो बहुत उत्तम होगा परन्तु मैं अपने पुत्रों का मरण
ब्राम्हणों के श्राप द्वारा नहीं चाहूँगी। इस पर कश्यपजी ने कहा
हे भार्या! तुमने अपने किये अपराध का शोकान्वित हो पश्चाताप
किया है इस कारण तथा मेरा व शिव का एवं भगवान विष्णु
का मन से बहुत आदर किया है जिस कारण से तुम्हारे पुत्रों का
एक प्रहलाद नाम का पुत्र भी होगा जो भगवान विष्णु का
परम भक्त होगा और वह सर्व सन्तापहारी भगवान का परम
भक्त होगा।
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