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Showing posts from October, 2020

श्रीमद भागवद पुराण १९ अध्याय [स्कंध ४] क्यू राजा पृथू ने सौवाँ यज्ञ संपन्न नही किया?

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श्रीमद भगवद पुराण *१८ अध्याय * [स्कंध ४] कामधेनु रूपी पृथ्वी का दोहना

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Shree ram ki kavita, kahani (chaand ko hai ram se shikayat)

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Sukh ka arth

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Hindu, dharmkathayein

🚩💜तुलसीदास और श्री राम मिलन!!!!!!!💜🚩 🚩💜काशी में एक जगह पर तुलसीदास रोज रामचरित मानस को गाते थे वो जगह थी अस्सीघाट। उनकी कथा को बहुत सारे भक्त सुनने आते थे। लेकिन एक बार गोस्वामी प्रातःकाल शौच करके आ रहे थे तो कोई एक प्रेत से इनका मिलन हुआ। उस प्रेत ने प्रसन्न होकर गोस्वामीजी को कहा कि मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ। आपने जो शौच के बचे हुए जल से जो सींचन किया है मैं तृप्त हुआ हूँ। मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ। 🚩गोस्वामीजी बोले – भैया, हमारे मन तो केवल एक ही चाह है कि ठाकुर जी का दर्शन हमें हो जाए। राम की कथा तो हमने लिख दी है, गा दी है।पर दर्शन अभी तक साक्षात् नहीं हुआ है। ह्रदय में तो होता है पर साक्षात् नहीं होता। यदि दर्शन हो जाए तो बस बड़ी कृपा होगी। 🚩उस प्रेत ने कहा कि महाराज! मैं यदि दर्शन करवा सकता तो मैं अब तक मुक्त न हो जाता? मैं खुद प्रेत योनि में पड़ा हुआ हूँ, अगर इतनी ताकत मुझमें होती कि मैं आपको दर्शन करवा देता तो मैं तो मुक्त हो गया होता अब तक। 🚩तुलसीदास जी बोले – फिर भैया हमको कुछ नहीं चाहिए। तो उस प्रेत ने कहा – सुनिए महाराज! मैं आपको दर्शन तो नहीं करवा सकता लेकिन दर्...

श्रीमद भागवद पुराण १७ अध्याय [स्कंध४] (पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग)

सुविचार।। "दर्पण" जब चेहरे का "दाग" दिखाता है, तब हम "दर्पण" नहीं तोडते, बल्की "दाग" साफ करते हैं | उसी प्रकार,  हमारी "कमी" बताने वाले पर "क्रोध" करने के बजाय अपनी "कमी" को दूर करना ही "श्रेष्ठता"है। धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध४] (पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग) दोहा-जिमि पृथ्वी दोहन कियो, नृप पृथु ने उद्योग। सत्रहवें अध्याय में वर्णन किया योग। मैत्रेय जी बोले-हे विदुर ! जब बन्दीजन तथा सूतगण, देवता आदि सभी अपने-अपने स्थान को चले गये तो उसके उपरान्त बहुत काल तक विचार करने वाले राजा पृथु ने धर्माअनुसार पृथ्वी पर राज्य किया। पृथु ने अपने राज्य के सभी वर्ण के लोगों को प्रसन्न किया। पृथु ने सभी का उचित सत्कार किया। एक बार पृथु के राज्य में ऐसा हुआ कि संपूर्ण भूमंडल अन...

श्रीमद भागवद पुराण १६अध्याय [स्कंध४] (पृथु का सूत गण द्वारा सतवन)

सुविचार  जो विद्या केवल पुस्तक में और जो सम्पत्ति दूसरों की मुठी में, वह दोनो ही निरर्थक है।। विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण * सोलहवां अध्याय *[स्कंध४] (पृथु का सूत गण द्वारा सतवन) दोहा- कीयौ सूत गण ने सभी, पृथु की सुयश बखान। सोलहवें अध्याय में, सो सब कियो निदान।। मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी! यद्यपि राजा पृथु ने अपनी बढ़ाई करने से रोकने के लिये सूत मागध बन्दीजनों को मना किया। परन्तु फिर भी वे अनेक प्रकार से स्तुति करते हुये यश का बखान करने लगे। सूतगणों ने कहा-हे पृथु! आपने अपनी माया से अवतार धारण किया है। अन्यथा आप साक्षात नारायण ही हैं। सो हम में आप के अनन्त चरित्र वर्णन करने की सामर्थ्य है। क्योंकि आपका यश चरित्र बखान करने में तो ब्रह्मा आदि की बुद्धि भी भ्रम में पड़ जाती है। हे महाराज पृथु ! आप धर्म करने वाले पुरुषों में सर्व श्रेष्ठ होंगे। आप लोकों की रक्ष...

