#हिंसा और #अहिंसा
पहली कड़ी
नोटः इस विषय पर छोटी छोटी कई पोस्ट लिखने का संकल्प है अतः जब तक इति न कर दूँ , प्रश्न न करें अन्यथा फिर हम अन्यथा पथ पर चले जाते हैं और मुख्य बात छूट जाती है ।
दूसरी बात सत्य और ईश्वर को लेकर कुछ दिन पहले आपकी राय माँगी थी , राय का उद्देश्य आपसे संवाद स्थापित करना था न की किसी के उत्तर को प्राथमिकता देना ।
चूँकि हिंसा और अहिंसा सनातन धर्म में पारिभाषिक शब्द हैं अतः शूक्ष्मतापूर्वक बात को समझना पड़ेगा ।
क्योंकि जहां तक मुझे याद आता है तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने जो आठ ( या सात )
वस्तुएँ दी थीं उसमें एक तलवार भी थी । तलवार का प्रयोग मक्खन को ब्रेड पर लगाने के लिए तो दिया नहीं होगा , अतः जैन सम्प्रदाय को मानने वाले भी इस रहस्य को समझें ।
सत्यम परम धीमहि .. श्रीमद्भागवत महापुराण का पहला ही श्लोक सत्यम परम धीमहि बोलता है ..
अब आते हैं मूल विषय पर । ईश्वर भी सनातन धर्म में एक पारिभाषिक शब्द है और यह तीन शब्दों का घनीभूत रूप है ..
सत्य चित् और आनन्द ..। अर्थात् समष्टि का सर्व सत्य , समष्टि का समग्र ज्ञान और समष्टि का सर्व आनन्द एक घनीभूत रूप हो जाए तो वह सच्चिदानंद ही ईश्वर है , अर्थात् सत्य , ईश्वर का एक अवयव है ।
अब आपका ध्यान थोड़ी देर के लिए योगदर्शन की ओर लाना चाहता हूँ..
योग दर्शन के आठ अंग हैं
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान
समाधि
अब इसके पहले अंग “यम” की ओर ले चलता हूँ
यम के निम्न अवयव है
(1) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अस्तेय, (4) ब्रह्मचर्य और (5) अपरिग्रह
अब यहाँ बस इतना ही समझें की हमारे ऋषियों ने सत्य को एक यम बताया है और वह अहिंसा इत्यादि के साथ है क्योंकि यदि सत्य को ईश्वर से बड़ा बता दें तब भी ज्ञान तो मिल सकता है पर बहुत संभावना है उस व्यक्ति के नास्तिक हो जाने की क्योंकि वह आनन्द से दूर हो जाता है अतः सत् चित् और आनन्द को ईश्वर का ही अवयव मानकर हम उस ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते हैं ।
वेदों में उसी ब्रह्म या परमात्मा या अद्वय आत्मा को “ नित्य सत्य मुक्त शुद्ध बुद्ध अद्वितीय बताया गया है । यहाँ भी सत्यता नित्यता अद्वितीयता इत्यादि आदि उसी ईश्वर के अवयव हैं ।
क्रमशः…