सूर्य की परिक्रमा, पुर्ण विस्तर, राशियों में प्रवेश, खगोल, भूगोल, दिन, रात, इत्यादी।

 

कैसे सूर्य भगवान करते हैं, दिन, घड़ी, समय का निर्माण। 

सृष्टि के संचालक श्री सूर्य नारायण।

श्रीमद भागवद पुराण इक्कीसवां अध्याय[स्कंध ५]


राशि संचार द्वारा लोक यात्रा निरूपण

दोहा-सूर्य चन्द्र की चाल से, होवे दिन और रात।

सो इककीस अध्याय विच, लिखी लोक की बात।।

कैसे सूर्य भगवान करते हैं, दिन, घड़ी, समय का निर्माण।  सृष्टि के संचालक श्री सूर्य नारायण।श्रीमद भागवद पुराण इक्कीसवां अध्याय[स्कंध ५]  राशि संचार द्वारा लोक यात्रा निरूपण  दोहा-सूर्य चन्द्र की चाल से, होवे दिन और रात। सो इककीस अध्याय विच, लिखी लोक की बात।।  श्री शुकदेवजी वोले-हे राजा परीक्षत ! जितना प्रमाण खगोल से पृथ्वी मण्डल का कहा है, उतना ही नभ मण्डल का है। भूगोल और खगोल के बीच का भाग आकाश है। जो कि दोनों से मिला हुआ है। इसी के अन्तरिक्ष के बीच में सूर्य नारायण उत्तरायण, दक्षिणायन, विषुवत नाम वाली मन्द, शीघ्र, समान गति से ऊँचे-नीचे चढ़कर त्रिलोकी को तपाते हुये समान स्थान पर चलने के लिये नियत समय पर मकर आदि राशियों में आकर रात दिन को बड़ा छोटा और समान बना देते हैं। जब सूर्य नारायण मेष और तुला राशियों में आते हैं तब दिन और रात समान हुआ करते हैं। जब वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में सूर्य आते हैं तब दिन बड़े होते हैं और प्रतिमाह रात्रि एक-एक घड़ी कम होती जाती है। जब वृश्चिक धनु, मकर, कुम्भ, और मीन राशि में सूर्य भगवान आते हैं तब दिन छोटे और रात बड़ी हुआ करती है। जब तक सूर्य दक्षिणायन होते हैं तब तक दिन बढ़ते हैं, और जब सूर्य उत्तरायण होते हैं तब तक रात बड़ी होती है। इस प्रकार मानसोत्तर पर्वत और सुमेरु पर्वत के मध्य सूर्य के भ्रमण करने का मार्ग नौ करोड़ इक्यानवे लाख ९९१००००० योजन प्रमाण है। इन मानसोस्तर पर्वत सुमेरु से पूर्व की श्री इन्द्र की देवधानी नामक पुरी स्थित है। और दक्षिण में धर्मराज की संयमनी नाम की पुरी है। पश्- चिम की ओर वरुण की निम्लोचनी नाम की पुरी है। उत्तर में चन्द्रमा देवता की विभारी नाम की पुरी है। जब सूर्य इन पुरिया   में समयातुसार पहुँचता है, तब यथा क्रम से उदय, मध्यान्ह, अस्त और अर्धरात्रि यह चार समय हुआ करते हैं। सूर्य जहाँ उदय होता है उस से समान सूत्र पर अस्त होता है । जहाँ मध्यान्ह होता है उससे समान सूत्र पर आधी रात होती है । जब सूर्य नारायण रुद्रपुर से चलते हैं, उससे पन्द्रह घड़ी पीछे वे यमपुरी में पहुंचते हैं। इन्द्रपुरी से यमपुरी की दूरी सूर्य मार्ग से दो करोड़ सैंतीस लाख पिचत्तर हजार २३७७५००० योजन की है । इसी प्रकार यमपुरी से वरुणपुरी फिर सोम की पुरी आदि में होते हुए इन्द्रपुरी में आते हैं। इन सब स्थानों पर १५-१५ घड़ी के अन्तर से पहुँचते हैं। तथा अन्य चन्द्रमा आदि गृह भी नक्षत्रों के साथ ही उदय अस्त होते हैं। संवत्सर इस सूर्य के रथ का एक पहिया है। पहिये में लगे जो बारह अराह हैं वे वर्ष के बारह मास हैं। तथा जो पहिये की छैः पुठ्ठियाँ हैं, वे वर्ष की छः ऋतुयें हैं। सर्दी गर्मी वर्षा यह तीन उसकी नाभी हैं । सुमेरु पर्वत का मस्तक उसकी धुरी का एक भाग है, तथा दूसरा भाग मान मानुसोत्तर पर्वत पर स्थित है। जिसमें पिरोया हुआ पहिया कोल्हा के चक्र के समान मानसोत्तर पर्वत पर घूमा करता है। सूर्य के रथ के दो धुरे हैं, जिसमें प्रथम धुरा तो सुमेरु और मानसोत्तर पर्वत तक फैला हुआ है, जिसका प्रमाण एक करोड़ सत्तावन लाख पचास हजार १५७५००० योजन का है । दूसरे धुरे का प्रमाण ३९३७५०० उन्तालीस लाख सैंतीस हजार पाँचसौ योजन का है। इसके ऊपर का भाग वायुपाश से ध्रुवलोक में बधा हुआ है। उसके बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा ओर नौ लाख योजन चौड़ाई के समान है। यह उस रथ के जूड़ा के समान प्रमाण है । इसमें गायत्री आदि छन्दों के नाम वाले सात घोड़े अरुड़ नाम सारथी के जोते हुये सूर्य भगवान के रथ को खींचकर ले चलते हैं। सूर्य के आगे उसका सारथी अरुड़ सूर्य की ओर मुंह करके बैठता है। अंगूठे के पोरे के समान  देह वाले साठ हजार बाल खिलयादि नाम वाले ऋषि सूर्य नारायण के सन्मुख स्थित हो स्तुति करते हैं। इस प्रकार सूर्य भगवान साढ़े नौ करोड़ एक लाख योजन का परिभ्रमण करते हुये प्रत्येक क्षण में दो सहस्त्र और दो कोस मार्ग चलते है।


