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 विल दुरान्त लिखता है:


" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के समुद्री डाकुओं (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :  

" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम समुद्री जहाज बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था।"


अनेक आधुनिक आर्थिक इतिहासकारों ने लिखा है कि 0 ई से 1500 ई तक भारत विश्व के 33% जीडीपी का निर्माता था। मुग़लों के जाते जाते और ब्रिटिश लुटेरों के आने तक वह विश्व की 24% जीडीपी का निर्माता बचा।  

उनके जाते जाते 1900 में भारत मात्र 1.8% जीडीपी का निर्माता बचा।


भारत के विदेशमंत्री ने अभी एक वर्ष पूर्व बोला कि ब्रिटिश भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर ले गए।


जब ब्रिटिश राज में इन उद्योगों को नष्ट किया गया, तो उनका क्या हुवा जो इन उद्योगों का निर्माण करते थे?  

यह पता करना क्या राकेट साइंस है?


तो प्रश्न यह है कि यदि शूद्र 3000 वर्ष से प्रताड़ित था, और पीड़ित था, तो इस विशाल इंडस्ट्री का निर्माता कौन था?  

ब्राम्हण, क्षत्रिय या वैश्य।  

1600 में एक इतिहासकार लिखता है कि भारत के हर वर्ण के घर की महिलाएं सूत कातती थीं। रोमेश दत्त लिखते हैं 1904 में कि सूत कातने से प्रत्येक महिला की सालाना कमाई 3 से पांच रुपये होती थी, जो पारिवारिक आय में जुड़ जाता था।  

क्या हुआ उन सबका?


200 साल की कथा नहीं जानते और 3000 साल की कल्पित कथा को सत्य मानते हैं - भारत के #बुद्द्धि_पिस्सू।


क्या विल दुरान्त से लेकर, रोमेश दत्त, गणेश सखाराम देउस्कर, पॉल बैरोच, अंगुस मैडिसन तथा भारत के विदेशमंत्री झूंठ बोल रहे हैं।  

यदि ऐसा है तो उनका खण्डन क्यों नहीं किया बुद्द्धि पिस्सुओं ने?

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