सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।

महाराजा रणजीत सिंह जी की समाधि, लाहौर पाकिस्तान  दरवाजे के ऊपर देखे सनातनी देवों के स्वरूप  Maharaja Ranjit Singh's Samadhi, ground floor front entrance door carved in red stone with images of Sanatani deities . Its near to roshani darwaza.  Place : Lahore Pakistan  मात्र 100-125 वर्ष पीछे जाए, 1860-1920 के समय काल से पूर्व सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं मिलेगा  Just go 100-125 years back, before the time period 1860s to 1920s you won't find a difference between Sanatan & Sikhi.  ब्रिटिश अफसर मैकॉलिफ्फ द्वारा और उसके पश्चात खड़ी की गई सभाएं ही कारण है आज भिन्नता का  सभी सनातनी प्रथाएँ व पुरातन सिखी के सभी चिन्ह, शिक्षाएं धीरे धीरे अलग की गई  1909 तक अग्नि फेरो के साथ विवाह होता था और 1920 तक केशधारी व सहजधारी सभी गुरुद्वारों की देख रेख व सेवा में रहते थे, इसके पश्चात ब्रिटिश पोषित ठेकेदारी का युग प्रारम्भ हुआ सभी गुरुद्वारों पर हमला कर कब्जाया गया और सनातन से सिखी अलग करने का हर भरसक प्रयास भी किये गए जो आज तक अभ्यास में हैं।  Join Awakened Bharat | जागृत भारत to become awakened voice of Bharat  Join Sanatan Aarthik Sangh | सनातन आर्थिक संघ (SAS) to strengthen Sanatan Eco-system  Join Sanatan Legal Tantra | सनातन लीगल तंत्र for legal help  Join Sanatan Sahyog Tantra | सनातन सहयोग तंत्र (Helpost) for general help

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महाराजा रणजीत सिंह जी की समाधि, लाहौर पाकिस्तान।सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं ।


दरवाजे के ऊपर देखे सनातनी देवों के स्वरूप

Maharaja Ranjit Singh's Samadhi, ground floor front entrance door carved in red stone with images of Sanatani deities . Its near to roshani darwaza.

Place : Lahore Pakistan

मात्र 100-125 वर्ष पीछे जाए, 1860-1920 के समय काल से पूर्व सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं मिलेगा

Just go 100-125 years back, before the time period 1860s to 1920s you won't find a difference between Sanatan & Sikhi.

ब्रिटिश अफसर मैकॉलिफ्फ द्वारा और उसके पश्चात खड़ी की गई सभाएं ही कारण है आज भिन्नता का।

सभी सनातनी प्रथाएँ व पुरातन सिखी के सभी चिन्ह, शिक्षाएं धीरे धीरे अलग की गई।

1909 तक अग्नि फेरो के साथ विवाह होता था और 1920 तक केशधारी व सहजधारी सभी गुरुद्वारों की देख रेख व सेवा में रहते थे, इसके पश्चात ब्रिटिश पोषित ठेकेदारी का युग प्रारम्भ हुआ सभी गुरुद्वारों पर हमला कर कब्जाया गया और सनातन से सिखी अलग करने का हर भरसक प्रयास भी किये गए जो आज तक अभ्यास में हैं।


                         पितृ पक्ष चल रहा है तो आज की पोस्ट इसी विषय पर।  

1️⃣ पहली फ़ोटो :-  
बाबा नानक जी के पिता कालू मेहता जी ने अपने पितरों का श्राद्ध किया था और  
#Guru_Nanak_Ji ने अपने पिता कालू मेहता जी का श्राद्ध 8वीं (अष्टमी) तिथि को किया था। यह सब कुछ Sri Gur Pratap Suraj Granth में दर्ज है। यह भी कहा जाता है कि श्राद्ध वाली बात भाई बाला जी की जन्म साखी में भी थी लेकिन अब जो जन्म साखी छपती है उस मे से यह हटा दिया गया। इसके साथ ही यह बात मेहरवान जन्म साखी में भी लिखी हुई थी उसमें से भी शायद यह वाक्या हटा दिया गया।  
मतलब साफ़ है की पुरातन ग्रंथो के साथ छेड़ छाड़ की जा रही है ।

बाबा नानक जी ने अपने पिता जी का श्राद्ध बहुत विधि विधान से किया था जिसको की मैने नीचे फ़ोटो में बताया है।  
अष्टमी तिथि को श्राद्ध करने के बाद बाबा नानक जी दशमी तिथि को ज्योति जोत समा गए। वो वैकुंठ धाम चले गए।

