हिन्दू वेदनाओं की अंतहीन कथा।।
#हिन्दू_वेदनाओं_की_अंतहीन_कथा मुझे यात्राओं से चिढ़ है और मंदिरों में दर्शनों के लिये लगी भीड़ मुझे कभी भी पसंद नहीं थी पर पिछले कुछ वर्षों से एक एहसास ने मुझे बदल कर रख दिया। अब न जाने क्यों मुझे लगता है कि हमारे जितने शक्ति-पीठ हैं, जितने ज्योतिर्लिंग हैं, जितने और दूसरे तीर्थ हैं मुझे उन सबका दर्शन करने के लिये अपने रिटायर होने और बूढ़े होने का इंतज़ार नहीं करना है बल्कि जल्द से जल्द उन सब जगहों पर माथा टेकना है। मुझे जल्दी इसलिये है कि कल शायद वो भी हमारी पहुँच से बहुत दूर हो जायेंगे। ऐसा एहसास इसलिये नहीं है कि मैं किसी गहरे निराशावाद का शिकार हूँ बल्कि इसलिये है क्योंकि पिछले कुछ सौ वर्षों के अनुभव और इतिहास ने मुझे ऐसा बना दिया है। लगभग हर पचास-सौ सालों में टूटता और सिमटता भारत तथा भग्नावशेष में बदलते मंदिर इसी बात की गवाही दे रहे है। भारतवर्ष का कटा-फटा मानचित्र देखकर मुझे जितनी पीड़ा होती है इसका बखान शायद शब्दों में कर पाना मेरे लिये असंभव है। ये पीड़ा तब और बढ़ जाती है जब मैं इन्टनेट पर कभी-कभी पाकिस्तान-अफगानिस्तान-मयांमार और बांग्लादेश घूमने चला जाता हूँ।...