किस जगह, किस रूप में विराजमान हैं, श्री हरि व उनके पूजन के मंत्र।

श्रीमद भागवद पुराण* अट्ठारहवां अध्याय * [स्कंध ५]


(वर्ष वर्णन)


दोहा: शेष वर्ष वर्णन कियो, सेवक जो कहलाय।

अष्टम दस अध्याय में, कीरति कही बनाय।।

भद्राश्व खण्ड

श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! उस भद्राश्व खंड में भद्रश्राव नाम, धर्म का पुत्र उसी खण्ड का स्वामी है। वहाँ पर उसके सेवक जन भगवान हय ग्रीव की मूर्ति की आराधना मन लगा कर इस मंत्र-ओं नमों भगबते धर्मात्याम विशोधनय नमः। का जप करते हैं। प्रलय काल में तमोगुण रूप दैत्य जब वेद को चुरा कर ले गया था, तब हयग्रीव रूप अवतार धारण कर भगवान उन वेदों को पाताल से लाये और फिर उन्होंने ब्रह्मा जो को दिये सो हम उन भगवान को बारम्बार नमस्कार करते हैं। वहाँ प्रहलाद जी उस खण्ड के पुरुषों के साथ अनन्य भक्ति से निरन्तर भगवान विष्णु के नृसिंह रूप की उपासना करते हैं। नृसिंह उपासना का मंत्र यह है-ओं नमो भगवते नरसिंहाय नमस्ते जस्तेजसे आविराविभर्व बज्रनख, बज्रदंष्ट्र, कर्माश्यान रंधय-रंधय तमो ग्रस-ग्रस ओं स्वाहा अभयम भयात्मनि भूयिष्ठा औंक्ष् रौं इसी मंत्र का जाप करते हैं । औंक्ष् रौं यह इनका बीज मंत्र है । यह इतना बड़ा नृसिंह जी का मंत्र है इसे प्रहलाद जी भाला पर जपा करते हैं। 

केतु माल खण्ड

इसी प्रकार केतु माल खण्ड में श्री विष्णु भगवान कामदेव रूप में बिराज मान है। वहाँ संवत्सर की पुत्री व पुत्र जो कि संख्या में छत्तीस हजार हैं, वे स्त्री पुरुष रूप से निवास करते हैं। वे कामदेव भगवान लक्ष्मी को रमण करते अपनी इन्द्रियों को तृप्त करते हैं। वे सब लक्ष्मी सहित इन की उपासना इस मंत्र का जप करती हैं। सब गुण विशेषों से लक्षण आत्मा वाले और कर्म इन्द्रिय, ज्ञान इन्द्रिय संकल्प आदि निश्चय और उनके विषय इन सबके के अधिष्ठाता स्वामी और ११ इन्द्रिय, पाँच तत्व, सोलह अंश वाले वेद स्वरूपी अन्नमय, अमृत मय, सर्वमय इन्द्रिय पराक्रम के हेतु, और शरीर के पराक्रम के हेतु बल और कान्ति स्वरूप ऐसे कामदेव रूपी हृषी केश भगवान जो आप हैं। उनको भीतर व बाहर सर्वत्र मेरा प्रणाम है। यह मंत्र लक्ष्मी जी के माला जपने का हैं अर्थात् केतुमाल खण्ड में कामदेव महाराज्य वहाँ के पूज्य देवता हैं, और लक्ष्मी जी पुजारिन हैं। 


रम्यक खण्ड 

में भगवान विष्णु मत्स्य अवतार में विराज मान हैं। वहाँ मनु अब तक अति भाव भक्ति से इस स्वरूप का आराधन करते हैं और इस मंत्र का जाप करते हैं-सबों में मुख्य, सत्व गुण की प्रधानता वाले, शरीर शक्ति और इन्द्रिय शक्ति रूप, बलरूप, महामत्स्य स्वरूप भगवान को नमस्कार है। रम्यकखण्ड में मत्स्य भगवान देवता और मनु सत्य व्रत पुजारी है। यह सत्यव्रत राजा के जपने का माला मंत्र है।

 हिरण्य खण्ड 

में कूर्म (कछुआ, कच्छप) शरीर धारी विष्णु भगवान विराजमान हैं वहां पितरों का अधिपति अर्यमा देवता उस खण्ड के पुरुषों के साथ उस मूर्ति का सेवन करता है उसकी माला के जपने का मंत्र यह है कि-जिसका स्थान जाना नहीं जाता और संपूर्ण सत्व गुण वाले हैं, ऐसे कच्छप स्वरूपी जिनका कोई काल से परिच्छेद नहीं कर सकता, ऐसे सर्वगत बुद्ध स्वरूप, सबके आधार भूत, आपको हमारा बारम्बार नमस्कार है। उत्तर कुरु खंड में यज्ञ पुरुष भगवान बाराह स्वरूप धारण करके विराजमान हैं । अर्थात् इस खण्ड में बाराह रूप देवता और पृथ्वी देवी उन्हें भक्ति योग से भजती है ।

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