#Guru_Nanak जी ने श्राद्ध के बारे में एक शब्द भी कहा है जो  #Shri_Guru_Granth_Sahib के #अंग_472 पर दर्ज है।  
जे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइ ॥  
अगै वसतु सिञाणीऐ पितरी चोर करेइ ॥  
वढीअहि हथ दलाल के मुसफी एह करेइ ॥  
नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥  
#अर्थ :- अगर चोरी की कमाई से श्राद्ध करोगे तो परलोक में ऐसे भोजन को पहचान लिया जाता है। चोरी की कमाई के भोजन को खाने पर चोरी का पाप पितरों को भी लगेगा और पाप उसको भी लगेगा जिसने वो भोजन खाया हो। श्राद्ध पितरों तक ज़रूर पहुँचता जब वो आपकी हक़ और मेहनत की कमाई से खिलाया जाए।

अब बात करते है कि #कालू_मेहता जी ने अपने पितरों का श्राद्ध किया।  
#Sri_Gur_Partap_Suraj_Granth:-  
समा श्राद्ध करन कौ आवा ॥सरब सौज कालू अनवाई, रीति श्राध करने बनवाई।  
भोजन करो दिजन के हेताभीर भूर भरि रही निकेता ॥पंडित इक बुलाइ तिह काला, बैठो करन शराध बिसाला, तब चलि सहिज सुभाइक आए, जे बेदी कुल भानु सुहाए॥पित के निकट बैठि सुखधामा , बचन भने तिह छिन अभिरामा, परचे कौन काज महिण ताता? भीर अजर कहीए बिरतांता ॥ सुनि करि कालू बचन अुचारे, पितरन केर शराध हमारे, दिवस आज के करहिण सदाई  
इह शुभ रीति श्रति नै गाई ॥ हे पित! सज़ति बचन तुम मानहु, पुंनवान अतिशै निज जानहु। पितर गए तुमरे अस ठौरी, भूख रु पास जहां नहिण थोरी ॥ नांहि श्राध की करति अुडीका, रहति सदीव तहां सुख नीका, जिन के पितर असन जल चहिहीण, करनो श्राध तिनहि को अहिही ॥ जिन के मन अभिलाखा नांही, करै श्राध संतति किअुण तांहीअब सभि दिज को देहु अहारा,करनो श्राध तजहु बिअुहारा ॥

#अर्थ:- #मेहता_कालू जी कहते है !! श्राद्ध करने का समय आ गया है। बाबा कालू जी ने सब सामग्री मँगवाई और श्राद्ध करने की रीति की। ब्राह्मण के लिए भोजन तयार करवाया, घर पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। उस वक्त एक पंडित जी को बुलाया गया। विशाल श्राद्ध करने के लिए बैठ गए तब बेदी कुल के सूर्य बाबा नानक चल कर आए। गुरु जी अपने पिता के पास बैठ गए और सुंदर वचन कहे! पिता जी आप किस काम में लग गए। ऐसा कौनसा ना सहन होने वाला दुःख है आपको वो मुझे बताओ। कालू जी ने कहा हम आज के दिन ही अपने पितरों का श्राद्ध करते आए है। यह शुभ रीति श्रुतियो में कही गई है। बाबा जी बोले हे पिता जी आप सच्चे वचन मानो की आप श्राद्ध को बहुत पुण्य वाला कार्य जानो। आपके पितर उस जगह गए है जहाँ किसी प्रकार की भूख प्यास उनको नहीं है। वो श्राद्ध की प्रतीक्षा नही करते वो बहुत सुखी है वहाँ। जिनके पितर भोजन चाहते है उनको श्राद्ध करना चाहिए।जिन पितरों के मन में कोई अभिलाषा बाक़ी नहीं उनकी संतान श्राद्ध क्यूँ करे।अब सब ब्राह्मण को भोजन खिलाओ और व्यर्थ की चिंता को छोड़ दो। @(नानक जी ने ध्यान लगा कर देख लिया था की उनके परिवार के पितर वैकुंठ धाम में बहुत आनंद में है और उनको वहाँ किसी चीज़ की कोई आवश्यकता नहीं)

