पुरंजन का स्त्रीत्व को प्राप्त होना तथा ज्ञानोदय में सुक्ति लाभ
श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।
How do I balance between life and bhakti?
मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?
यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।।
सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।
सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !
Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)
सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः।
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।
जय श्री राम🙏
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २८ [स्कंध ४]
( पुरंजन का स्त्रीत्व को प्राप्त होना तथा ज्ञानोदय में सुक्ति लाभ)
दोहा-भये पुरंजन नारि तब, नारि मोह वश आय ।
सो वर्णित कीनी कथा, अट्ठाईस अध्याय ।।
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।
सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।
नारद जी बोले-हे राजन् ! जिस समय वह वेदर्भी नाम वाली स्त्री जो कि पूर्व जन्म पुरंजन था वह चिता पर बैठी थी उस समय उसका पूर्व मित्र अविज्ञात उसके निकट आया । उसने कहा रोने वाली ! तू कौन स्त्री है और यह इस चिता पर सोने वाला कौन पुरुष है तथा तथा इस से तेरा क्या संबंध है? क्या तू मुझे जानती है कि मैं तेरा मित्र अविज्ञात हूँ, तूने श्रृष्टि के समय मुझ में स्थिर होकर नाना प्रकार के सुख भोगे थे। तू पंच महाभूत के जाल में फंस कर मुझे छोड़ कर पृथ्वी के सुख भोगों की इच्छा करके चला गया था। जब तू पृथ्वी पर सुख की कामना से विचरने गया था, तब तूने एक स्त्री तथा उसकी रची हुई नगरी जिस में पाँचवन¹ और नौद्वार² और उसका एक रक्षक³ तथा तीन कोट⁴, छ व्यापारी⁵ और पाँच हार्ट⁶ थी। ऐसी नगरी में जाकर उस नगरी की स्वामिन स्त्री का दास बन गया था उस स्त्री के उस वैभव के कारण ही मोह जाल में फंस कर उसके साथ रमण करता रहा जिसे कारण से हे मित्र ! तू अपने वास्तविक स्वरूप की स्मृति को भूल गया था। सो हे मित्र ! तेरी यह सब दशा उस स्त्री की संगति में फंसने के कारण से ही हुई है। पहले जन्म में तू अपने आपको पुरुष मानता था और इस जन्म में अपने आपको स्त्री समझता है सो वह सब तेरी इसी मोह माया में फैसने के कारण से हैं सो हे मित्र ! तू ऐसा मत समझ यह सब मेरे द्वारा रची हुई माया के कारण ही है हे मित्र हम तुम दोंनों मानसरोवर वासी हंस है मेरी माया के वश में होकर तू अपनी उड़ान को भूल गया है। ऐसा मत समझ जो मैं हूँ वही तू है तू मेरा ही प्रतिविब है । यह सब तू अविद्या के कारण से ही समझता है।
नारद जी समझाते हुये राजा प्राचीन वर्हि से कहते हैं कि हे राजन ! वह मित्र जो अविज्ञात के नाम वाला है वह ईश्वर है पुरंजन जीव है अर्थात् परमात्मा जीवात्मा से कहता है ऐसा समझना चाहिये। क्योंकि अविज्ञात के समझाने पर पुरंजन पुनः वृह्म को प्राप्त हुआ मानसरोवर जो कहा गया है वह हृदय को कहा गया है और स्वयं को तथा पुरंजन को अविज्ञत ने हंस कहा है सो जीव तथा परमात्मा को ही कहा है। हे राजा प्राचीन वर्हि ! इस प्रकार मेंने तुम्हें आत्म ज्ञान कराने के लिये ही राजा पुरंजन का उदाहरण रूप सुनाया है जिससे तुम्हें भगवान में भक्ति बढ़े और इस भवबंधन से मुक्त होने के लिये भक्ति उपाय कर सको।
२-शरीर के नव छिन्द्र- २ नाक, २ आँख २ कान, १मुख, १ गुदा। ३.प्राण।
४-पृथ्वी, तेज, जल।
५-श्रोत, त्वचा, नेत्र, रसना।
६-हाथ, पाँव, वाणी, लिंग, गुदा।
Pandavas during their 12 years of exile.
Bali was killed by Prabhu Shri Ram: Ram Katha
What was the secret of nectar in Ravana's navel? Tantra - a science.
Women Education in Ancient India. Satyug (Golden Age)
How blindfoldedly we kept trusting western culture that led us vanished.
Find the truthfulness in you, get the real you, power up yourself with divine blessings, dump all your sins...via... Shrimad Bhagwad Mahapuran🕉
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