यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।।

यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ   मानव शरीर में 5 इंद्रियां सबसे अहम मानी जाती हैं। देखना, सुनना, स्पर्श करना, सूंघना और स्वाद महसूस करना। जब इंसान यज्ञशाला में जाता है, तो शरीर की ये पांचों इंद्रियां क्रियाशील हो जाती हैं:   १-श्रवण इंद्रिय - यज्ञशाला में वेदमंत्रों का सस्वर पाठ होता है, विधिवत् हुए यह स्वर शरीर के आरोग्य केंद्रों को क्रियाशील करने के लिए काफी हैं।    २-दर्शन इंद्रिय - यज्ञ में जब कपूर जलाते हैं तब वहीं ध्यान केंद्रित होने से कपूर के औषधीय गुण से दर्शन इंद्रिय या देखने की क्षमता सक्रिय हो जाती है।    ३-स्पर्श इंद्रिय - जब हम आचमन करते हैं और शरीर को जल के साथ अलग-अलग जगह स्पर्श करते हैं तो हमें अदृश्य ऊर्जा महसूस होती है। यह ऊर्जा इस बात को सुनिश्चित करती है कि हमारी स्पर्श इंद्रिय क्रियाशील है।    ४-गंध इंद्रिय - हवन सामग्री में सुगंधित पदार्थ डाले जाते हैं, इनके जलने से हमारी गंध इंद्रिय या सूंघने की इंद्रिय सक्रिय हो जाती हैं और अग्नि में डाले गए पदार्थ का गुण वायुमंडल में फैलकर 100 गुणा हो जाता है।    ५-आस्वाद इंद्रिय - हवन के बाद जब ताम्र पात्र के घी में थोडा जल डालकर हाथो में लेकर उसे आंच की ओर करके चेहरे पर लगाते है तो यह नेत्र ज्योति तो बढाता ही है साथ ही यज्ञ से पहले आचमन के दौरान ताम्रपात्र का पानी पीने से हमारी आस्वाद इंद्रिय या स्वाद महसूस करने वाली क्षमता सक्रिय हो जाती है।    ६-यज्ञशाला में नंगे पैर जाने से वहां की जमीन की सकारात्मक ऊर्जा पैर के जरिए शरीर को प्राप्त होती है।      सदियों पहले यज्ञशाला की परिक्रमा वे लोग करते थे, जो अनपढ़, यज्ञोपवीत न होने या अन्य कारणवश यज्ञ में भाग नहीं ले सकते थे और यज्ञ कुंड से थोडी दूर चारो ओर परिक्रमा करते थे। बाद में यही परंपरा मंदिरों में अपनाई जाने लगी। अनेक प्राचीन यज्ञशाला या मंदिर ऐसी जगह उच्च स्थलो पर्वत आदि पर बनाए गए हैं, जहां पृथ्वी की चुम्बकीय तरंगे घनी होकर जाती हैं और, इन मंदिरों में गर्भ गृह में प्रतिमाएँ ऐसी जगह पर स्थापित हैं तथा इस मूर्ति के नीचे ताम्बे के पात्र रखे हुए हैं, जो यह तरंगे अवशोषित करते हैं। यज्ञशाला में भी पहले ताम्र पात्र ही उपयोग में आते थे। इस प्रकार जो व्यक्ति हर दिन यज्ञशाला या मंदिर जाकर घड़ी के चलने की दिशा में परिक्रमा (प्रदक्षिणा) करता है, वह इस एनर्जी को अवशोषित कर लेता है। यह एक धीमी प्रक्रिया है और नियमित ऐसा करने से व्यक्ति की सकारात्मक शक्ति का विकास होता है।

यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ 


मानव शरीर में 5 इंद्रियां सबसे अहम मानी जाती हैं। देखना, सुनना, स्पर्श करना, सूंघना और स्वाद महसूस करना। जब इंसान यज्ञशाला में जाता है, तो शरीर की ये पांचों इंद्रियां क्रियाशील हो जाती हैं: 

१-श्रवण इंद्रिय - यज्ञशाला में वेदमंत्रों का सस्वर पाठ होता है, विधिवत् हुए यह स्वर शरीर के आरोग्य केंद्रों को क्रियाशील करने के लिए काफी हैं।  

२-दर्शन इंद्रिय - यज्ञ में जब कपूर जलाते हैं तब वहीं ध्यान केंद्रित होने से कपूर के औषधीय गुण से दर्शन इंद्रिय या देखने की क्षमता सक्रिय हो जाती है।  

३-स्पर्श इंद्रिय - जब हम आचमन करते हैं और शरीर को जल के साथ अलग-अलग जगह स्पर्श करते हैं तो हमें अदृश्य ऊर्जा महसूस होती है। यह ऊर्जा इस बात को सुनिश्चित करती है कि हमारी स्पर्श इंद्रिय क्रियाशील है।  

४-गंध इंद्रिय - हवन सामग्री में सुगंधित पदार्थ डाले जाते हैं, इनके जलने से हमारी गंध इंद्रिय या सूंघने की इंद्रिय सक्रिय हो जाती हैं और अग्नि में डाले गए पदार्थ का गुण वायुमंडल में फैलकर 100 गुणा हो जाता है।  

५-आस्वाद इंद्रिय - हवन के बाद जब ताम्र पात्र के घी में थोडा जल डालकर हाथो में लेकर उसे आंच की ओर करके चेहरे पर लगाते है तो यह नेत्र ज्योति तो बढाता ही है साथ ही यज्ञ से पहले आचमन के दौरान ताम्रपात्र का पानी पीने से हमारी आस्वाद इंद्रिय या स्वाद महसूस करने वाली क्षमता सक्रिय हो जाती है।  

६-यज्ञशाला में नंगे पैर जाने से वहां की जमीन की सकारात्मक ऊर्जा पैर के जरिए शरीर को प्राप्त होती है।  



सदियों पहले यज्ञशाला की परिक्रमा वे लोग करते थे, जो अनपढ़, यज्ञोपवीत न होने या अन्य कारणवश यज्ञ में भाग नहीं ले सकते थे और यज्ञ कुंड से थोडी दूर चारो ओर परिक्रमा करते थे। बाद में यही परंपरा मंदिरों में अपनाई जाने लगी। अनेक प्राचीन यज्ञशाला या मंदिर ऐसी जगह उच्च स्थलो पर्वत आदि पर बनाए गए हैं, जहां पृथ्वी की चुम्बकीय तरंगे घनी होकर जाती हैं और, इन मंदिरों में गर्भ गृह में प्रतिमाएँ ऐसी जगह पर स्थापित हैं तथा इस मूर्ति के नीचे ताम्बे के पात्र रखे हुए हैं, जो यह तरंगे अवशोषित करते हैं। यज्ञशाला में भी पहले ताम्र पात्र ही उपयोग में आते थे। इस प्रकार जो व्यक्ति हर दिन यज्ञशाला या मंदिर जाकर घड़ी के चलने की दिशा में परिक्रमा (प्रदक्षिणा) करता है, वह इस एनर्जी को अवशोषित कर लेता है। यह एक धीमी प्रक्रिया है और नियमित ऐसा करने से व्यक्ति की सकारात्मक शक्ति का विकास होता है।

सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।


सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !



सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ।


Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.


तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।

क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य?  तंत्र- एक विज्ञान।।

जनेऊ का महत्व।।


आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।


तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।


Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com. Suggestions are welcome! Find the truthfulness in you, get the real you, power up yourself with divine blessings, dump all your sins...via... Shrimad Bhagwad Mahapuran🕉

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