भगवान विष्णु का हिरण्यक्ष को युध्ददान।

सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !



सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ।


Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.


तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।

क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य?  तंत्र- एक विज्ञान।।

जनेऊ का महत्व।।


आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।


 अध्याय १८

श्रीमद भागवद पुराण *अठारहवाँ अध्याय* [स्कंध३]


हिरण्याक्ष के साथ भगवान वाराह का युद्ध।


दो-या अष्टमदश अध्याय में, वरणी कथा ललाम।

वराह और हिरण्याक्ष में हुआ घोर संग्राम ॥


श्री मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी ! जब वरुण जी ने उस महा दुख दाई दैत्य से इस प्रकार बचन कहे तो वह वरुण जी का ठठा कर हँसा और वहाँ से भगवान विष्णु को खोजने के लिये चल पड़ा। तभी मार्ग में उसे हरिगुन गाते हुये नारद मुनि आते हुये मिले । तब उस दैत्य ने नारद जी से कहा-रे नारद! तू इस तरह घूम फिर कर किस के गुण गाता फिरता है। तब नारद जी ने कहा-हे देत्यराज हिरण्याक्ष! यह सब आपही की महिमा है जो मैं इस प्रकार स्वछन्द हो भ्रमण करता हूँ। इससे दैत्य ने प्रसन्न होकर कहा-अच्छा तुमने कहीं विष्णु को भी देखा है । नारद जी ने उचित मौका जान कर कहा हे दैत्यराज ! वह तो इस सम्य बाराह का रूप धारण कर पाताल को गये हैं सो आप शीघ ही उन्हें प्राप्त कर सकते हैं । हे विदुर जी। नारद द्वारा सूचना प्राप्त कर वह देत्य युद्ध को उन्मत्त हुआ पाताल लोक में पहुँचा तो उसने वाराह रूप भगवान विष्णु को अपनी दाड़ों पर पृथ्वी को उठाये जाते हुये देखा। तब हिरण्याक्ष ने हंसकर कहा अहो जल में विचरने वाला बाराह तो हमने आज ही देखा है। और क्रोधकर बोला रे अज्ञ ! तू कहाँ जाता है इस पृथ्वी को छोड़दे और मेरे सामने आ, क्यों कि यह पृथ्वी तो ब्रह्मा जी ने हम पाताल वासियों को समर्पण की है। यदि मेरी आज्ञा न मानी तो तू इस पृथ्वी को लेकर सकुशल लौट नहीं पाएंगे । मैं जानता हूँ कि तू दैत्यों का संहार अपनी माया से करता है तू हम लोगों को मारने के लिये ही उत्पन्न हुआ है । हे मूर्ख ! आज में तुझे मार कर अपने वाँन्धवों का शोक दूर करूंगा। तब तुझे भेंट देने वाले देवता तथा ऋषि लोग तेरे न होने पर निर्मूल हो स्वयं ही नाश हो जायेंगे। जब दैत्य हिरण्याक्ष ने इस प्रकार अनेक दुर्वचन कहे तो पृथ्वी अति भयभीत हुई जिसे भगवान वराह ने देखा और अपनी दाढ़ के अग्रिम भाग पर पृथ्वी को उठाये हुये जल के बाहर आये और तब अपनी कुछ शक्ति देकर पृथ्वी के जल के ऊपर रखा तभी दैत्य भी महाविक्राल स्वरूप वाला विक्राल दाढ़ो को दिखाता हुआ बज्र समान घोर शब्द करता हुआ अनेक प्रकार से दुर्वचन कहता हुआ भगवान बाराह के पीछे दौड़ता हुआ इस प्रकार आया कि जैसे गजराज के पीछे ग्राह दौड़ता है। तब तक भगवान बाराह अपनी आधार शक्ति प्रदान कर पृथ्वी को जल पर ठहरा चुके और तब उस महाबली दैत्य से बोले-रे देत्य! तू सत्य कहता है कि हम ही वे वनवासी बाराह हैं । रे अभद्र ! परन्तु हम तुम जैसे कुत्तों को ही खोजते फिरते हैं ! हम इन जीवों को वकवाद पर ध्यान नहीं देते हैं जो मृत्यु रूप फांसी के फंदे में फँसे हुये हैं । इस प्रकार जब भगवान बाराह जी ने कहा तो देत्य अति क्रोध में हो अपनी गदा को पूर्ण वेग से भगवान बाराह के उपर प्रहार किया जब दैत्य को चलाई हुई गदा भगवान ने अपनी छाती की ओर आती हुई देखी तो वे तिरछे हो गये, और दैत्य के प्रहार को बचा कर एक ओर हट गये। तब वह दैत्य अति क्रोधित हो अपनी गदा को बारम्बार घुमा-घुमा कर बाराह पर चलाने लगा। जिसके प्रत्युत्तर में वाराह भगवान भी अपनी गदा के द्वारा दैत्य के प्रहारों को बचाते हुये प्रहार करने लगे। हे विदुर जी! इस प्रकार गदाओं के टकराव के कारण घोर शब्द होता और एक दूसरे पर कुद्ध हो प्रहार करते थे बाराह ने अपनी गदा का बार दैत्य की भृकुटी पर किया जिससे रक्त की धारा बहने लगी। यद्यपि उस गदा युद्ध में वे दोनों ही घायल हो गये थे । घावों से रक्त बहता था और उस रक्त की गंध से क्रोध बढ़ रहा था वे दोनों ही प्राणपण से युद्ध में रत थे उस युद्ध को देखने के लिये वृह्मा जी अपने साथ देवताओं ओर ऋषियों को लेकर आये हुये थे, वे सभी इस होने वाले घोर भयानक गदा युद्ध को देख रहे थे। जो देखने से ऐसा प्रतीत होता था मानो गाय स्वरूप पृथ्वी के निमित्त दो साड़ (बैल) जी जान से युद्ध करते हैं ।

  जब  बहुत समय तक बाराह भगवान को उस दैत्य से युद्ध करते देखा तो ब्रह्मा जी ने कहा हे प्रभो! हे आदि पुरुष श्री नारायण बाराह भगवान बालक की भाँति सर्प को पूंछ पकड़ कर खिलाना अच्छा नहीं होता यह देत्य संध्या समय पाकर बल में बढ़ जाएगा। अतः अपनी योग माया में स्थिर होकर शीघ्र ही इस दैत्य का संहार करो। इस समय अभिजित नाम का योग भी एक मुहूर्त भर के लिये आगया है। अतः देवताओं तथा लोकों को सुखी बनाने के लिये इस पराक्रमी देत्य को अपने पराक्रम से शीघ ही संग्राम में मार कर देवताओं की रक्षा करो


Thanks for your feedback.

Previous Post Next Post