श्री शुकदेवजी वोले-हे राजा परीक्षत ! जितना प्रमाण खगोल से पृथ्वी मण्डल का कहा है, उतना ही नभ मण्डल का है। भूगोल और खगोल के बीच का भाग आकाश है। जो कि दोनों से मिला हुआ है। इसी के अन्तरिक्ष के बीच में सूर्य नारायण उत्तरायण, दक्षिणायन, विषुवत नाम वाली मन्द, शीघ्र, समान गति से ऊँचे-नीचे चढ़कर त्रिलोकी को तपाते हुये समान स्थान पर चलने के लिये नियत समय पर मकर आदि राशियों में आकर रात दिन को बड़ा छोटा और समान बना देते हैं। जब सूर्य नारायण मेष और तुला राशियों में आते हैं तब दिन और रात समान हुआ करते हैं। जब वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में सूर्य आते हैं तब दिन बड़े होते हैं और प्रतिमाह रात्रि एक-एक घड़ी कम होती जाती है। जब वृश्चिक धनु, मकर, कुम्भ, और मीन राशि में सूर्य भगवान आते हैं तब दिन छोटे और रात बड़ी हुआ करती है। जब तक सूर्य दक्षिणायन होते हैं तब तक दिन बढ़ते हैं, और जब सूर्य उत्तरायण होते हैं तब तक रात बड़ी होती है। इस प्रकार मानसोत्तर पर्वत और सुमेरु पर्वत के मध्य सूर्य के भ्रमण करने का मार्ग नौ करोड़ इक्यानवे लाख ९९१००००० योजन प्रमाण है। इन मानसोस्तर पर्वत सुमेरु से पूर्व की श्री इन्द्र की देवधानी नामक पुरी स्थित है। और दक्षिण में धर्मराज की संयमनी नाम की पुरी है। पश्- चिम की ओर वरुण की निम्लोचनी नाम की पुरी है। उत्तर में चन्द्रमा देवता की विभारी नाम की पुरी है। 
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जब सूर्य इन पुरिया में समयातुसार पहुँचता है, तब यथा क्रम से उदय, मध्यान्ह, अस्त और अर्धरात्रि यह चार समय हुआ करते हैं। सूर्य जहाँ उदय होता है उस से समान सूत्र पर अस्त होता है । जहाँ मध्यान्ह होता है उससे समान सूत्र पर आधी रात होती है । जब सूर्य नारायण रुद्रपुर से चलते हैं, उससे पन्द्रह घड़ी पीछे वे यमपुरी में पहुंचते हैं। इन्द्रपुरी से यमपुरी की दूरी सूर्य मार्ग से दो करोड़ सैंतीस लाख पिचत्तर हजार २३७७५००० योजन की है । इसी प्रकार यमपुरी से वरुणपुरी फिर सोम की पुरी आदि में होते हुए इन्द्रपुरी में आते हैं। इन सब स्थानों पर १५-१५ घड़ी के अन्तर से पहुँचते हैं। तथा अन्य चन्द्रमा आदि गृह भी नक्षत्रों के साथ ही उदय अस्त होते हैं। संवत्सर इस सूर्य के रथ का एक पहिया है। पहिये में लगे जो बारह अराह हैं वे वर्ष के बारह मास हैं। तथा जो पहिये की छैः पुठ्ठियाँ हैं, वे वर्ष की छः ऋतुयें हैं। सर्दी गर्मी वर्षा यह तीन उसकी नाभी हैं । सुमेरु पर्वत का मस्तक उसकी धुरी का एक भाग है, तथा दूसरा भाग मान मानुसोत्तर पर्वत पर स्थित है। जिसमें पिरोया हुआ पहिया कोल्हा के चक्र के समान मानसोत्तर पर्वत पर घूमा करता है। सूर्य के रथ के दो धुरे हैं, जिसमें प्रथम धुरा तो सुमेरु और मानसोत्तर पर्वत तक फैला हुआ है, जिसका प्रमाण एक करोड़ सत्तावन लाख पचास हजार १५७५००० योजन का है । दूसरे धुरे का प्रमाण ३९३७५०० उन्तालीस लाख सैंतीस हजार पाँचसौ योजन का है। इसके ऊपर का भाग वायुपाश से ध्रुवलोक में बधा हुआ है। उसके बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा ओर नौ लाख योजन चौड़ाई के समान है। यह उस रथ के जूड़ा के समान प्रमाण है । इसमें गायत्री आदि छन्दों के नाम वाले सात घोड़े अरुड़ नाम सारथी के जोते हुये सूर्य भगवान के रथ को खींचकर ले चलते हैं। सूर्य के आगे उसका सारथी अरुड़ सूर्य की ओर मुंह करके बैठता है। 

अंगूठे के पोरे के समान देह वाले साठ हजार बाल खिलयादि नाम वाले ऋषि सूर्य नारायण के सन्मुख स्थित हो स्तुति करते हैं। इस प्रकार सूर्य भगवान साढ़े नौ करोड़ एक लाख योजन का परिभ्रमण करते हुये प्रत्येक क्षण में दो सहस्त्र और दो कोस मार्ग चलते है।



श्रीमद भागवद पुराण [introduction]༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]༺═──────────────═༻

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