#thekashmirfiles एक मुसलमान साहित्यकार एम इकराम फ़रीदी की नजर से #कश्मीर_फाइल्स
ये डैमेज कन्ट्रोल करने वाले मुसलमान हैं. इनकी चिंता यह नहीं है कि इस्लाम क्या करता है. इनकी चिंता यह है कि इसके विरुद्ध प्रतिक्रिया को कैसे मिनिमाइज किया जाए?
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एक मुसलमान साहित्यकार एम इकराम फ़रीदी की नजर से #कश्मीर_फाइल्स
यह एक होनी की शुरुआत है | इसको टाला नहीं जा सकता | जितना टाला जाएगा उतने प्रतिशत ब्याज के साथ इसकी वापसी होगी |
निरंतर दमन की प्रक्रिया ज्वालामुखी का सबब बनती है | ऐसे बेशुमार पोस्टस और प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं जिसमें विवेक अग्निहोत्री पर प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं कि एक सुनियोजित, षणयंत्रकारी , असंतुलित और गैरजिम्मेदाराना मूवी बनायी है जो सिनेमा हाल का माहौल इतना गर्मा देती है कि भीड़ उत्तेजित होकर नारे लगाने लगती है , भीड़ जार जार रोने लगती है और एक समुदाय विशेष को अपना दुश्मन नंबर वन मानने लगती है |
लोगों का आरोप है कि फिल्म को जिम्मेदारी से और संतुलित सामग्री के साथ बनाना चाहिए था -----
मगर नहीं -------
कब तक कवरअप करोगे ?
कब तक ढापोगे ?
सच्चाई सामने आने में कितनी देर लगाओगे ? उतना ब्याज चुकाना पड़ेगा और खून का ब्याज खून होता है , लाशों का ब्याज ला... शुक्र मनाऔ विवेक अग्निहोत्री का कि जरा देर गुजरे ही इस सच्चाई को बाहर ले आया | अभी ब्याज ज्यादा नहीं बन पड़ता | अभी बहुत से गुनाहगार और पीड़ित हयात हैं | उन्हे फांसी लटकाकर , उन्हे पुनर्स्थापित करके जस्टिस किया जा सकता है वरना ये लहू दशकों के साथ अपनी शक्ल बदलेगा और कई लाल मंजर बरसरे आम नजर आएंगे ; यह उस होनी की शुरुआत है | ये आवाज कानों में उठने लगी है |
यहा़ं मेरे जैसे मुसलमानो की भूमिका अपेक्षित है | मुसलमान हमेशा की तरह फिर से बेवकूफी की दलदल में खड़े होकर धंसता जा रहा है | मुसलमानो को चाहिए कि वे कश्मीरी पंडितों के दर्द से खुद को मन्सूब करें , उनके दर्द से रोयें क्योंकि ये दर्द वास्तविक है | इसका अनादर कदाचित फिल्म का विरोध कतई न करें | ये जुमलेबाजी बिलकुल न करें कि गुजरात कांड , हाशिमपुरा कांड इत्यादि पर फिल्में क्यों नहीं बनतीं ? तुम्हारी यह मूर्खता दर्शाती है कि तुम घटनाओं के प्रति कितने बेरहम और सेलेक्टिव हो ------
प्रश्न पैदा होता है कि तुम्हे गुजरात कांड पर फिल्म बनाने से किसने रोका है ? क्या तुम गुजरात कांड की सच्चाई बर्दाश्त कर सकोगे ? क्या गोधरा से अलग करके गुजरात की सच्चाई पेश की जा सकती है ?
उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि गुजरात कांड के बाद कितना हिंदू मुसलमान के साथ खड़ा हुआ था | मुझे बताओ कि कश्मीरी पंडितों के साथ मुसलमान कभी खड़ा हुआ ? तुम्हे आज भी शर्म नहीं आती ?
क्या तुमको पता है इस्लामिक दुनिया में इतनी खून की नदियां क्यों बहायी जाती हैं ?
सुनोगे ---?
आज से 1400 साल पहले बनू कुरैजा का मामला हुआ था | ठीक इसी कश्मीर तर्ज पर | दोनों की एक ही सिचुवेशन थी , बस स्थान का नाम चेंज रहा | इधर कश्मीर उधर मदीना |
उस बनू कुरैजा कांड को आज तक मुसलमान कवरअप करते आये हैं और वो छः सौ लोगों का खून हर सदी और दशक में अपना ब्याज मांगता है | इसी के सबब कूफा घटनाक्रम होता है , वाकियाते करबला होता है | पाकिस्तान में बम फूटते हैं , अफगानिस्तान में त्राहिमाम होता है , सीरिया तबाह होता है क्योंकि पिछले1400 साल से बनू कुरैजा की सच्चाई सामने नहीं आ पायी |
किसी भी घटना की सच्चाई सामने आना एक स्प्रिंग वाल्व है जो गुस्से को बाहर निकाल देता है | ये रोते हुए लोग , ये नारे लगाते लोग , उसी स्प्रिंग वाल्व से गुजर रहे हैं | इनका सम्मान करो | इनके गम के शरीक बनो | यकीन मानो कश्मीर घटना बनू करैजा घटना नहीं बनेगी और अगर अनादर करोगे , प्रोपेगेंडा का आरोप लगाओगे , ये गुस्सा बाहर नही निकलने दोगे तो तैयार हो जाओ ब्याज चुकाने के लिए.
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