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अभिजीत सिंह जी की वॉल से

गांधी जी की हत्या के बाद शासन द्वारा संघ को आरोपित किया गया।

जगह - जगह संघ के लोगों पर दुष्प्रचार से प्रभावित हिंदू समाज के लोग ही संघ और ब्राह्मण समाज पर हमले करने लगे। कई ब्राह्मण और स्वयंसेवक को बेदर्दी से मारा गया।

संघ के तत्कालीन सरसंघचालक उन दोनों ही श्रेणियों में आते थे, इसलिए उन पर खतरा और भी अधिक था।

और यही हुआ भी। पूज्य गुरुजी गोल्वलकर जिस जगह रुके थे, उनके घर को भी ऐसे लोगों की भीड़ से घेर लिया। उनके हाथ में लाठी - डंडे और मुंह पर गालियां थी।

जब स्वयंसेवकों ने ये दृश्य देखा तो वो लोग भी लाठी लेकर गुरूजी की रक्षा में वहां उपस्थित हो गए।

हिन्दू समाज के लोगों में ही टकराव निश्चित देख पूज्य गुरुजी बाहर आए और वहां उपस्थित स्वयंसेवक भीड़ का जो प्रबोधन किया वो मेरे लिए हमेशा से अक्षरश: पाथेय है।

पूज्य गुरुजी ने कहा था-

"मुझपर गालियों की बौछार और हाथ में दंड लिए मारने को प्रवृत्त ये भीड़ किसी परकीय समाज के लोगों का नहीं है, बल्कि ये सब अपने ही लोग हैं और अपना ही समाज है। ये वही समाज है जिसके जागरण के लिए हमने, तुमने और हम सबने स्वयंसेवकत्व का व्रत लिया है। अगर ये समाज ठीक ही रहता, अगर ये समाज हित और अहित समझने की क्षमता ही रखता और अगर ये समाज मित्र और शत्रु का भेद समझ सकने की समझ ही रखता तो हमें और तुम्हें घर -परिवार त्याग कर इस काम में लगना ही क्यों पड़ता? इसलिये ये समाज जैसा भी है, जो भी है, अपना ही है। अगर गोलवलकर को ये समाज मारना चाहता है तो सहर्ष गोलवलकर इनके सामने उपस्थित है।"  
  
भगत सिंह के विरुद्ध जिन 300 ने गवाही दी थी, वो सब के सब वही लोग थे जिनकी गुलामी की जंजीर काटने के लिए भगत ने आत्मोत्सर्ग किया था। क्या आपने कभी देखा कि भगत ने अपने किसी लेख में इनमें से किसी का उल्लेख भी किया हो? किसी को कोसा हो? किसी को गाली दी हो?

नहीं किया..... क्योंकि उनको पता था कि इस मानसिक गुलामी  की वजह क्या है और उसी जंजीर को काटने के लिए उन्हें आत्मोत्सर्ग करना है।

मेरे आदर्श स्वामी विवेकानंद ने भी यही प्रबोधन करते हुए कहा था :-

"Mark me, every one of you will have to be a Govind Singh, if you want to do good to your country. You may see thousands of defects in your countrymen, but mark their Hindu blood. They are the first Gods you will have to worship even if they do everything to hurt you, even if everyone of them send out a curse to you, you send out to them words of love. If they drive you out, retire to die in silence like that mighty lion, Govind Singh. Such a man is worthy of the name of Hindu; such an ideal ought to be before us always. All our hatchets let us bury; send out this grand current of love all round."

हां! ये जरूर है कि मैं उपरोक्त उल्लेखित महापुरुषों के जूते के तश्मे खोलने लायक भी नहीं फिर भी अपनी क्षमता अनुरूप इनके प्रबोधन अनुकरण जरूर करता हूं, करता रहूंगा।

जिस समाज के लिए मेरी कलम चलती है, वो जैसा भी है, जो भी देता है सब सहते हुए भी अपने मार्ग से नहीं हटूंगा। अगर ये समाज संगठित ही होता तो क्यों रात-रात भर जग कर हम सब आंखें खराब करते अपनी।

मेरी कमाई आभासी दुनिया के मेरे वो मित्र हैं, जिनके मैसेज मुझे इनबॉक्स में मिलते हैं कि तुमने मुझमें हिंदू धर्म के लिए चेतना जगाई, मेरी कमाई वो दर्जनों बच्चियां हैं जिनको मैंने अपनी लेखनी से राष्ट्र और धर्म से प्रेम करना सिखाया। मेरी कमाई वो मित्र हैं जो मुझमें सकारात्मकता देखते हैं।

ट्रोल करोगे, मजे लोगे....तो ऐसे लोगों को ब्लॉक, अनफ्रेंड या अनफॉलो कर दूंगा, वो भी किसी द्वेष भावना से नहीं बल्कि इसलिए क्योंकि नकारात्मक लोगों और नकारात्मक माहौल में सकारात्मकता नहीं आ सकता।

पर मुझे तुम डिगा नहीं सकते, न अविचिलित कर सकते हो। अपने विचारों के प्रति मेरी ध्येय -निष्ठा किसी "एकोपाश्यवादी व्यक्ति" की तरह ही अविचल थी, है और रहेगी। भीड़ के साथ रहा तो भी रहेगी और अकेला हो गया तो भी रहेगी।

उपदेशों का असर किसी पर नहीं होता फिर भी संघ में गाया जाने वाला गीत - "एक ध्येय के पथिक विविध हम, एक दिशा में हों प्रयासरत" मैं अक्षरश: मानता हूं और सबसे मानने का भी आग्रह करता हूं; क्योंकि हम सबके कल्याण का मार्ग केवल यही है। शक्तियां एकत्रित होनी चाहिए, बिखरनी नहीं चाहिए।

माधव ने गीताजी में कहा है :-

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।  
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः॥ गीता ५/१९

‘जिनका मन इस साम्य भाव में अवस्थित है, उन्होंने इस जीवन में ही संसार पर विजय प्राप्त कर ली है। चूँकि ब्रह्म निर्दोष और सब के लिए सम है, इसलिए वे ब्रह्म में अवस्थित हैं।’

ईश्वर मुझे इसी पथ का पथिक बनाए, यही कामना है।

 जय श्री कृष्ण 


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