विराट अवतार की सृष्टि का वर्णन।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ६ [स्कंध ३]
दो० महातत्व सव लाय के, जिमि विराट की सृष्टि ।
सो छटवें अध्याय में कही कथा करि हष्ठि ।।
श्री शुकदेव जी ने राजा परोक्षत को समझाते हुये कहाहे परीक्षत! तब मैत्रेय जी ने विदुर जी से इस प्रकार कहना आरम्भ
किया कि इस प्रकार पृथक रूप से भूल रही अपनी शक्तियों को
समूह में अन्तर्यामी रूप से एक साथ प्रवेश किया। तब ईश्वर ने जान कर ईश्वर ने काल संज्ञा देवी को धारण कर तेईस तत्वों के
उस चेष्टा रूप तत्वात्मक गुण में प्रवेश कर गुप्त कर्म की बोधक
कर भिन्न-भिन्न तत्वों का जो गुण था उसको भगवान ने मिला
दिया। अर्थात जो तत्व पृथक पृथक थे उन सबको उस प्रादि
शक्ति में अपनी शक्ति से एकत्र कर दिया। तो वह मांस पिन्ड के
रूप में बदल गया। उसी माँस पिन्ड का नाम आदि पुरुष हुआ
और इसी आदि पुरुष को विराट रूप भी कहा गया है। यह विराट शरीर सम्पूर्ण आत्मा का अंश है और परमात्मा का अंश यह
ईश्वर का वह आदि अवतार है कि जिसमें प्राणियों का समूह
भान होता है। यह विराट देह पुरुष अर्थात वह आदि पुरुष जो
अध्यात्म, अधिदेव, अधिभूत, भेदो से तीन प्रकारका और प्राण भेद
से दस प्रकार का तथा हृदय स्थिति जीव भेद से एक प्रकार का
है। तब अधोक्षत्र ईश्नर ने अपने तेज से महत्वादिकों को ताप
युक्त किया। प्रथम उस विराट पुरुष का मुख उत्पन्न हुप्रा उसमें
लोक पालक अग्नि ने प्रवेश किया। फिर तालु उत्पन्न हुमा
जिस में जिभ्या इन्द्रिय समित वरुण ने प्रवेश किया। तदनन्तर
सुन्दर नासिका उत्पन्न हुई उसमें प्राणा इंद्रिय सहित अश्वनी
कुमार ने प्रवेश किया। फिर नेत्र उत्पन्न हुये उनमें चक्षु इन्द्रिय
सहित लोकपाल सूर्य प्रविष्ट हुये। फिर उसके शरीर में चर्म उत्पन्न हुआ उसमें प्राण इन्द्रिय सहित पवन ने प्रवेश किया। फिर
त्वचा उत्पन्न हुई, उसमें रोम इन्द्रियों के साथ औषधि देवता ने
प्रवेश किया अनन्तर फिर लिंग उत्पन्न हुआ, तहाँ वीर्य इन्दिय
सहित प्रजापति ने प्रवेश किया। फिर गुदा प्रगट हुई उसमें वायु
इन्द्रिय सहित लोकपाल मित्र ने प्रवेस किया। फिर हाथ पैदा
हुये उनमें इन्द्र' ने क्रिय विकिय आदि इन्द्रियों के साथ प्रवेश
किया। अनन्तर उसके चरण उत्पन्न हुये उनमें गति इन्द्रिय
सहित सब लोकों के ईश्वर विष्णु ने प्रवेश किया। फिर बुद्धि
पैदा हुई उसमें बोध सहित वीणां धारिणी सरस्वती ने प्रवेश
किया। फिर हृदय उत्पन्न हुआ जिसमें मन इन्द्रिय सहित चद्रमा
प्रविष्ट हुआ। फिर अहंकार उत्पन्न हुआ उसमें अहवृत्ति इंद्रियों
सहित शिव रूप अभिमान ने प्रवेश किया फिर उसका सत्व
उत्पन्न हुआ जिसमें चित्त इन्द्रिय सहित वृह्मा ने प्रवेश किया।
फिर शिर से स्वर्ग, चरणों से पृथ्वी और नाभि से आकाश उत्पन्न हुआ। सत्व गुण अधिक होने से देवताओं ने स्वर्ग में निवास
किया। रजोगुण के प्रभाव से जो बृह्मादिक व्यवहार करने लगे
वे मनुष्य और गौ आदि पशु पृथ्वी पर रहने लगे। तीसरे तमो
गुण स्वभाव वाले रुद्रके पार्षद भूत प्रेतादि गण हैं वह नाभिरूप
अन्तरिक्ष में निवास करने लगे। तथा उस विराट रूप भगवान
के मुख से वेद वृह्म उत्पन्न हुआ और भुजाओं से क्षत्रिय उत्पन्न
हुये जंघा से वैश्य तथा चरणों से सेवा कार्य के हितार्थ शूद्र हुये।
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