श्रीमद भागवद पुराण १५ अध्याय [स्कंध ४] (पृथु का जन्म एवं राज्याभिषेक )

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श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४] (वेणु का राज्याभिषेक )

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श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १३ स्कंध[४]। राजा पृथू का जनम।।

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श्री विष्णु के षार्षद(नंद-सुनंद) द्वारा विष्णु धाम को जाना।।१२ अध्याय[स्कंध ४]

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श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ४]।ध्रुव का राज्य त्याग और तप को जाना।

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श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ४] (ध्रुव का राज्य त्याग और तप को जाना) दोहा-ग्यारहवें अध्याय में ध्रुव ने जतन बनाय। राज्य दिया निज पुत्र को, वन में पहुँचे जाय ।। श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार मैत्रेय जी ने विदुर जी को ध्रुवजी द्वारा लाख तीस हजार यक्षों को विनाश करने की कथा सुनाई । तत्पश्चात वह प्रसंग भी कहा कि जिस प्रकार स्वायंभुव मनु ने युद्ध स्थल पर आकर धुरव को हरि भक्ति का उपदेश करके युद्ध को बन्द कराया था, और कुवेर जी से संधि करा कर जाने दिया था। तब कुवेर अपने स्थान को चले गये थे और ध्रुव जी अपने नगर को चले आये थे सो हे विदुर जी ! अब हम धुरव जी का वह चित्र वर्णन करते हैं कि जिसमें वह अपना राज्य अपने पुत्र को देकर उत्तराखंड में तप करने को चले गये और अटल ध्रुव पद को प्राप्त हुये। ध्रुव जी का वंंश।। हे विदुर जी ! इस युद्धआदि से प्रथम ही ध्रुव जी का विवाह प्रजापति शिशुमार की भृमनी नाम की कन्या के साथ हो गया था । जिससे धुरव जी ने अपनी भृमनी नाम वाली भार्या से दो पुत्र उत्पन्न किये। जिन में १ का नाम कल्प और दूसरे का नाम वत्सर हुआ। धुरव जी की एक दूसरी स्त्री और...

क्यूं युध्द करने की जगह भगवान ने लिया वामन अवतार?

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श्रीमद भागवद पुराण पन्द्रहवां अध्याय[स्कंध ८] ( बलि द्वारा-स्वर्ग विजय ) दोहा -अब बलि की वर्णन कथा भाखी नो न्याय। यज्ञ विश्वजित एक में बलिको वभव लाय ॥१५॥  परीक्षित पूछने लगे-महाराज ! भगवान ने बलि से संसार के स्वामी होकर भी कृपण की तरह तीन पेड़ पृथ्वी क्यों मांगी और मिल जाने पर भी क्यों बांध लिया? शुकदेव जी बोले-देवासुर संग्राम में जब इन्द्र ने राजा बलि की स्त्री और प्राण दोनों हर लिये तो शुक्राचार्य ने प्रसन्न होकर बलि से विधि पूर्वक विश्वजित यज्ञ कराय और उसका अभिषेक कराया तदनन्तर अग्नि से सुवर्ण से मढ़ा एक रथ निकला जिसमें इन्द्र के घोड़ों के समान घोड़े जुते हुए थे, और सिंह के चिन्ह से अङ्कित ध्वजा थी तथा दिव्य धनुष, तरकस और कवच निकले, प्रहलाद ने एक माला दी जिस के फूल कमी कुम्हलाते न थे और शुक्राचार्य ने एक शंख दिया। इस तरह ब्राह्मणों ने युद्ध की सामग्री तैयार कर दी और फिर स्वस्तिवाचन किया। तब बलि उन ब्राह्मणों को नमस्कार कर प्रहलाद की आज्ञा लेकर भृगु के दिये हुए दिव्य रथ पर चढ़ा, माला पहनी, कवच धारणकर लिया, खग, धनुष और तरकस बांध लिया। तदनन्तर राक्षसों की सेना को साथ ले बलि ने इन्द...

ध्रुव को हरि दर्शन होना तथा अपने राज्य को प्राप्त होना।।अध्याय १० [स्कंध ४]

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श्रीमद भागवद पुराण दसवां अध्याय [स्कंध ४] (ध्रुव को हरि दर्शन होना तथा अपने राज्य को प्राप्त होना) दो -हरि दर्शन से ध्रुव लियो, जैसे शुभ वरदान। सौ दसवें अध्याय में, कीनी कथा व्खान।। शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार ध्रुव कथा को सुनाते हुये मैत्रेय जी ने विदुर जी से कहा-हे विदुर ! भगवान श्री नारायण देवताओं को समझा कर स्वयं तो अंतर्ध्यान हो गये, और संपूर्ण देवता लोग हरि चर्चा करते हुये स्वर्ग लोक को चले गये। तब भगवान राम अपने लोक में विराजमान हो ध्रुव को देखने का विचार करने लगे। उन्होंने देवताओं के कष्ट को दूर करने के लिये अपने चतुर्भुज रूप से गरुड़ पर सवारी करके मधुवन में आये ध्रुव को दर्शन दिया। जब ध्रुव ने अपने हृदय में गरुड़ पर सवार हुये भगवान चतुर्भुज रूप नारायण का दर्शन किया तो वह अति प्रसन्न हुआ परन्तु अपनी समाधि को लगाये रखा। वह नेत्र बंद किये पर्वत समाधि लगाये भगवान गरुड़ध्वज के दर्शन करने लगा जब भगवान यह माना कि यह ध्रुव बालक इस प्रकार मेरे दर्शन करने पर भी अपनी समाधि न खोलेगा तो वे तुरन्त ध्रुव के हृदय से अंतर्ध्यान हो गये। जब ध्रुव ने अपने हृदय में श्री नारायण को न ...