2️⃣ दूसरी फ़ोटो :-

श्राद्ध पितरों तक कैसे पहुँचता है यह #Guru_Arjan_Dev जी समझाते हुए।  
भाई सेठा, भाई उगवंदा और भाई सुभागा जो अरोड़ा सिख थे उन्होंने गुरु अर्जन देव जी से पूछा कि जो भोजन हम श्राद्ध में खिलाते है वो पितरों तक पहुँचता है के नहीं। तब गुरु अर्जन जी ने #Guru_Nanak_Dev जी के शब्द (Ang 472) को बताते हुए कहा की श्राद्ध पितरों तक ज़रूर पहुँचता है बेशरते वो आपकी हक़ और मेहनत की कमाई से खिलाया जाए।अगर चोरी की कमाई से श्राद्ध करोगे तो उस परलोक में उस भोजन को पहचान लिया जाता है। उस भोजन को खाने पर चोरी का पाप पितरों को भी लगेगा और उसको भी जिसने खाया हो।  
Guru Nanak Ji का यह शब्द #Shri_Guru_Granth_Sahib के अंग 472 पर दर्ज है जो मैं नीचे लिख रहा हूँ।

जे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइ ॥  
अगै वसतु सिञाणीऐ पितरी चोर करेइ ॥  
वढीअहि हथ दलाल के मुसफी एह करेइ ॥  
नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥

आगे गुरु अर्जन देव जी ने यह भी समझाते है कि भोजन किसी भी सिख को खिला सकते हो। क्यूँकि अग्नि देवता तो स्वयं हमारे शरीर में है ,चेतन रूप में नारायण सब में है ,सूर्य देव हमारे नेत्रो में है और अश्वनी कुमार देव हमारी नासिका में है और दीशपालक देव हमारे कान में है।जीवहा पर वरुण देव ,रोम में वनस्पति ,हाथों में इंद्र देव और गुदा में यम ,पराजपती देव लिंग में और चरणो में #भगवान_विष्णु और पोण देव चमड़ी में। इस प्रकार सब देव और परमात्मा हमारे भीतर वास करते है।वाहेगुरु का नाम ले कर जब भोजन मुख में जाता है तो सब देवता तृप्त हो जाते है। जो भोजन परोसता है उसके भी पाप दूर हो जाते है।

3️⃣ तीसरी फ़ोटो

#Shri_Guru_Gobind_Singh जी ने #Guru_Tegh_Bahadur जी का श्राद्ध किया था।

#Shabad:-  
एक बार गुरु जी के श्राद्ध हुआ।  
पंडित,पाँधे ब्राह्मण इकट्ठे किए।  
श्राद्ध की धर्म शांत करी, मोहर की दक्षिणा दे करि।  
सिहजा,गऊ ,घोड़े ,गहने जनाना-मर्दाना दिए तयार करा।  
#अर्थ:- एक बार Guru Gobind Singh के यहाँ श्राद्ध हुआ। विध्वान पंडित, पांडे और ब्राह्मण इकट्ठे हुए। श्राद्ध में धर्म शांति का पाठ किया। पंडितो को एक एक मोहर दी और कपड़े ,गऊ,घोड़े दिए। ब्राह्मण और उनकी पत्नियो दोनो को गहने दिए।  
🟢 #प्रमाण:-“पुरातन ग्रंथ सौ साखी” जिसको नामधारीयों(कूका) ने अभी भी सम्भाल कर रखा हुआ है लेकिन #Singh_Sabha_Lehar के वक्त इस ग्रंथ को सिक्खों से दूर कर दिया गया।

🟦 अब जो मूर्ख बोलते है की श्राद्ध ब्राह्मणो द्वारा शुरू किया कर्म कांड है । उसके लिए बता दूँ की Guru Gobind जी ने दशम ग्रंथ में ख़ुद कहा है कि श्राद्ध अकालपुरख के द्वारा ही बनाया गया एक कर्म है।  
#Dasham_Granth , #Ang_25 ,Akaal Ustat  
Shabad- किए देव अदेव श्राद्ध पितर॥  
अर्थ:- उस अकालपुरख ने देवता दानव श्राद्ध और पितर बनाए है।

:point_right: गुरु गोबिंद सिंह जी का “ब्राह्मण सिक्ख”, “क्षत्रीय सिक्ख”, “वैश्य सिक्ख” और “शूद्र सिक्ख” जैसे शब्द लिखने का मतलब यह है कि:-  
जो पैसों के लिए अपने धर्म को ना बेचता हो और अपने वर्ण के धर्म का पालन करता हो। जो जिस वर्ण से है वो उस वर्ण के कर्म का पालन 100% पालन करे। अधर्म के राह पर मत चले।  
इसके बारे में और विस्तार से चर्चा फिर कभी अगली पोस्ट पर करूँगा।

इस पोस्ट का एक एक शब्द पुरातन ग्रंथ से लिया गया है, कुछ भी ख़ुद से नहीं लिखा।






मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?



सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !



सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ।


Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.


तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।

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आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।


तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।

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