पहले एकदिवसीय क्रिकेट में जब 250 का लक्ष्य भी बहुत ज्यादा माना जाता था।

अक्सर बाद में बैटिंग करने वाली टीम 20 -25 ओवर के बाद ही समझ जाती थी कि जीत तो अब वो सकते नहीं तो वो पिच पर समय काटना शुरू करते थे कि थोड़ा अधिक ओवर तक खेल के ऑल आउट हों ताकि थोड़ी प्रतिष्ठा बनी और बची रहे।

दर्शक भी समझते थे कि उनकी टीम हार चुकी है पर मनोबल बढ़ाना कम नहीं करते थे और एक -एक दो -दो रन बन जाने पर भी वो खिलाड़ियों को दाद देते थे। ।

हिंदू समाज अपना मैच तो कब का हार चुका है। अनवरत अपनी भूमि खो रहा है, अपने धर्म स्थान गंवा रहा है, अपनी बेटी खो रहा है लेकिन फिर भी हमें दर्शक की तरह टीम के खिलाड़ियों की हौसला अफजाई करनी है कि चलो इनकी बदौलत पराजय थोड़ी दूर जा रही है। 2014 के बाद से एकाध रन बनते हैं उसपे हम ताली तो बजा लेते हैं पर पता हमें भी है कि स्लॉग ओवर में खुट -खाट से कुछ बदलने वाला नहीं है।

मैं अपने मित्रों से हमेशा कहता हूं कि हम एक हारी हुई जंग लड़ रहे हैं और मेरा ये कथन हर आए दिन हिंदुओं के व्यवहार से पुष्ट होता जा रहा है। हम संभावित हार के बीच भी अपनों को रन आउट कराने में लगे हैं।

इसलिए ऐसे में क्या और कितना बचेगा कह नहीं सकता पर हमें हार को थोड़ा दूर तो धकेलना ही है, सो उसे धकेले जा रहे हैं।


Find the truthfulness in you, get the real you, power up yourself with divine blessings, dump all your sins...via... Shrimad Bhagwad Mahapuran🕉

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